२०१९ में करोना महामारी ने विश्व में अपने पैर फैलाने शुरू कर दिए थे । २ मार्च २०२० तक इस घातक वायरस ने हिंदुस्तान में भी अपने पैर पसारने शुरू कर दिए। और देखते ही देखते २४ मार्च २०२० को संपूर्ण भारत में लोक डाउन करने का आदेश जारी कर दिया गया।
लगभग दोपहर के २:४५ बज रहे थे, तभी लाउडस्पीकर पर अनाउंसमेंट हुई, “सारे अध्यापक गण कॉन्फ्रेंस हॉल में एकत्रित हो प्रधानाचार्य जी को कोई बहुत महत्वपूर्ण जानकारी साझा करनी है।” छुट्टी का समय था इसीलिए रुकने की अनाउंसमेंट सुनकर सब थोड़ा परेशान हो गए , सब एक दूसरे से पूछने लगे कि आखिर क्या कारण होगा कि प्रिंसिपल मैडम ने अकस्मात मीटिंग बुला ली है।
सभी को घर जाने की जल्दी थी , इसलिए बिना समय बर्बाद करें सब हावड़ा - दबड़ी में कॉन्फ्रेंस हॉल में पहुंच गए। १० मिनट के अंदर ही प्रिंसिपल मैडम भी कॉन्फ्रेंस हॉल में मौजूद थी। उनके हाव भाव देखकर लगता था , कोई बहुत ही गंभीर मुद्दा है। उन्होंने हम सब को बताया कि दिल्ली में लॉकडाउन की घोषणा हो चुकी है और कल से स्कूल भी बंद रहेंगे ऐसे में हम सब अध्यापकों की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाएगी और उसके लिए हमें जल्द से जल्द तैयारी करनी होगी। उन्होंने हमें अगले दिन सुबह १०:३० बजे ऑनलाइन जूम मीटिंग पर आने के लिए कहा और सबको हौसला बंधाते हुए विदा किया।
अगले दिन ऑनलाइन मीटिंग में विद्यार्थियों की पढ़ाई किस प्रकार बिना रुके प्रभावशाली तरीके से हो सके इस पर चर्चा की गई। सभी ने अपने अपने पक्ष रखें और अगले ही दिन से बिना समय बर्बाद करें हमने जूम से ऑनलाइन क्लासेस लेना चालू कर दिया।
शुरुआती तौर पर अध्यापकों एवं विद्यार्थियों दोनों को कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा पर देखते ही देखते सभी इस नई प्रक्रिया में सुचारू रूप से ढल गए। ऑनलाइन क्लासेस में पढ़ाना , व बच्चों का सही से समझ पाना आसान नहीं था, इसलिए सभी अध्यापक गण स्कूल का समय समाप्त होने के बाद भी घंटों तक बैठकर नई- नई तकनीक बनाते कि किस तरीके से बच्चों को पढ़ाया जाए कि उन्हें सब सही तरीके से और बेहतर ढंग से समझ आ सके। सभी को बच्चों के सुनहरे भविष्य को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी बखूबी निभाने की द्रण इच्छा थी।
बिना संकोच सभी अध्यापक गणों ने हर प्रकार से अपना योगदान करने का निश्चय किया। हमें ना केवल बच्चों के भविष्य बल्कि उनकी सेहत का भी ध्यान देना था। इसीलिए हमने सोचा की पढ़ाई के साथ साथ हम बच्चों के संपूर्ण विकास के लिए उनके साथ ऑनलाइन खेल जैसे कि चैस ,क्विज ,पहेलियां इत्यादि भी खेला करेंगे और उनके व्यायाम के शिक्षक भी बनेंगे। हालांकि हम में से कईयों को व्यायाम व एरोबिक्स करने का कोई ज्ञान नहीं था, फिर भी बच्चों के लिए हम पहले यूट्यूब से खुद सीखते और फिर अगले दिन ऑनलाइन क्लास में उन्हें सिखाते ताकि इस कठिन समय में उनकी सोच में सकारात्मकता बनी रहे।
मैंने देखा कि कुछ बच्चे थे जो कि ऑनलाइन क्लास लेने नहीं आ रहे थे। उनके माता-पिता से बातचीत के बाद पता चला कि वह इतने गरीब थे कि वह अपने बच्चे के लिए लैपटॉप तो दूर एक फोन भी नहीं ले सकते थे जिस पर कि वह ऑनलाइन क्लास ले पाते। मेरा मन उनकी पीड़ा सुनकर बहुत विचलित हो गया। मैं सोचने लगी कि कैसे मैं इन बच्चों की तकलीफ दूर कर सकती हूं। अकेले मैं केवल एक या दो बच्चों की ही मदद कर सकती थी , पर और भी क्लासेस में ऐसे कई बच्चे थे, जो गरीबी के चलते या फिर इस महामारी की मार से अपनी पढ़ाई जारी रखने में सक्षम नहीं थे।
मैंने अपने दिल की परेशानी अपने पति को बताई । वह एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है, इसलिए उनकी बहुत सारे लोगों से जान पहचान है। महामारी के चलते वह घर से ही अपना काम कर रहे थे। उन्होंने अपने ग्रुप में एक ऐड डाली जिसमें लिखा था; “ जिस किसी के पास फालतू टच स्क्रीन मोबाइल हो वह उसे गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए नीचे लिखे पते पर कोरियर करा सकता है। “ बस फिर क्या था देखते ही देखते हमारे पास ५० -६० मोबाइल जमा हो गए।
मैंने और मेरे पति ने मिलकर वह सारे मोबाइल निर्धारित बच्चों को पहुंचा दिए और उनकी शिक्षा दोबारा से चालू हो गई। मेरे मन को असीम शांति की अनुभूति हुई। मैं तहे दिल से उन सभी लोगों की शुक्रगुजार हूं जिन्होंने ऐसे मुश्किल समय में इंसानियत पर विश्वास कायम रखने में अपना योगदान दिया।
परंतु अभी मुश्किलों का अंत नहीं हुआ था। अभी भी कई बच्चे थे जो कि ऑनलाइन क्लासेस को सही ढंग से नहीं ले रहे थे और जो ले भी रहे थे , उनका रिजल्ट पहले से बहुत गिर चुका था। जो कि सभी के लिए बहुत ही चिंता का विषय बन हुआ था। मैं और मेरी सहेली रश्मि जो कि एक दूसरे स्कूल में टीचर थी, हम दोनों ने सोचा कि इन बच्चों की मदद करने के लिए हमें पहल करनी होगी। हमने फ्री ऑनलाइन ट्यूशन क्लासेस चालू करी और बच्चों को हमारी क्लासेस जॉइन करने के लिए कहा। ऐसा करने के लिए हमें अपनी नौकरी त्यागनी पड़ी, किंतु मन में दुख की बजाय सुख और आत्मविश्वास की लहर दौड़ रही थी।
केवल कदम बढ़ाने की देर थी ,हमारे इस मिशन पर देखते ही देखते कई टीचर्स जुड़ गए। कहते हैं ना एक से भले दो....... ! बस फिर क्या था सारी मुश्किलों को पार करते हुए सभी शिक्षकों ने सही मायने में शिक्षक होने का धर्म निभाया और अपने विद्यार्थियों को सुरक्षित भविष्य का मार्गदर्शन कराने का दायित्व पूर्ण रूप से निभाया।
चाहे जितनी भी मुश्किलें रास्ते में क्यों ना आए , शिक्षक का परम धर्म है ,अपने छात्रों का भविष्य सुरक्षित करना। उसके लिए चाहे उन्हें इतनी भी कठिनाइयों का सामना क्यों ना करना पड़े वह कभी पीछे नहीं हटते।
इसीलिए हमारे शास्त्रों में कहा गया है:-
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
भावार्थ: गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हि शंकर है; गुरु हि साक्षात् परब्रह्म(परमगुरु) है; उन सद्गुरु को प्रणाम.
यह कहानी उन सभी शिक्षकों को समर्पित है जिन्होंने करोना महामारी से डटकर सामना करा व अपने विद्यार्थियों के सुनहरे भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए हर प्रकार से अपना योगदान दिया। उन्होंने अपने कठिन परिश्रम से यह साबित कर दिया की कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती …. ।