वैसे तो हमारा मोहल्ला शांत व सुकून वाला था। हमारे घर के पास ही चार घर छोड़कर असलम चाचा रहते थे। उनकी बेटी शबनम मेरी बहुत अच्छी सहेली थी। वे अक्सर हमारे घर आती जाती थी, खासतौर पर मंगलवार को ।जब भी मेरी दादी हनुमान जी को बूंदयों का प्रसाद चढ़ाती थीं, तो शबनम सबसे पहले हाथ जोड़कर प्रसाद के लिए खड़ी मिलती।
दादी भी शबनम को ही सबसे पहले प्रसाद देती थी , क्योंकि उसे हनुमान चालीसा मुंह जबानी रटी हुई थी।
इसके बावजूद भी मेरी दादी को मेरा शबनम के घर जाना बिल्कुल पसंद नहीं था, क्योंकि वह मुसलमान थी। मेरी दादी पुराने विचारों वाली थीं। वह जात-पात और ऊंच-नीच में बहुत विश्वास रखती थीं। दादी का कहना था कि उनके घर का पानी पीने से भी हमें पाप लगेगा क्योंकि ना तो वह मंगलवार मानते थे और ना ही शनिवार…..!
सुबह के 9:30 बज रहे थे, "मीनू उठो सुबह के 10:00 बज रहे हैं। छुट्टी का मतलब यह नहीं होता कि तुम सारे दिन ही बिस्तर में पड़ी सोती रहोगी।" मां रसोई में खड़ी पराठे बनाती हुई जोर-जोर से चिल्लाकर मुझे उठा रही थी।
"हूं…" मैंने अंगड़ाई ली और बाई आंख खोलकर घड़ी की ओर देखा अभी तो 9:30 ही बजे हैं मां हमेशा ही समय आगे करके क्यों बताती है ? फिर भी मैं बिस्तर से उठ खड़ी हो गई ।
नहीं- नहीं मां की वजह से नहीं वह तो इसलिए क्योंकि आज का दिन बहुत खास था। क्यों खास था, वह तो आपको आगे की कहानी पढ़ कर ही पता चलेगा।
" आउट है , आउट है…" पापा जोर-जोर से तालियां मारते हुए चिल्ला रहे थे। मैंने हॉल में झांका वहां गुप्ता अंकल, मिश्रा अंकल, खन्ना अंकल और शर्मा अंकल ने हो हल्ला मचा रखा था।
सुबह-सुबह यह सब हमारे घर क्या कर रहे हैं और इतना शोर क्यों मचा रखा है? मैं सोच में पड़ गई। तभी कमेंट्री हुई कि पाकिस्तान की बैटिंग खत्म हो गई है ,अब इंडिया की बारी चालू होगी।
"अच्छा तो यह बात है अब समझी कि हमारे घर सारा मोहल्ला क्यों इकट्ठा हो रखा था आखिर आज इंडिया और पाकिस्तान के मैच का जो था। दोस्तों के साथ खुशी बढ़ जाती है और गम बट जाता है शायद इसीलिए आज सारे मोहल्ले के अंकल हमारे घर मौजूद थे।
मैंने मन ही मन सोचा।" चलो अच्छा ही है आज पापा को मेरे पीछे पड़ने का समय नहीं मिलेगा। और बाकी सारे दिन इन्हीं की आवभगत में लगी रहेगी। भगवान आप महान हो " मैं मन ही मन भगवान को धन्यवाद कर रही थी।
मैं खुशी से जोर-जोर से कूदने लगी। लेकिन मेरे खुश होने की वजह कुछ और ही थी…. आज का दिन जो इतना खास था । आप सोच रहे होंगे कि मैं पाकिस्तान और इंडिया के मैच के चलते मिली छुट्टी से खुश थी।
जी नहीं पाकिस्तान और इंडिया के मैच से आखिर बच्चों का क्या मतलब? आज तो खुशियां मनाने का और मुंह मीठा करने का दिन था।
दिवाली के अलावा यह एक त्यौहार था जो मुझे बहुत पसंद था। शबनम की मम्मी के जैसी सेवइयां तो पूरे मोहल्ले में कोई नहीं बना सकता था। उनकी सेवइयां में वह भर- भर कर किसमिस, काजू ,बादाम, पिस्ता और मखाने डालती थीं और उसकी खुशबू तो क्या कहने ! पिछली गली तक भी उनकी सेवइयां की खुशबू आती थी।
शाम के 7:20 बज रहे थे मैच अभी भी चल रहा था ।सभी टकटकी बांधे टीवी के सामने बैठे थे। चारों तरफ सन्नाटा छाया था ।शाम की अजान की आवाज हमारे कानों में साफ आ रही थी।
तभी दादी मां तुनककर कर बोली "यह लोग तो अपने अल्लाह से पाकिस्तान के जीतने की दुआ ही मांगते होंगे….! "
"अरे मां ,ऐसा कुछ नहीं है। यह तो उनकी पूजा का समय है ।वह रोज ही इस समय नमाज पढ़ते हैं।"मेरे पिताजी ने सफाई देते हुए कहा।
"हां ,हां मैं सब जानती हूं, ऐसे ही धूप में बाल सफेद नहीं किए हैं मैंने….. " दादी गुस्से से बोलती हुई अपने कमरे में चली गईं।
कमरे का दरवाजा बंद कर , दादी मां जोर-जोर से हरे कृष्णा ,हरे कृष्णा ,कृष्णा कृष्णा ,हरे हरे ,हरे रामा ,हरे रामा ,रामा रामा, हरे हरे….. भजन गाने लगीं। ऐसा लग रहा था मानो इंडिया और पाकिस्तान का मैच नहीं बल्कि भगवान और अल्लाह के बीच में श्रेष्ठता का मैच चल रहा हो।
तभी लाइट चली गई ।हमारे घर गुप अंधेरा हो गया। अरे ! पर असलम चाचा के घर तो लाइट से जगमग आ रहा था। तभी मुझे याद आया उन्होंने तो नया-नया इनवर्टर खरीदा है। और वह भी इंडिया और पाकिस्तान का मैच देखने के लिए। क्योंकि अक्सर शाम के समय हमारी गली में लाइट चली जाया करती थी।
असलम चाचा अपनी बालकनी में आए और मेरे पापा को आवाज देकर अपने घर आकर मैच देखने के लिए आमंत्रित किया। पापा ने आव देखा ना ताव फटाफट उनके घर की तरफ चल पड़े। "अरे रुक, अरे रुक कहां जा रहा है "कहती हुई दादी पापा के पीछे - पीछे चल दीं।
मैंने भी मौका देख दादी की साड़ी का पल्लू पकड़ा और उनकी पीछे हो गई।
आखरी बॉल थी और इंडिया को जीतने के लिए केवल 6 रन चाहिए थे। बैटिंग सचिन तेंदुलकर कर रहा था। असलम चाचा और पापा सोफे पर बैठ गए और उनके चेहरे पर गंभीरता के बादल छाए हुए थे। दादी कुछ बोलने ही वाली थी पर पापा ने उन्हें " मां 2 मिनट रुक जाओ। बस आखरी बॉल है " कह कर बिठा दिया। उन दोनों की चेहरे देखकर दादी की कुछ और बोलने की हिम्मत ही नहीं हुई और वह चुपचाप जाकर दरवाजे के पास जाकर खड़ी हो गई।
तभी सचिन ने एक शानदार सिक्स लगाया और गेंद स्टेडियम से उड़ती हुई बाहर चली गई। हुर्रे ….. पापा ने असलम चाचा को गले से लगा लिया और असलम चाचा ने भी पापा को अपनी गोद में उठा लिया। यह देखकर मेरी दादी की तो आंखें फटी की फटी रह गईं।
गली में सभी जोर-जोर से इंडिया- इंडिया के नारे लगा रहे थे। तभी सलमा चाची और शबनम सेवइयां लेकर आ गए।
"आइए बैठिए ना माताजी आज तो दोहरि खुशी का दिन है, आज ईद के शुभ अवसर पर हमारी इंडिया ने जीतकर हम सब की खुशी दोगुनी कर दी। मुझे तो पहले ही पता था और आज मैंने नमाज पढ़ते हुए भी अपनी इंडिया की जीत की ही दुआ मांगी थी। मुझे तो आज अल्लाह ने मेरी ईदी दे दी।
इंडिया के जितने और ईद की खुशी में सारे मोहल्ले वाले भाई बहनों के लिए मैंने सेवइयां भी बनाई हैं। कहते हुए सलमा चाची ने मेरी दादी के पैर छु लिए। सलमा चाची के मुंह से यह शब्द सुनकर मेरी दादी तो स्तब्ध रह गई। वह कुछ बोल ना सकी, लेकिन उनकी आंखों में पश्चाताप और खुशी के आंसू आ गए।
ईद मुबारक हो बेटी कहकर उन्होंने भी सलमा चाची को अपने गले से लगा लिया और शबनम को अपने कुर्ती की जेब से 500 रुपए का नोट निकालकर ईद मुबारक हो कहकर आशीर्वाद के रूप में दे दिया।
एक तरफ ईद की मिठास थी, तो दूसरी तरफ पटाखों का शोरगुल ऐसा मालूम होता था जैसे आज दिवाली ईद और इंडिया के जीत का मिलाजुला त्यौहार हो।
आज फिर हिंदुस्तान और पाकिस्तान एक हो एकता के त्यौहार में रंग गए थे! कितना प्यारा है हमारा देश और कितने प्यारे हैं हमारे देश के रंगीन त्यौहार । ऐसा लगता है जैसे एक सूत्र में रंग-बिरंगे मोतियों को पिरो दिया गया है जो एकता के अटूट प्रेम सूत्र से बंधे हो।
उस दिन के बाद ना ही कभी मेरी दादी ने मुझे उनके घर जाने से रोका और ना ही उनके घर खाने से। बल्कि अब तो हमारा पूरा मोहल्ला एक दूसरे के साथ मिलकर सारे त्योहार बहुत ही हर्ष उल्लास से मनाता है। अब हम सब मिलकर सारे साल त्योहारों का सीजन मनाते हैं और एक साथ मिलकर एक दूसरे उसे अपनी खुशियां बांटते हैं।
✍️स्वरचित
लिपिका भट्टी