"मंगल, यद्यपि सत्य के समीपवर्ती है, फिर भी वह सत्य नहीं है; 'अमंगल' हमें विचलित न कर सके , यह सीखने के बाद हमें यह सीखना होगा कि 'मंगल' भी हमें सुखी न कर सके। हमें जानना होगा कि हम 'मंगल' और 'अमंगल' दोनों के परे हैं। वे दोनों सीमाबद्ध हैं; और हमें ये समझना होगा कि एक के रहने पर दूसरा रहेगा ही।"
-स्वामी विवेकानंद
१८९४, न्यूयार्क