सुनो ये रोचक और सुंदर वर्णन
हरी चरणों में यह गाथा है अर्पण
थी एक सुंदर सुकुमारी
वृंदा नाम की ये राजकुमारी
बड़ी ही थी प्यारी
धर्म रखती वो बड़ी आस्था
हरी दर्शन प्यासी
तकती हरी का रास्ता
विष्णु भक्त थी वो सुकुमारी
इनकी गाथा बड़ी ही प्यारी
दानव कुल में जन्म पाया
दानवराज जालंधर को
जीवनसाथी के रूप में पाया
सच्ची श्रद्धा से पतिव्रत धर्म निभाया
जालंधर था देव शत्रु पुराना
देवप्रस्थ को चाहा उसने पाना
वृंदा की भक्ति और पतिव्रत धर्म
बना जालंधर की ढाल
देव को किया बुरा हाल
नारायण ने योजना बनाई
छल नीति हरी ने अपनाई
धरकर रूप जालंधर का
पहुंच वृंदा के पास
छली गई वृंदा हुआ जब आभास
पतिव्रत धर्म नष्ट हुआ
जालंधर के प्राणों को कष्ट हुआ
रण में छिन गए पिया के प्राण
बेसुध हुई वृंदा जब हुआ
अनहोनी का भान
सुकोमल वो सुकुमारी
पिया के विरह से वो दुखहारी
विष्णुजी को दे दिया श्राप
छल कर के किया आपने महापाप
भक्ति की मेरी ना रखी लाज
पत्थर का ह्रदय आपका
दया जरा आई
पत्थर की मूरत बन जाओ
भक्ति मेरी बिसराई
विरह प्रिय का आप भी सहोगे
बिछड़ कर प्रिय से व्यथित आप भी रहोगे
सुनकर वृंदा का करूं संताप
लक्ष्मी आई वृंदा के पास
विनती करुण अपनी सुनाई
वृंदा का ह्रदय को पिघलाई
हुई द्रवित माता तुलसी
दिया वरदान
श्री हरि की निराली ये माया
विधान हरी ने ये बनाया
तुलसी पेड़ के रूप में वृंदा आयेगी
सालिग्राम रूप में मुझे पाएगी
मुझे अति प्रिय एकादशी
पूरी होगी मन को चाह
कार्तिक शुक्ल पक्ष की
एकादशी को होगी तुलसी विवाह