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सत्य और अहिंसा

18 दिसम्बर 2022

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“पिताजी -पिताजी देखो आर्यन ने मेरी चॉकलेट छीन ली, आप इसकी पिटाई करो। “, रोती बिलखती  ३  साल  की शायना अपने पिता अक्षय से  अपने बड़े भाई की नाइंसाफी की गुहार लगा रही थी। 


“अरे सुबह से इन दोनों ने तो मेरा दिमाग खराब कर दिया है रोज सुबह की इनकी चिड़चिड़ा मेरा बस चले तो इतवार को भेजने स्कूल ही भेज दिया  करुँ “, गायत्री रसोई में आलू के पराठे देखते हुए बड़बड़ा रही थी। 


 “ उई , मम्मी देखो भैया मेरी चोटी खींच रहा है”,   शायना ने आर्यन के बाल अपनी मुट्ठी में दबोच रखे थे और अपने तीखे दातों से उसकी कलाई पर काटने को बढ़ रही थी। 


 आर्यन ने उसे एक थप्पड़  जड़कर  दूर धक्का मार दिया ,” मम्मी भैया ने मुझे मारा मुझे मेरी चॉकलेट दिलाओ नहीं तो मैं इस चॉकलेट के बदले १० और चॉकलेट लूंगी। 


“  हां, जरूर दिलाता हूं तुझे १०  चॉकलेट मम्मी इसको तो जून में छोड़ आओ यह मुझे काटने वाली थी बंदरिया कहीं की..... !


“ अरे तुम दोनों को तो.....   टीवी के सामने अखबार खोलकर पढ़ते  हुए उनके अक्षय ने उन्हें अपनी तरफ आने का इशारा किया”


“बोलो क्या बात है, सुबह-सुबह यह कोहराम क्यों मचा रखा है? आज तो सत्य और अहिंसा का उत्सव मनाने का दिन है और तुम दोनों ने सुबह-सुबह ही अहिंसा छेड़ दी…. “ ,  दोनों को  कान खींच कर डाल लगाते हुए अक्षय गुस्से से लाल पीला होने लगा। 


“ चलो चुपचाप डाइनिंग टेबल पर बैठ जाओ मां नाश्ता लाती ही होगी”,  अक्षय ने डाइनिंग टेबल की ओर इशारा करते हुए दोनों बच्चों को चुपचाप वहां बैठने को कहा। 


 टीवी पर गांधी जी की जीवनी पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म दिखाई जा रही थी। “  पापा गांधीजी ने हमें आजादी कैसे  दिलाई “ बड़ी उत्सुकता से आर्यन ने अपने पिता से पूछा?


“ बेटा गांधी जी ने हमें आजादी सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए दिलाई “


आर्यन हैरान होते हुए “वह कैसे पापा?”


“बेटा सत्य बहुत बलवान होता है गांधी जी ने एक बार कहा था  -”कि मुझे याद नहीं कि मैंने कभी बचपन में भी झूठ बोला हो” 


“ पिताजी सत्य बोलना तो बहुत कठिन है,  और कभी भी कोई लड़ाई ना करे  यह कैसे हो सकता है?” आर्यन उलझन में था। 


 अक्षय उसे  समझाते हुए बोला  “ बेटा गांधी जी परम सत्यवादी थे और उनका मानना था कि सत्य की हमेशा ही विजय होती है और वह यह भी जानते थे कि हम अंग्रेजों से हिंसा के बल पर नहीं जीत सकते किंतु अहिंसा के मार्ग पर चलकर हम उनका मनोबल तोड़ सकते थे। 


 बस यही गुरु मंत्र है जिसने हमें गुलामी की बेड़ियों से मुक्त करवा दिया। “  अक्षय गंभीर स्वर में आर्यन को समझाते हुए बोल रहा था। 


“अच्छा पिताजी क्या हमें भी हमेशा सकते ही बोलना चाहिए?” आर्यन अपने पिता से टेढ़ी गर्दन कर अपनी ठुड्डी  पर उंगली रख कर हिलाते,  सोच में डूबा हुआ सा था। 


“ हां बेटा बिल्कुल सत्य कड़वा जरूर होता है किंतु सत्यवादी मनुष्य  का हमेशा आदर व सम्मान होता है”,  बड़े गर्व से अक्षय अपनी आंखें बड़ी कर सीना ताने समझाने लगा। 


“ देखो बेटा एक झूठ छुपाने के लिए हमें और झूठ बोलने पड़ते हैं इसलिए बेहतर यही होता है कि हम सत्य का सामना करना सीख ले”,  अक्षय आर्यन की पीठ थपथपाते हुए  उसे बड़े ही प्रेम से समझा रहा था। 


तभी कांच टूटने की आवाज से सबका ध्यान भंग हो गया, मुड़कर देखा तो कॉस्को की बॉल आलू के पराठे में पड़ी हुई थी। 


अक्षय के तन बदन में उस बॉल को देखकर आग लग गई उसने लपक कर बटर नाइफ उठाया और उसी बटर नाइफ थे उस कॉस्को की बॉल की चीर फाड़ कर डाली। 


“ आज तो मैं इन बच्चों की खूब पिटाई करूंगा”, अक्षय जलाते हुए उठा और खिड़की से नीचे झांक कर बच्चों पर जोर जोर से चिल्लाने लगा। 


तभी डोर बेल बजी और सामने बनर्जी जी अपने सुपुत्र ऋषभ को लिए  हाथ जोड़े खड़े थे। “ माफ कर दीजिए बच्चों को अक्षय जी अगली बार से यह बात में ही खेला करेंगे असल में कल रात बहुत बारिश हुई पार्क में पानी भरा हुआ था इसलिए बच्चे गली में खेल रहे थे। “


“ आपको पता भी है कितना महंगा कांच लगाया था मैंने इसके पैसे भरने होंगे आपको” चिल्लाते हुए अक्षय का गुस्से से देख रहा था ।


 अक्षय ने आगे बढ़कर ऋषभ का कान मरोड़ दिया और ऋषभ दर्द से चिल्लाने लगा” सॉरी अंकल माफ कर दीजिए अगली बार ऐसा नहीं होगा”


“ अरे अरे आप बच्चे को छोड़ दीजिए बताइए आप के कांच के कितने पैसे हुए मैं पूरे पैसे भर देता हूं कहीं तो मैं खुद लाकर कारपेंटर से आपकी खिड़की बनवा दूंगा” , ऋषभ के पिताजी अभी हाथ जोड़कर खड़े थे। 


“ हां ठीक है ₹2000 दे दीजिए मैं खुद ही करवा लूंगा,” अक्षय को पैसे की बात सुनकर कुछ शांति पड़ी। 


 पैसे देकर और  फटी हुई गेंद लेकर ऋषभ के पिताजी वहां से चले गए। 


“ पिता जी यह तो कल रात को तूफान में ही टूट गया था ना फिर आपने अंकल से पैसे क्यों लिए , और तो और आपने बिचारे ऋषभ को यूं ही डांटा और उसका कान भी मरोड़ा”, आर्यन दुखी और गुस्से भरी निगाहों से अपने पिता की ओर देख रहा था और उनसे सत्य सुनने का अभिलाषी था। 



“ अभी तो आप मुझे सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ा रहे थे किंतु आप तो स्वयं ही.....  कहते हुए आर्यन वहां से चला गया  ।


   गायत्री अक्षय की नजरों में शर्मिंदगी देख सकती थी , “ अक्षय मेरे पिताजी कहां करते थे किसी को पाठ पढ़ाने से पहले हमें खुद वह पाठ पढ़ लेना चाहिए “ कहती हुई गायत्री आर्यन के कमरे की ओर बढ़ गई। 


स्वरचित

लिपिका भट्टी





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