"हो गए बागी सवाल"
वो लोग वतन बेच के,खुशहाल हो गए,वाशिंदा मेरे मुल्क के,कंगाल हो गए ।रखना पडा है गिरवी ,आबरू-ईमान को,बच्चे हमारे भूख से ,बेहाल हो गए ।रोटी की भूख कम थी ,चारा भी खा गए,सत्ता में सियासत के,जो दलाल हो गए ।है मुल्क तरक्की के, दौर-ए-सफ़र में यारो,कई राम-औ -रहीम के,बिकवाल हो गए ।लौ कंपकपा रही है,अरमान चिरागों