सुबह की पावन बेला , परिंदो की चहचाहट
बढ़ते रवि की सवारी, और लालिमा आसमां
नए जीवन की तैयारी, और खुशियों की चमन
जीवन की यही भाषा, ना रुकना ना टहरना
नए दिन है नए मंजिल की शुरुवात है
बढ़ चले कर्म की रथ , सारथी मेहनत है
मन में अडिग विश्वाश , मंजिल पाना ही है
राह सन्मार्ग हो और कर्म निष्फल करना है
उस ईश्वर की दिखाए राह में चलना है
जीवन में त्याग और मन में दया की भावना
दिन दुखी का सहयोग और खुद की तलाश
मन में ना लोभ हो और ना ही ईर्ष्या की भाव
मन मेरे उस अनंत ब्रह्मा पर लीन हो
और कर्म मेरे सत और मन में प्रेम भाव हो
जीवन की हर पल खुशी और सद्भाव हो
खुद में व्यस्त , दूसरे की निन्दा से परे हो