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स्वप्न-स्मृति

11 अप्रैल 2022

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आँख लगी थी पल-भर,

देखा, नेत्र छलछलाए दो

आए आगे किसी अजाने दूर देश से चलकर।

मौन भाषा थी उनकी, किन्तु व्यक्त था भाव,

एक अव्यक्त प्रभाव

छोड़ते थे करुणा का अन्तस्थल में क्षीण,

सुकुमार लता के वाताहत मृदु छिन्न पुष्प से दीन।

भीतर नग्न रूप था घोर दमन का,

बाहर अचल धैर्य था उनके उस दुखमय जीवन का;

भीतर ज्वाला धधक रही थी सिन्धु अनल की,

बाहर थीं दो बूँदें- पर थीं शांत भाव में निश्चल

विकल जलधि के जर्जर मर्मस्थल की।

भाव में कहते थे वे नेत्र निमेष-विहीन

अन्तिम श्वास छोड़ते जैसे थोड़े जल में मीन,

"हम अब न रहेंगे यहाँ, आह संसार!

मृगतृष्णा से व्यर्थ भटकना, केवल हाहाकार

तुम्हारा एकमात्र आधार;

हमें दु:ख से मुक्ति मिलेगी- हम इतने दुर्बल हैं

तुम कर दो एक प्रहार!"

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रचनाएँ
परिमल
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सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' की कविता 'परिमल' नामक संग्रह से ली गई है जो गंगा पुस्तक माला लखनऊ से 1929 ई. में प्रकाशित हुआ था। पुस्तक की हेडिंग के ठीक नीचे लिखा है: 'सरस कविताओं का संग्रह'।
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प्रेयसी

11 अप्रैल 2022
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घेर अंग-अंग को लहरी तरंग वह प्रथम तारुण्य की, ज्योतिर्मयि-लता-सी हुई मैं तत्काल घेर निज तरु-तन। खिले नव पुष्प जग प्रथम सुगन्ध के, प्रथम वसन्त में गुच्छ-गुच्छ। दृगों को रँग गयी प्रथम प्रणय-रश्म

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मित्र के प्रति

11 अप्रैल 2022
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(1) कहते हो, ‘‘नीरस यह बन्द करो गान- कहाँ छन्द, कहाँ भाव, कहाँ यहाँ प्राण ? था सर प्राचीन सरस, सारस-हँसों से हँस; वारिज-वारिज में बस रहा विवश प्यार; जल-तरंग ध्वनि; कलकल बजा तट-मृदंग सदल;

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हताश

11 अप्रैल 2022
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जीवन चिरकालिक क्रन्दन । मेरा अन्तर वज्रकठोर, देना जी भरसक झकझोर, मेरे दुख की गहन अन्ध तम-निशि न कभी हो भोर, क्या होगी इतनी उज्वलता इतना वन्दन अभिनन्दन ? हो मेरी प्रार्थना विफल, हृदय-कमल-के

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स्वप्न-स्मृति

11 अप्रैल 2022
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आँख लगी थी पल-भर, देखा, नेत्र छलछलाए दो आए आगे किसी अजाने दूर देश से चलकर। मौन भाषा थी उनकी, किन्तु व्यक्त था भाव, एक अव्यक्त प्रभाव छोड़ते थे करुणा का अन्तस्थल में क्षीण, सुकुमार लता के वाताहत

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अध्यात्म फल (जब कड़ी मारें पड़ीं)

11 अप्रैल 2022
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जब कड़ी मारें पड़ीं, दिल हिल गया पर न कर चूँ भी, कभी पाया यहाँ; मुक्ति की तब युक्ति से मिल खिल गया भाव, जिसका चाव है छाया यहाँ। खेत में पड़ भाव की जड़ गड़ गयी, धीर ने दुख-नीर से सींचा सदा, सफल

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दीन

11 अप्रैल 2022
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सह जाते हो उत्पीड़न की क्रीड़ा सदा निरंकुश नग्न, हृदय तुम्हारा दुबला होता नग्न, अन्तिम आशा के कानों में स्पन्दित हम - सबके प्राणों में अपने उर की तप्त व्यथाएँ, क्षीण कण्ठ की करुण कथाएँ कह जाते

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ध्वनि

11 अप्रैल 2022
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अभी न होगा मेरा अन्त अभी-अभी ही तो आया है मेरे वन में मृदुल वसन्त अभी न होगा मेरा अन्त हरे-हरे ये पात, डालियाँ, कलियाँ कोमल गात! मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर फेरूँगा निद्रित कलियों पर जगा

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मौन

11 अप्रैल 2022
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बैठ लें कुछ देर, आओ,एक पथ के पथिक-से प्रिय, अंत और अनन्त के, तम-गहन-जीवन घेर। मौन मधु हो जाए भाषा मूकता की आड़ में, मन सरलता की बाढ़ में, जल-बिन्दु सा बह जाए। सरल अति स्वच्छ्न्द जीवन, प्रात क

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भिक्षुक

11 अप्रैल 2022
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दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता। पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक, चल रहा लकुटिया टेक, मुट्ठी भर दाने को-- भूख मिटाने को मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता-- दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।

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तुम और मैं

11 अप्रैल 2022
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तुम तुंग - हिमालय - शृंग और मैं चंचल-गति सुर-सरिता। तुम विमल हृदय उच्छवास और मैं कांत-कामिनी-कविता। तुम प्रेम और मैं शांति, तुम सुरा - पान - घन अंधकार, मैं हूँ मतवाली भ्रांति। तुम दिनकर के खर

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संध्या सुन्दरी

11 अप्रैल 2022
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दिवसावसान का समय मेघमय आसमान से उतर रही है वह संध्या-सुन्दरी, परी सी, धीरे, धीरे, धीरे तिमिरांचल में चंचलता का नहीं कहीं आभास, मधुर-मधुर हैं दोनों उसके अधर, किंतु ज़रा गंभीर, नहीं है उसमें हास-व

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जूही की कली

11 अप्रैल 2022
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विजन-वन-वल्लरी पर सोती थी सुहाग-भरी--स्नेह-स्वप्न-मग्न-- अमल- कोमल -तनु तरुणी--जुही की कली, दृग बन्द किये, शिथिल--पत्रांक में, वासन्ती निशा थी; विरह-विधुर-प्रिया-संग छोड़ किसी दूर देश में था पवन

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बादल राग

11 अप्रैल 2022
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झूम-झूम मृदु गरज-गरज घन घोर। राग अमर! अम्बर में भर निज रोर! झर झर झर निर्झर-गिरि-सर में, घर, मरु, तरु-मर्मर, सागर में, सरित-तड़ित-गति-चकित पवन में, मन में, विजन-गहन-कानन में, आनन-आनन में, रव घ

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जागो फिर एक बार

11 अप्रैल 2022
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जागो फिर एक बार! प्यार जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें अरुण-पंख तरुण-किरण खड़ी खोलती है द्वार- जागो फिर एक बार! आँखे अलियों-सी किस मधु की गलियों में फँसी, बन्द कर पाँखें पी रही हैं मधु मौन अ

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