12/6/22
प्रिय डायरी,
आज सुबह ही मैंने शब्द.इन पर सुनहरी सुबह पर कविता लिखी।
कविताओं के माध्यम से दैनिक जीवन में भी हम कहां कहां विचरण कर आते हैं।
हम गृहणीयों का जीवन घर गृहस्थी और बच्चों तक सीमित होता है।
उनकी देखभाल और परवरिश, पड़ाई लिखाई, सभी कुछ देखना पड़ता है।
रविवार छुट्टी का दिन होता है और जल्दी उठने का मन नहीं होता है और फिर धीरे धीरे उठो जागो और चाय पीने के बाद सुस्ती दूर हो जाती है। अपनी दिनचर्या आरंभ हो जाती है।
बच्चे भी सुबह सवेरे नींद में खोये होते और जगाओ जल्दी उठने का मन नहीं करता है और किसी तरह उठे तो अलसाए से रहते हैं। फिर चाय पीने के बाद आलस्य दूर हो जाता है। फिर उनकी दिनचर्या आरंभ हो जाती है।
पतिदेव भी बहुत घर को संभालने में मदद करते हैं। तभी हम कुछ लिख पाते हैं।
धन्यवाद
अनुपमा वर्मा ✍️✍️