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सामाजिक

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नहीं!आज तो कहकर ही रहूँगा।मैने बड़ी नम्रता से कहाँ कि दुकान खुलवा दो।तो कहते है तू चला नहीं पायेगा।पैसा और फँस जायेगा।मैं जो भी करूँ ,इनको उससे प्रोबलम हैं।कब मुझे जीने देगें।अब कोई दूध पीता बच्चा नहीं

शुगन्धा जिस आजा़दी से खुश थी, वही आज़ादी जजींर बन गई।आजादी सबको प्रियं होती है लेकिन पथ का तो पता होंना चाहिए।जब सिर पर खतरा मड़राता दिखा तो जाने में ही भलाई हैं।कुछ अनर्थ होने से अच्छा है कि बापिस घर च

जितने पुष्प उतने रंग।पता नहीं किसको कौन सा रंग मनमुग्ध कर जायें।जहाँ प्राग्रिया और कुमुद दाम्पत्य जीवन सुखमय हैं। दूसरी तरफ़ शुगन्धा का पति तम कुमार अमावस्या की काली छाया हैं।सबका सुख-दुख का चक्र चलता

किसी गाँव में एक बूढ़ा व्यक्ति रहता था। वह दुनिया के सबसे दुर्भाग्यशाली लोगों में से एक था। पूरा गाँव उससे परेशान हो चुका था। वह हमेशा उदास रहता था और सबसे शिकायत करता रहता था। उसका मन भी हमेशा दुखी र

यह कहानी पुराने समय की है। एक दिन एक आदमी गुरु के पास गया और उनसे कहा- बताइए गुरुजी, जीवन का मूल्य क्या है? गुरु ने उसे एक पत्थर दिया और कहा- जा और इस पत्थर का मूल्य पता करके आ, लेकिन ध्यान रखना पत्थ

एक वृद्ध संत ने अपनी अंतिम घड़ी नज़दीक देख अपने बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा- मैं तुम बच्चों को चार कीमती रत्न दे रहा हूँ, मुझे पूर्ण विश्वास है कि तुम इन्हें सम्भाल कर रखोगे और पूरी ज़िन्दगी इनकी सह

एक दिन सूर्य पुत्र कर्ण शिकार खेलने गए थे। झाड़ियों के पीछे किसी हिंसक प्राणी की आशंका होने पर बिना पड़ताल किए ही कर्ण बाण चला देते हैं। दुर्भाग्य वश वह एक गाय होती है। उस गाय का रखवाला ब्राह्मण यह दृश्

प्राचीनकाल में मिथिला में सीरध्वज जनक नाम से प्रसिद्ध धर्मात्मा राजा राज्य करते थे । एक बार राजा जनक यज्ञ के लिए पृथ्वी जोत रहे थे । उस समय चौड़े मुंह वाली सीता (हल के धंसने से बनी गहरी रेखा) से एक कन

'पंद्रह साल की थी, जब शादी हुई। निकाह के बाद जाना कि शौहर की उम्र मेरे पिता से भी कुछ ज्यादा है। फिर तो एक के बाद एक राज खुलते चले गए। वो देख नहीं पाता था और न ही कोई काम-धाम करता। गांव में लड़की नहीं

जिन्दगी में अब क्षमा याचना का, कोई अस्तित्व न रहा ।         सचमुच जिन्दगी में अब, पश्चाताप का कोई महत्त्व न रहा ।लोग गलतियां करने में, खुद को अक्लमंद समझते हैं ।   

जल ही जीवन है सब जपते हैं,पानी बचाएं ना कोय।जो हम सब पानी बचाएं,तो किल्लत काहे को होय।किल्लत काहे को होय,मिले पर्याप्त पानी।और गर्मियों में बिन पानी के,ना आए परेशानी।ना आए परेशानी,तो कोई उपाय सोचो।व्य

:-मेरा फैसला नही मानना तो न सही।अब अपनी आँखो के सामने मृत्युं का ताण्ड़व देखना। विधाता ने अपनी कलाई की तरफ देखा और ऊँगली ले जाने लगा।किसना ने रोका... रूको। तुमने अपना मन बदल लिया? तुम्हारे इस साम्रराज्

कहते हैः- जैसे तिल में तेल समाया रहता है,                   वैसे ही इस जड़ शरीर में चैतन्य का वास है।चैतन्य की शक्ति से ही ये जड़ शरीर,हिलता-डुलता, चलता

साथ ही अचार की कनस्तर से एक छोटा सा टुकड़ा भी रखा मगर तभी निशा को याद आया कि मां की तबीयत तो खराब है और दवाइयां भी चल रही है तो खट्टी चीजों से परहेज करना चाहिए |गरम गरम रोटी एक चम्मच घी लगाते हुए साथ

एक बार एक नदी में हाथी की लाश बही जा रही थी। एक कौए ने लाश देखी, तो प्रसन्न हो उठा, तुरन्त उस पर आ बैठा। यथेष्ट मांस खाया। नदी का जल पिया। उस लाश पर इधर-उधर फुदकते हुए कौए ने परम तृप्ति की डकार ली। व

एक चूहा एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था।एक दिन चूहे ने देखा कि कसाई और उसकी पत्नी एक थैले से कुछ निकाल रहे हैं। चूहे ने सोचा कि शायद कुछ खाने का सामान है। उत्सुकतावश देखने पर उसने पाया कि वो एक

"मुचकुंद गहरी नींद सो गया"...,एैसा कह के बल्लाव चुप हो गया। चिंता ऊसके सर पे मछरौं की तरहा मंडारा रही थी। अरे दादाजी ये तो कहानी का अंत हैं शुरवात नहीं! उसके पोते केशव ने कहा। “अरे अंत भी कह

"मुचकुंद गहरी नींद सो गया"...,एैसा कह के बल्लाव चुप हो गया। चिंता ऊसके सर पे मछरौं की तरहा मंडारा रही थी। अरे दादाजी ये तो कहानी का अंत हैं शुरवात नहीं! उसके पोते केशव ने कहा। “अरे अंत भी कह

वेलु नामका एक छोटासा तालुका, आसपास जंगल का ईलाका वहाँ सबकुछ था! था! हा था! एक सिनेमा टाकी. एक नगर परिषद, एक इतिहास कालीन छोटा कॉलेज कॉलेज में बहोत से पेड़, पौधें.अनेक वृक्ष वो सब कॉलेज

बड़ा पहाड़ उतर कर वो शहर तक आया. रेगिस्तानी शहर बहोत फैला हुवा नहीं था लेकिन ठिक ठाक था, वहाँ का राजा एक शिस्त प्रिय सा इंसान था इसलिए उसने राजा बनते ही शहर का सारा कचरा साफ किया, और एक रुका हुवा फैसल

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