आज याद आ रहा है ना जाने मुझे क्यों वह आंगन,
वह हरे भरे खेतों में दौड़ना, वह कच्चे आमों की सुगंध,
वह तितलियों के संग भागना, वो करनी सहेलियों से चिढ़हन,
वह भाई के साथ पंजा लड़ाना, उसके जीत जाने पर करनी उससे जलन…
गुड़हल से मंडप को सजाना, बनाना अपनी गुड़िया को दुल्हन,
वो सावन के खूबसूरत झूले, वह फूलों से महकता चमन,
वह गिल्ली डंडे से शीशे चटकाती हमारी धमाल चौकड़ी,
जो कर देती थी गली मोहल्ले की आंटियों की नाक में दम…
वाह! दोस्तों क्या दिन थे वह भी, याद आते हैं अब हरदम,
वह पापा का फूलों वाली फ्रॉक लाना ,
वह दादी मां का करना हमारी सलामती के लिए सिमरन,
काश! लौट आए मस्ती के दिंन वह प्यारे,
काश! लौट आए वह मेरा बीता हुआ बचपन….