बप्पा क्या बात करते हो? वो समी ट्रांस.......... शट अप, डोंट से एनीथिंग........ जिसके बारे में नहीं जानते, उसके बारे में मत बोला करो , और फिर तुम जानती ही क्या हो समी के बारे में, तुम्हें यह क्या पूरा शहर बेवकूफ लगता है,,, वो नेता ,वो अधिकारी और यहां तक कि कलेक्टर और मुख्यमंत्री भी, यह शहर की पूरी जनता सब पागल है क्या ??एक तुम्हारी ही पीढ़ी के चार लोग समझदार हो आए हो, और तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई समी के बारे में यह बात करने की, तुम कुछ जानती भी हो उसके बारे में........
आज 85 साल की उम्र हो गई, लेकिन आज तक मैंने इस पूरे शहर में किसी बच्चे या बूढ़े में इतनी हिम्मत ना देखी, सभी उसे और उसके घर को मंदिर से भी ज्यादा तवज्जो देते हैं, चाहे फिर वह किसी भी संप्रदाय का क्यों ना हो, सभी समी को इतना प्रमुख मानते हैं कि वह अपनी किसी भी काम की शुरुआत उसकी सलाह के बिना नहीं करते। बड़ी बड़ी राजनीतिक पार्टियां, चाहे बाहर कितना भी लड़ाई झगड़ा कर ले लेकिन समी दरबार में किसी की क्या मजाल जो किसी के खिलाफ कोई भी एक बात कहे......
उसके आंगन में जाने मात्र से ही सुमेर जैसा अपराधी जिसे ना जाने कहां कहां ढूंढा गया, उसने भी अपने सारे हथियार डाल उस समी के यहां माली का काम चुना, ये वही सुमेर था , जिसने ना जाने कितने अंग्रेजी अफसरों के एक साथ सिर उड़ा दिए थे, सुमेर के नाम सुनते ही बड़ा सा बड़ा बदमाश हथियार डाल देता था, और जब उस दिन भव-भूत समारोह में पूर्णाहुति के समय इस शहर के गणमान नागरिकों जिसमें स्वयं कलेक्टर, पुलिस प्रशासनिक अधिकारी और ना जाने कितने मंत्री शामिल थे, और जब उन्होंने सुमेर को पुष्पगुच्छ के साथ समी के चरणों में बैठा तो उसकी आंखें खुली की खुली रह गई , लेकिन सभी जानते थे जिसके सर पर एक बार भी समी अपना हाथ रख दे, उसके लिए ईश्वरी सत्ता भी झुक कर सभी समृद्धि प्रदान कर देती है। कुछ प्रभाव ही ऐसा है .........
क्या तुम जानती हो कि जो तुम कहने जा रही थी, उसका क्या मतलब है.... हां यह सच है कि समी ना पुरुष दिखता है ना वह स्त्री है, वह तो सिर्फ भगवान शिव की भक्ति में रमा रहने वाला एक एकाकार जगदंबे का ऐसा सेवक है जिसने मात्र अर्धरात्रि में स्त्री स्वरूप ,सिर्फ एक स्त्री हट को चूर चूर करने और ईश्वरी शक्ति का प्रभाव सिद्ध करने हेतु प्राप्त कर लिया....
समी बचपन से ऐसा नहीं था, वह एक सरल स्वभाव का दृढ़ निश्चय ईश्वरी शक्ति का भक्त था, उसके मां बाप के बारे में कोई नहीं जानता, बस इतना पता है कि किसी भी समस्या होने पर आज की ही तरह उस समय भी लोग उसके पास कोर्ट कचहरी के चक्कर में ना पड़ जा कर अपनी समस्याएं सुलझा लिया करते थे।
ठीक इसी तरह किसी दूसरे प्रदेश से आई हुई एक नकचढ़ी लड़की जो नई दुल्हन की तरह इस शहर में आई थी , लेकिन उसे इस शहर की शांति पूर्वक का आवोहवा पसंद नहीं आई ,क्योंकि वह आजादी के नाम पर जिंदगी जीना चाहती थी, ठीक तुम लोगों की तरह.... नॉनसेंस कहते हुए अमृत जी का गुस्सा चरम सीमा पर था, तो वहीं समी के लिए सत्कार भी ठीक उसी स्तर पर..... और वो ही क्या ,, अगर यह बात किसी और के सामने कह दि होती तो शायद शीतल के गाल अभी तक लाल हो चुके होते,
अमृत जी कह रहे थे कि कुछ ऐसे ही जब संध्या वंदन के पश्चात गांव वाले ग्राम सभा और विचार-विमर्श चल रहा था, तभी वैशाली को ले उसके ससुर पति और घरवाले पहुंचे, जिसमें उन्होंने अपनी बहू द्वारा झूठे आरोप लगाना और अपने पति को जबरदस्ती बाहर दूसरे शहर में नौकरी करने के लिए विवश करना , ताकि वैशाली अपनी मनमानी जिंदगी जी सके.....बताया जा रहा था,
चूँकि समस्या ग्राम सभा के समक्ष थी , इसलिए पहले बुजुर्ग ने प्यार से समझाया , लेकिन वह कहां किसी की मानने वाली थी, सब की बात को अनसुना कर पूरे गांव में धमकी देने लगी कि मैं सब के खिलाफ शिकायत दर्ज कराऊंगी,
तभी समी अपनी पूजा से उठा और शांति पूर्वक वैशाली से बोला, शांत हो जाओ वैशाली, मैं जानता हूं कि तुम्हारी समस्या क्या है ??और यह भी जानता हूं कि तुम किस कारण यह सब कर रही हो, इस शिव दरबार में भवानी की इच्छा से किसी को मुंह खोलकर कुछ कहने की जरूरत नहीं, सब कुछ जान और समझ लेने की शक्ति भी दी है मुझे,
सबसे पहली बात तुम इस छोटे से बच्चे को जो अभी मात्र दो माह का भी नहीं हुआ है, को माध्यम रख सिर्फ आपने मातृत्व होने के आधार पर, क्योंकि बच्चे को सिर्फ तुम ही दूध पिला सकती है....आपको सिर्फ इतनी सी बात को आधार रख अपने सास ससुर और पति को ब्लैकमेल कर रही हो, यह कहां तक जायज है...
क्या तुम्हें ऐसी स्त्री स्वभाव शोभा देता है? सिर्फ अपनी मनमानी के लिए उस भगवान स्वरूप बच्चे को तो शैतान भी भूखा ना रखें और तुम ऐसा करती हो ,ऐसा करना कहां तक सही? और यह सभी ग्रामीणवासी तुम्हारी भलाई के लिए ही कह रहे हैं, कहते हुए समी उन्हें समझाने लगा था।
तब वो भी एक चिर युवा था, जिसने ना जाने कुश्ती के मैदान में कितने लोगों को पछाड़ा होगा, लेकिन वैशाली तो सिर्फ बहस पर टिकी हुई थी, उसे बड़े बुजुर्ग आध्यात्मिक शक्ति किसी से कुछ न लेना देना, उसे तो सिर्फ समी के रूप में एक चिर युवा युवक की नजर आ रहा था, उसे उसके मुख मंडल पर उसकी जगह क्रोध नजर आ रहा था, इसलिए शायद उसने अपने संस्कार वस हट के कारण उसे ही चुनौती देते हुए अपने बच्चे को वहीं जमीन पर रखकर कह डाला कि, कौन समी??? कैसा समी??? मुझे यहां लाने की क्या जरूरत है,
पुरुष प्रधान समाज और पुरुष से मातृत्व की कल्पना निरर्थक, तुम क्या जानते हो स्त्री स्वभाव को.... कभी कल्पना भी की है आपने, अपने आप में किसी स्त्री की, हां मैं कहती हूं और भूखा रखती हूं इस बच्चे को , अगर इस ग्राम कि तुम सच्ची आस्था हो और वाकई तुम्हें भवानी में इतना ही विश्वास है तो हां मैं बैठी हूं तुम्हारी चौखट के सामने, अगर इस बच्चे को रोने से तुम रोक सको तो रोक देना ,कहते हुए उसने उस बच्चे को वहीं जमीन पर रख दिया ,जिसे समी ने बड़े प्यार से गोद में उठाया और बोला, यदि बात सिर्फ समी की हो तो चल जाता, लेकिन पगली तूने तो मातृशक्ति को ही ललकार दिया..........
जाओ जीवाजी अपनी बहू को लेकर, अब यह बच्चा समी की जिम्मेदारी है, यकीन रखना तुम्हारे कुल का बड़ा नाम करेगा.....जहां बहू जाना चाहे उसे जाने दो ,कल सुबह इसे स्टेशन छोड़ आना।
आज समी भवानी से एक नया वरदान मांगेगा, हां, मैं भी इस बच्चे के लिए मातृत्व स्वीकार करता हूं, ठीक है... कल फिर मिलेंगे जैसे भवानी की इच्छा , कहते हुए समी ने बच्चे को गोद में उठाया और गांव वाले को प्रणाम कर विदा किया।
सभी अचंभित थे , लेकिन क्रोध में भी हर कोई जवाब चाहता था और चमत्कार के दर्शन करना भी, वह जानते थे कि समी कोई सामान्य पुरुष नहीं , जिसे वैशाली ने ललकारा है, इसलिए सब शांति पूर्वक लौट गए और वैशाली गुस्से में फनफनाती हुई सभा से बाहर चली गई।
जीवाजी समी की सत्ता को अच्छे से जानते थे, इसलिए बिना कोई शक किये चौखट से बाहर जाकर परिवार समेत बैठ गए.....
समी बच्चे को गोद में उठा मंदिर में पहुंचा और भवानी का स्मरण कर शिव सत्ता को पुकारने लगा, जिसने अर्धनारेश्वर रूप ले सृष्टि का निर्माण किया, उस सत्ता का स्मरण करने लगा और देखते ही देखते वह नारी रूप में परिणित हो गया, वह अब अर्धनारेश्वर था, और अपने वक्ष स्थल से बच्चे को लगा दूध पिला रहा था, सारा गांव जब पलटकर देखता है तो समी उस बच्चे के लिए मां और पिता दोनों ही रूप ले चुका था, वैशाली कदमों में थी.... और जीवाजी अपराध बोध में हाथ जोड़े खड़े थे.........
शेष अगले भाग में.............