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सामाजिक

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क्यूं , अब कलयुग के, इस जमाने में, दुवाओं का असर न रहा ?       क्यूं , कुबूल होती हैं, उनकी दुवाएं,जिनका अपना कोई, जमीर न रहा ?        क्यूं ,अच्छों के साथ, बुर

शर्मा जी अपने बेटे मयंक के साथ प्लेटफार्म पर बैठे गाड़ी का इंतजार कर रहे थे । गाड़ी डेढ़ घंटे लेट थी ये बात उन्हें प्लेटफार्म पर आकर पता चली।सात साल का मयंक बड़ा उत्सुक था अपनी दादी के पास जाने के लिए

मृगनयनी! बहुत अच्छा नाम है। देखो मृगनयनी सभी को सुधरने की कोशिश करनी चाहिए। हमें यह जीवन भगवान की तरफ से एक बार ही मिला है।तुम कल सुबह मुझे यहीं पर मतलब जहां शाम को खड़ी होती हो उसी जगह 9-10 बजे मिलना

एक लड़के और लड़की की यारी चाहे क्यों ना हो दोस्ती ये प्यारी समझे कहां ये संसार ये दोस्ती वाला प्यार नासमझ लोग क्या सच में है इतने बड़ा क्यों या बनते यू अनजान पाकीज़ा होता ये दोस्ती वाला प्यार जानते सब

जाने क्या बात है कि नींद नहीं आती  एक तेरी याद है जो कभी नहीं जाती  ख्वाबों में सजती हैं बस तेरी महफिलें  एक तू है जो कभी मिलने नहीं आती  अश्कों ने भी अब  साथ छोड़ दिया है&nbs

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हम किन्नर हैं ।    हमारी भी, अपनी भावनाएं हैं ।कुछ हमारे जीवन में भी,       प्रेम की, सम्भावनाएं हैं ।दुनिया हमें, याद करें न करें ।     खुशहाली के अवसर पर

उसी हालत में वह मुझे छोड़ कर पौ फटने से पहले ही भाग गया। मॉर्निंग वॉक के लिए आने वाली आंखें मुझे घूर घूर कर देखने लगीं।शायद किसी को मुझ पर तरस आ गया होगा तो वह भला मानुष कुछ लोग की मदद से मुझे उठा, ऑट

वहां पार्क में बेंच पर बैठी बैठी मैं बहुत देर तक सोचती रही। जीवन, कैसे मोड़ पर उसे ले आया है।कितनी ही तरह की बातों को सोचते हुए मेरे मन में विचारों का आवेग होने से बहुत देर तक उसे नींद नहीं आई। पार्क

अपुन भी पढ़ लिखकर कुछ बनना चाहती थी। पर यह जो है ना पापी पेट(थोड़ा रुक कर) अपने पेट पर हाथ रखते हुए बोली ना जाने क्या-क्या काम करवाता है।पेट के लिए जरूरी तो नहीं हर कोई यही काम करें? करने को और भी तो

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मुझ कली पर, क्यूं , रहम न आयी ?       क्यूं , मेरे साथ हुई ,ये बेवफाई ?पल भर में, उजाड़ दिया हमको ।       टहनियों व पत्तियों से, नाता तोड़ दिया पल भर में ।बेहाल

 जो तुम आराम से बैठ गए हो  सफर अब बाकि हैं।अभी तो एक ही ऊंचाई देखी हैं, तूमनेअभी तो आसख्य ऊंचाई और उससेगिरना फिर से उठना बाकि हैं।अभी कहॉं अभी तो बहुत कुछ बाकि हैं।अभी तो एक सुंदर गीत ल

गांव की मिट्टी से पैदा हुआ कोई भी बचपन अपनी मुस्कान मिट्टी में ही ढूंढ लेता था। उस समय के वे कच्चे आंगन और घर में कच्ची सड़कें और गांव के हर चोराहे पर कच्ची जमीन हर किसी की मुस्कुराहट के लिए काफी थी।

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ये फुलझडियां भी, कितनी अजीब हैं ?     ये स्वार्थी मानवों की, सचमुच, प्रतीक हैं ।कहीं भी, कोई, खुशी का आलम हो, तुरन्त पहुंच जाती हैं ।      झूम-झूम कर, नाच-नाच कर, सबको मन

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प्रकृति में, सामंजस्यता, हर ओर नजर आती है ।     जिसे देखकर, इंसान की, इंसानियत भी, शर्माती है ।क्यूं , मनुष्य ,इतना स्वार्थी,निकृष्ट हो चला ?      क्यूं ,कर उसे इंसानियत

जिस जिंदगी पर मानव तुझे इतना गुरूर है।जन्म पाया है तो तेरी मृत्यु जरूर है।जब तलक है पवन का इसमें आवागमन।तेरी जिंदगी के लिए अमूल्य है पवन।ना तुझको पता ना मुझको पता।हो जाये न जाने कब जिंदगी में खता।एक क

एक बार "असंभव" कहीं को जा रहा था  नकारात्मकता के बोझ से दबा जा रहा था  ना तो आंखों में कोई आशा की किरणें थीं  और ना ही चेहरे पे विश्वास नजर आ रहा था  दिल में मनोबल की बहुत कमी सी थ

भयानक वो मंज़र खुद ही ना मिला पाओगे नजर एक निर्दोष का देख हाल खा गया दहेज का भंवर उसे निगल उसे अपनी का बिछाया हुआ जाल किसी ने कीमत लगाकर बेटे को बोली लगाई किसी बेटी की खुशियां खरीदनी चाही भूल गया क्यो

क्यों कहते हैवो ऐसा कैसे कर सकती हैकिसी चले जाने के बाद भीवो है जिंदा तोजीवन में आगे बढ़ क्यों नहीं सकती फिर जी सकती हैजो गम के बादल छंट जाएउसे साथी कोई मिल जाएतो क्यों उसे नहीं अपना सकतीक्यों दक

एक उलझन मन को बड़ा ही सताएकोई जरा मन की उलझन कोसुलझाएंसवाल जो ये हल करेजवाब पाकर दिल भी करार पाएजो वंश बेल बेटा ही बढ़ा पाएजरूरत बेटे की जरूरी हो जाएतो किसी की बेटी को बहु बनाकर क्यों लाएजो

वो चेहरा और उसके पीछे की कहानी जाने के लिए मेरा मन उकताने लगा। ना जाने क्यों उसके चेहरे के पीछे मुझे एक अनजाना सा दर्द महसूस होने लगा था।तय किया मुझे उससे मिलना ही पड़ेगा। फिर मेरे कागज़, कलम भी तो कि

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