"मुट्ठी भर रेत" काव्य संग्रह में इंद्रधनुषी रंगों से रंगी अनेकानेक रचनाएं हैं। कहीं मां के आंचल की सुगंध है,तो कहीं देश-भक्ति का रंग दिखाई देता है। कुछ रचनाएं समाज को ललकारती हैं, तो कुछ प्रेम से पुचक
जिधर देखो उधर ही गड़बड़ घोटाला है कहीं लालू कहीं ओमप्रकाश चौटाला है कहीं बोफोर्स की दलाली का बड़ा शोर है महाराष्ट्र में मंत्रियों का वसूली पर जोर है कश्मीर को तीन खानदान पूरा निगल गए
सखि, कैसा जमाना आ गया है । एक तरफ तो लोग आधुनिक बन रहे हैं । बड़े बड़े रईस और खानदानी घरों की बेटियां "फटी पुरानी" सी चीथड़े वाली जींस पहन कर पार्टियों में जा रही हैं या फिर उनके खरबपति बा
जब शासन समुदायों में पक्षपात करता है किसी को प्यार किसी पे आघात करता है मजहब के आधार पर जब फैसले होते हैं तब जोधपुर भी दंगों की आग में जलता है धर्मनिरपेक्षता के नाम पर तुष्टीकरण करते
पैरोडी : तुम्हीं मेरे मंदिर तुम्हीं मेरी पूजाशराब के लिए ठेकों पर उमड़ी भीड़ को देखकर मैं शराब के भक्तों को प्रणाम करता हूं । ऐसे भक्त जन तो भगवान के भी नहीं हैं जो रात भर से दर्शन के लिए पंक्तिबद्ध ह
पैरोडी तर्ज : मेरे दिल में आज क्या है तू कहे तो मैं बता दूं प्रेमी : सुन तराना मेरे दिल का, ये तेरे ही गीत गाये तुझे सामने ना पाकर, इक पल ना चैन पाये सुन तराना मेरे दिल
तेरी वफादारी बेमिसाल है स्वामिभक्ति क्या कमाल है सजग प्रहरी सा रखवाला तू इकलौता नमकहलाल है संतोषी इतना कि इंतजार करे मालिक के भोजन तक सब्र धरे जितना मिल जाये उसमें खुश ज्यादा के लिये ना बवाल करे
गतांक से आगे रवि और विनोद डिनर लेकर विनोद के कमरे में आ गये । उनके साथ साथ मृदुला भी आने लगी तो रवि ने उसे टोक दिया "अरे उधर कहाँ जा रही हो मैडम ? दो बचपन के यार इतने साल बाद मिले हैं तो उन्हें
राजस्थान का बहुचर्चित स्कैंडल जिसने राजनीति में भूचाल ला दिया । कई खानदानों को मटियामेट कर दिया और सत्ता तथा सेक्स के गठबंधन को सार्वजनिक कर दिया । तो आज आपको यह बहुचर्चित किस्सा सुनाते हैं । घट
कभी घर भी भरा रहता था और मन भी आज तो घर और मन दोनों ही खाली हैं किसी के पास दो पल की फुरसत नहीं आज हर आदमी फिरता यहां सवाली है ममता का सागर उफनता था जहां कभी उस मां का दिल रीती
हर महल में सैकड़ों रहस्य दफन हैं यहां दबे हुए न जाने कितने कफन हैं न जाने कितनी प्रेम कहानियां बुनी गई कुछ दबी रह गई तो कुछ खूब सुनी गई राजा रानी के प्रेम की कहानियां मशहूर हैं
पाखंड या परम्परामाना भारत देश संस्कृति संस्कार और परंपराओं का देश है, मगर जब परंपराएं पाखंड बन जाती है तो बोझ लगने लगती है।कभी परंपरा पाखंड बन जाती है और कभी पाखंड परंपरा बन जाते है, परंपरा कोई
हां मैं मज़दूर हूं हां मैं एक मज़दूर हूं , खुला आकाश मेरी छत है , तपती धरती मेरा बिछौना है ।टूटी-फूटी अपनी झोंपड़ी में मुझे हंसना और रोना है । नहीं चाह मुझे महल - माड़ियों की , घास - फ
आज स्टॉफ रूम में बड़ी चहल पहल थी । सब शिक्षकों के मुख पर जिज्ञासा के भाव थे कि आखिर आज शिक्षक संघ के अध्यक्ष जी ने अर्जेंट मीटिंग क्यों बुलाई है ? क्या प्रधानाचार्य ने किसी शिक्षक से कोई पंगा ले लिया
मेरे शहर की कोई एक बात हो तो बताऊं इतने सारे किस्से हैं, किस किस को सुनाऊं ये शहरों में शहर है गुलाबी नगर कहलाता है प्रेम भाईचारे का यहां बहुत गहरा नाता है हवामहल, जंतर-मंतर,&n
रिश्ते जो पल में टूट जाते हैं,वो किस काम के।नहीं है उनमें अपनापन,हैं बस नाम के।छोटी-छोटी बातों पर,क्यों रूठ जाते हैं।थोड़ी सी अनबन से,रिश्ते टूट जाते हैं।भले शिकवा शिकायत करो,पर रिश्ता तो ना तोड़ो।अनम
सखि, जमाना कितना बदल गया है । आदमी चांद से भी आगे पहुंच गया है। मगर लोगों की सोच वहीं की वहीं पड़ी हुई है । अब अंधविश्वास को ही देख लो । आदमी आज किसी पर भी विश्वास नहीं करता है । यहां
भारत में अधिकतर लोग आस्तिक हैं। इसी आस्तिकता का फायदा उठाकर कुछ पाखंडी और ढोंगी लोग जो घर से परेशान होकर संन्यासी बनने का झूठा नाटक करते हैं। इन लोगो का मकसद नशा करना,झूठ बोलकर रुपया कमाना और अश्लील ह
***** कृपा रामायण पढ़ रहा था।रिया बहू के साथ रसोई घर में थी।सास-बहू का तालमेल देखकर लगता नहीं था कि सास बहू हैं।माँ-बेटी बनकर काम कर रही थीं।कृपा के घर खुशियाँ ही खुशियाँ थी।सब अपने दायत्व को पूर्ण निष
राज तैयारी के साथ अदालत पहुँचा।शैलेस बहुत खुश था।आज उसका प्रतिशोध पूर्ण होने बाला था।तम कुमार ने शैलेस को राज के साथ देखा तो और क्रोधित हुआ।,"ओह !जो कर्म काण्ड़ का षडयन्त्र रचा है ,तेरा ही हाथ है