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2070 की दुनिया

13 अक्टूबर 2022

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दुनिया बदल रही है। हां जी, दुनिया बदल रही है और बहुत तेज रफ्तार से दुनिया बदल रही है।

हां ,शायद आने वाले समय में हम नहीं होंगे, पर हमारे जिगर के टुकड़े तो होंगे। और बहुत कामयाब होंगे , इसमें कोई संदेह नहीं है। शिक्षा तकनीक और औद्योगिक क्रांति से हमारे बच्चों का सुनहरा भविष्य तो निसंदेह बहुत सुरक्षित है। पर सवाल है आज पर? वह आज , जो आने वाले भविष्य के समक्ष सवाल बनकर खड़ा हो गया है!

कभी-कभी सोचती हूं कि आखिर हम उन्हें कैसी दुनिया देकर जाएंगे।
क्या वह दुनिया किसी काम की होगी ,या सिर्फ नाम की?

कभी-कभी आंखें बंद करके अपने बचपन के उन क्षणों का स्मरण करती हूं …गहरी सांस ले , उस तरोताजा महकती हुई हवा की सुगंध आज भी मेरे मन को प्रसन्न कर देती है। वह घास के खुले मैदान, वह चिड़ियों का चहचहाना, सुबह की नरम रश्मि…सूरजमुखी के फूलों का वह सूर्य का पीछा करना….आज तो सूर्य दर्शन भी दुर्लभ है। चांद और तारों की तो बात ही ना करें।

वर्तमान समय में तो सांस लेना भी दुश्वार हो गया है। हर एक विश्वास के साथ ऐसा प्रतीत होता है जैसे जीवन का एक- एक क्षण घट रहा है। इतना जहर घुल गया है इस हवा में।

कैसा होगा आने वाला समय? क्या हमारे बच्चों को पीने योग्य पानी भी मिल पाएगा? या समस्त धरा जलमग्न हो जाएगी? एक तरफ तो जल स्तर बहुत ही नीचे जा चुका है ,तो दूसरी तरफ ग्लेशियर्स पिघल रहे हैं। क्या होगा 2070 का भविष्य?

यूं तो दिन प्रतिदिन, हम नए-नए आविष्कार कर भविष्य में आने वाली बाधाओं पर निरंतर विजय परचम लहरा रहे हैं। परंतु हर नए अविष्कार का कोई ना कोई दुष्प्रभाव भी है ,जिसे इस क्षण तो हम नजरअंदाज कर रहे हैं, किंतु आने वाले समय में वही हमारे समझ विकराल रूप धारण कर खड़ा हो जाएगा।

उदाहरण के तौर पर- आज हमने हवा से पानी बनाने की मशीन का आविष्कार कर लिया है । बहुत खुश है हम सब, है ना ! ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि भविष्य में आने वाली पानी के संकट की समस्या पर हमने विजय प्राप्त कर ली है । किंतु हम यह भूल गए कि, अगर हमने वायु से भी सारा पानी खींच लिया तो वर्षा कैसे होगी? पेड़ पौधों की सिंचाई कैसे होगी? जीवन का संचार कैसे होगा?

हम इंसान जितनी तेजी से गगनचुंबी इमारतें बना रहे हैं, ऐसा प्रतीत होता है , वह दिन दूर नहीं ,जिस दिन हम इंद्रदेव के स्वर्ग तक जीवित ही पहुंच जाएंगे। क्या इसे ही उन्नति कहते हैं?
तो हां, मुझे विश्वास है आने वाले समय में हम इतनी उन्नति करने वाले हैं जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते।

गरीबी, बीमारी और अपने मन के द्वेष का तो पता नहीं किंतु हम ब्रह्मांड पर अपने-अपने परचम लहराने की होड़ में अवश्य ही दिखेंगे। चांद किसका है… इसकी लड़ाई आज ही छिड़ चुकी है। अब बारी है ब्रह्मांड की, ग्रहों की ,तारों की और ईश्वर बनने की…!

स्वरचित
लिपिका भट्टी








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