27 जून 2015
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D
अति-उत्तम
28 जून 2015
ati uttam vichar .aabhar
आज के विचार के माध्यम से बहुत अच्छी सीख
jeevan ke liye zaroori hai yah shiksha .aabhar
IT'S COMPLETELY A CATCH-22, FOR IF A PERSON IS A GOOD SPEAKER AND WELL-VERSED AT MAKING GOOD FRIENDS, MONEY WILL AUTOMATICALLY COME TO HIM....ANYWAY, IT'S A NICE THOUGHT!
मोच एवं सूजन(Sprains and swelling) ------------(कुछ घरेलू आसन तरिके मोच और सूजन से नीजाद पाने के लीऐ ।)----------------------------------------------------------------------------पहला प्रयोगः लकड़ी-पत्थर आदि लगने से आयी सूजन पर हल्दी एवं खाने का चूना एक साथ पीसकर गर्म लेप करने से अथवा इमली के पत्तों
सुधी साथियो,पुनः बादलों से सलाम लेने वाले, नदी किनारे बैठ, प्राणगीत, आशावरी, गीतिकाएँ रचने वाले गीतकार एवं कवि पद्मश्री गोपालदास 'नीरज' जी की एक अत्यंत सुन्दर रचना 'शब्दनगरी' के माध्यम से प्रस्तुत कर रहे हैं. पूर्ण विश्वास है कि यह रचना आप पढ़े बिना नहीं रह सकते...अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए।जिस
बात कहनी नहीं आती मुझे सिर्फ काव्य आता है शब्दकोष थोड़ा है मेरा मुझे सिर्फ भाव आता है यू समझना तो वैसे भी मुश्किल नहीं है पर आसान बातो की किसे आदत रही है समस्या एक है हमारी बुद्धि तुम्हारी ज्यादा है बात कहनी नहीं आती मुझे सिर्फ काव्य आता हैबात सही कही सबने कि रास्ते और भी है मगर जिस राह मै हू मुझे प्
काल्हि घरइतिन झनकि परीं,ना जानै हमते का होइगा,हम जाइत रहै कबिताई करै,ना जानै को काँटा बोइगा,हम कहा कि काँपी लै आओ,सब बेद पुरान उई दइ मारेन,जंउ कपार मा करकटु भरा रहै,उई छिन मा मुंहि ते बकि डारेन,औ लाल लाल आँखी किहिने,हमका खुब धद्धरि घुर्चैं,नेतवन के जइसे बोल बचन,उई प्रभु परसादी अस खर्चैं,हम तिनका द
सुधी साथियो,'बाघ' देखा है कभी आपने...? ज़रूर देखा होगा; और बहुत मुमकिन है कि कभी 'बाघ' शीर्षक की कविता का भी रस लिया हो ! अगर 'हाँ' तो अवश्य आपने डाo केदारनाथ सिंह की रचना पढ़ी होगी । 'बाघ' आपकी वो कविता है जो मील का पत्थर मानी जाती है । बहमुखी प्रतिभा के साहित्यकार डाo केदारनाथ सिंह सन 1934 में बलिया
प्रिय मित्रो,सन 1934, बरेली में जन्मे जाने-माने व्यंग्यकार और फिल्म पटकथा लेखक के पी सक्सेना के ज़बरदस्त लेखन से आप भली-भांति परिचित होंगे। उनकी गिनती वर्तमान समय के प्रमुख व्यंग्यकारों में होती है। हम ये कह सकते हैं कि यदि आपने हरिशंकर परसाई और शरद जोशी की रचनाएँ पढ़ी हैं तो के पी सक्सेना के व्यंग्य
तुम...सम्पूर्ण कल्पना भी नहीं,और ना ही तुम सम्पूर्ण सत्य ही हो । मस्तिष्क पटल पर शब्दों से खिंची,आड़ी-तिरछी स्पंदित रेखाओं की अनबुझी सी कोई मूरत हो ।सोंधी मिट्टी के लोंदे से बनी कोई अनजान सी स्वप्निल सूरत हो । सत्य और स्वप्न के बीच झूलत
'कविता' साहित्य भाषा के माध्यम से जीवन की मार्मिक अनुभूतियों की कलात्मक अभिव्यक्ति है। इस अभिव्यंजना के दो माध्यम माने गए हैं---गद्य और पद्य। छंदबद्ध, लयबद्ध, तुकान्त पंक्ति ही पद्य मानी जाती है जिसमें विशिष्ट प्रकार का भाव-सौंदर्य, सरसता और कल्पना का पुट होता है। मात्र छंदबद्ध रचना तब तक कविता नहीं
वसुआ, गोविंदपुर ग्वालियर में जन्मे कविवर बिहारीलाल का विवाह मथुरा के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। विवाह के बाद बिहारी, ससुराल में ही रहने लगे किन्तु जब उन्हें वहाँ निरादर का अनुभव हुआ तो आगरा आ गए। आगरा से जयपुर, राजा जयसिंह के दरबार में चले गए। कहा जाता है कि जयपुर नरेश राजा जयसिंह उस समय अपनी नव
तिरोहित :१- अदृश्य २- विलीन ३- लोचनातीत ४- अलेखा ५- अनदेखा प्रयोग : एक चेहरा है, जिसमे समाहित है ममता, प्रेम, स्नेह, वात्सल्य, माधुर्य....जिसे देखते ही तिरोहित हो जाती है ह्रदय की सारी पीड़ा ।
मधुकर :१-भौंरा २-भृंग ३-चंचरीक४-शैलेय५-मधुराज,प्रयोग: "कली-कली मँडराता फिरताकरता, फूल-फूल रसपानमधुकर डोले कविताओं में कवि सकल करें सम्मान।"
बेचारे ये नहीं कि जितना ये निष्ठुर जग है बेचारा,शिकार हैं ये नरपशुओं के भाग्य का कोई नहीं मारा। इनसे श्रम करवाने वाले पत्थर दिल ही होते हैं,दो जून की रोटी कौन कहे इनके हिस्से जूठी प्लेटें हैं। ये भी आँखों के तारे हैं किसी के सुंदर सपनों के जो धरती कहीं बिछा लेते, कहीं ओढ़ आसमां' सोते हैं। हे प्रभु इन
अपेक्षा :१- वांछा २- आशा ३- अर्हता ४- इच्छा ५- प्रत्याशा प्रयोग : सभी मित्रों से अपेक्षा है कि 'शब्दनगरी' के साथ वे अपनी सहभागिता इसी भांति अनवरत बनाए रखेंगे।
"बड़ा आदमी वह कहलाता है जिससे मिलने के बाद कोई स्वयं को छोटा न महसूस करे।"
"किसी एक विचार को अपने जीवन का लक्ष्य बनाओ, कुविचारों का त्याग कर केवल उसी विचार के बारे में सोचो; तुम पाओगे कि सफलता तुम्हारे क़दम चूम रही है।"
"आप जैसे चित्र देखते हैं, जैसा संगीत सुनते हैं, जैसी किताबें पढ़ते हैं और जैसे लोगों की संगति करते हैं...एक दिन वैसे ही बन जाते हैं। सच मानिए, अच्छे चित्र देखेंगे तो आपकी छवि भी सुन्दर हो जाएगी, अच्छा संगीत सुनेंगे तो आपका मन सुन्दर होगा, अच्छी किताबें आपके मस्तिष्क को सुंदरता प्रदान करेंगी और अच्छे
"बच्चे ने परीक्षा में कितने अंक प्राप्त किये, यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितनी कि यह बात कि उसकी समझ कितनी अच्छी है। आखिर अच्छे और बुरे अंकों का भान हमें अन्य बच्चों के अंकों से तुलना करने पर ही तो होता है; ज़रा सोचिए, यदि आपका बच्चा आपके द्वारा प्रदत्त सुख-सुविधाओं की तुलना किसी अन्य बच्चे को उपलब्ध
"सावधान रहिए, जीवन में आपकी प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है !"-नीतिशास्त्र
"ईश्वर से कुछ मांगने पर न मिले तो उससे नाराज़ न होना क्योंकि ईश्वर वह नहीं देता जो आपको अच्छा लगता है, बल्कि वह आपको वही देता है जो आपके लिए अच्छा होता है।"
सरहद कीगर्म रेत परपेट के बल लेटेआग के गोलों सेबातें करतेजांबाज़ों को भीइंतज़ार है मॉनसून का।बस थोड़ा सा फ़र्क़ हैहम आस्माँ' निहारते हैं,और उनकी निगाहपरले टीले की चौकियों पर है।आमने-सामनेतनी बंदूकों काजब रुख़ बदलेगातभी बारिश होगीऔर निहाल कर देगीज़मीन के तपते सीने को!आम हवाएँ जब अपनारुख़ बदलेंगी और वोघर वापस
मन रे काहें को भरमत है तूतनिक रुक, सुस्ता ले कुछ देरयह पल फिर नहीं आने वाला लौट करजी ले यह लम्हा, जी भर कर।इस रोज़मर्रा की भागदौड़ में एहसास ही नहीं होता कब ज़िंदगी बंद मुट्ठी से रेत की तरह फिसलती जाती है। और हम अपने आज को, इस पल को, नज़र अंदाज़ कर भागते जाते हैं, आने वाले सुहाने कल की मृग-मरीचिका के पीछ
"विश्वासपात्र मित्र जीवन की एक औषधि है। हमें अपने मित्रों से यह आशा रखनी चाहिए कि वे उत्तम संकल्पों में हमें दृढ़ करेंगे, दोष और त्रुटियों से हमें बचाएंगे, हमारे सत्य, पवित्रता और मर्यादा के प्रेम को पुष्ट करेंगे, जब हम कुमार्ग पर पैर रखेंगे, तब वे हमें सचेत करेंगे, जब हम हतोत्साहित होंगे तब हमें उत्
"समस्त शारीरिक और मानसिक शक्तियों का आधार आत्मविश्वास ही है। इसके अभाव में अन्य सारी शक्तियाँ सुप्तावस्था में पड़ी रहती हैं। जैसे ही आत्मविश्वास जागृत होता है अन्य शक्तियाँ भी उठ खड़ी होती हैं और आत्मविश्वास के सहारे असम्भव समझे जाने वाले कार्य भी आसानी से पूरे हो जाते हैं ।"
साथियो,कितनी ही बार जाने क्या खोजते-खोजते हम कितना कुछ मध्य में पा जाते हैं किसी गंतव्य तक पहुँचते हुए। कुछ ऐसे ही किताब के पन्ने पलटते, आ पंहुचे 'आधुनिक मीरा', और हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती महादेवी वर्मा जी की इस कविता तक। वर्षा-ऋतु का आगमन भी हो चुका है, तो मीठी-मंद बयार और बारिश के मीठे झों
"जीवन में अच्छा पैसा कमाना न सीख सको तो अच्छे मित्र बनाना और अच्छी बात करना अवश्य सीख लो, जीवन की कई कमियाँ महसूस ही नहीं होंगी।"
"मुझ पर ग़ुस्से में कही हुई उन लोगों की बातों का असर ज़्यादा हुआ है जो क्रोध भी बड़ी विनम्रता से करते हैं ।"-अज्ञात
यदि कोई व्यक्ति किसी को कभी सम्मान नहीं देता तो ये तय है कि उसे स्वयं किसी से कभी सम्मान नहीं मिला।
मैं अकेला और पानी बरसता हैप्रीती पनिहारिन गई लूटी कहीं है,गगन की गगरी भरी फूटी कहीं है,एक हफ्ते से झड़ी टूटी नहीं है,संगिनी फिर यक्ष की छूटी कहीं है,फिर किसी अलकापुरी के शून्य नभ मेंकामनाओं का अँधेरा सिहरता है।मोर काम-विभोर गाने लगा गाना,विधुर झिल्ली ने नया छेड़ा तराना,निर्झरों की केलि का भी क्या ठि
"हैट टाँगने के लिए कोई भी खूंटी काम दे सकती है। उसी तरह अपने मनोभावों को व्यक्त करने के लिए कोई भी विषय उपयुक्त है। असली वस्तु है हैट, खूंटी नहीं। इसी तरह मन के भाव ही तो यथार्थ वस्तु हैं, विषय नहीं।"-ए.जी. गार्डिनर
"मन का विकास करो और उसका संयम करो, उसके बाद जहाँ इच्छा हो, वहाँ इसका प्रयोग करो - उससे अति शीघ्र फल प्राप्ति होगी। यह है यथार्थ आत्मोन्नति का उपाय। एकाग्रता सीखो, और जिस ओर इच्छा हो, उसका प्रयोग करो। ऐसा करने पर तुम्हें कुछ खोना नहीं पड़ेगा। जो समस्त को प्राप्त करता है, वह अंश को भी प्राप्त कर सकता
"जब लिखे बिना रहा न जाए उस वक़्त जरूर लिखो क्योंकि उन ख़ास लम्हों में लिखता तो कोई और है, आप सिर्फ़ एक ज़रिया होते हैं ।"-अज्ञात
"आदमी में जो गुण महान समझे जाते हैं, उन्हीं के चलते लोग उससे ईर्ष्या भी करते हैं ।"-नीत्से
"ज़िन्दगी में ख़ुश रहने के लिए बहुत ही कम चीज़ों की ज़रूरत होती है ।"-अज्ञात
"मंगल, यद्यपि सत्य के समीपवर्ती है, फिर भी वह सत्य नहीं है; 'अमंगल' हमें विचलित न कर सके , यह सीखने के बाद हमें यह सीखना होगा कि 'मंगल' भी हमें सुखी न कर सके। हमें जानना होगा कि हम 'मंगल' और 'अमंगल' दोनों के परे हैं। वे दोनों सीमाबद्ध हैं; और हमें ये समझना होगा कि एक के रहने पर दूसरा रहेगा ही।"-स्वा
हमारी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि हम अपने जीवन का प्रतिपल, प्रतिघंटा और प्रतिदिन कैसे व्यतीत करते है।
हो गए थक कर शिथिल ,जो दिल दरकने से लगे हों ,दृष्टि से हो लक्ष्य ओझल ,पथ भटकने से लगे हों ,डगमगा कर गिर रहा है ,मनुज का आस्तित्व इस पल ,खो चुकी आदर्श सारे ,सभ्यता है व्यथित ,व्याकुल ,सारथी बन कृष्ण सा ,फिर रास्ता ,उसको दिखा दे ।
https://www.facebook.com/VastuPhoto > सामान्यतः घर में उपयोग में आने वाली कुछ वस्तुएं नकारात्मक उर्जा के स्त्रोत के रूप में सामने आते हैं > जैसे झाड़ू ---घर की समस्त गंदगी को झाड़ू से साफ किया जाता है इसलिए झाड़ू के अंदर नकारत्मक उर्जा का होना स्वाभाविक है > डस्ट बिन ---घर की गंदगी को इस डिब्बे मे
ख्वावों के बाक़ययात हक़ीक़त में ढल गए ,जबसे दिलों के जज्ब ,अना में बदल गए ।वो चश्मदीद थे वहाँ,दौर-ए-जूनून में,जब पेशगी हुई तो, जुवां से मुकर गए ।हाँ, सब ही गुनाहों में ,बराबर शरीक थे ,कैसे शरीफ आप ,अचानक निकल गए ।हालाँकि हौंसला बुलंद था, हुजूर का पर गर्दिशोँ के साय ,उम्मीदें कुचल गए ।है जिस्म पे लिबास
चाहता हूं भर लूं सांसों में खुशबू तुम्हारी सांसों की। जिससे करीब न होने पर भी एहसास होता रहे तुम्हारे होने का।। मेरे जिस्म का हरेक कतरा दिल में जज्ब कर लेना चाहे ।
वक़्त की पाबन्दी है मुझपे ,वरना तुम्हे अपनी कविता बनाता ,शांत सलोने शब्दों से ,सुन्दरता तेरी सभी को सुनाता !कई समुन्दर दूर हूँ तुझसे ,वरना प्रियतम तुमसे मैं मिलने आता !मैं काला काजल बनके ,आँखों में तेरी शर्माता ,और तुम्हे अपनी आँखों में बसाके,सारी दुनिया से छिप
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर संसार में विद्यार्जन के जानेमाने संस्थानों में से एक और निःसंदेह भारत का सर्वाधिक सम्मानित शिक्षा संस्थान है| संस्थान का वार्षिक सांस्कृतिक उत्सव अन्तराग्नि इस वर्ष अब तक की अभूतपूर्व ऊचाइयों को छूने के लिए तैयार है | अन्तराग्नि आई.आई .टी . कानपुर का चार दिवसीय स
अंतराग्नि'१४ की कुछ झलकियाँ ....देखे और साझा करें |
दो-अस्तित्व मिले,बन गए मीत.मृदुहास्य खिले,लिख गए गीत...न मुख, वदन, न वसनसौरभ था वो अम्बक का,स्पर्श किया था स्पंदनउठती-गिरती लहरों का Iशल्लिका छलकी जाती थीप्रेम-प्रतीति की श्लाघा की,हम-संग लांघते थे सलिला,जीवन की हर बाधा की Iनि:शब्द निरखती सारी बातेंनिष्प्राण पड़े हैं सारे स्वप्नअंतर्गति तरनी सिन्धु ख
कितनी नर्म होगी उस दिल की ज़मीं’ जिस पर कभी सरसब्ज़ हुए होंगे इतने नाज़ुक जज़्बात ! रूमानी कलियाँ तो खिलती हैं हम सबके दिलों में मगर, फूल बनकर कागज़ पर उतरें, इससे पहले न जाने किन हवाओं की नज्र हो जाती हैं I मगर एक शायर के दिल में ये कलियाँ चटकती भी हैं और फूल बनकर कागज़ पर उतरती भी हैं I उनकी खुशबुओं का
कैसा छंद बना देती हैं बरसातें बौछारों वाली, निगल-निगल जाती हैं बैरिन नभ की छवियाँ तारों वाली!गोल-गोल रचती जाती हैं बिंदु-बिंदु के वृत्त बना कर, हरी हरी-सी कर देता है भूमि, श्याम को घना-घना कर।मैं उसको पृथिवी से देखूँ वह मुझको देखे अंबर से, खंभे बना-बना डाले हैं खड़े हुए हैं आठ पहर से।सूरज अनदेखा लगत
20 मई, 1900 को कौसानी, अल्मोड़ा में जन्मे सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उनकी प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं - ग्रन्थि, गुंजन, ग्राम्या, युगांत, स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, चिदंबरा, सत्यकाम आदि...अपने ही सुख से चिर चंचलहम खिल खिल
हर साल, शिक्षक दिवस ५ सितम्बर को डॉ. सर्वपल्ली राधा कृष्णन के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है| इस दिन हम अपने प्रिय शिक्षकों को याद करना कभी भी नहीं भूलते| डा. राधाकृष्णन, महान शिक्षाविद होने के साथ-साथ, हमारे देश के दूसरे राष्ट्रपति भी थे। इस लेख के माध्यम से, आज की युवा पीढ़ी को डॉ. राधाकृष्ण
सत्य का आकार तुम हो ,सत्य का आधार तुम हो,सृष्टि की संवेदना में ,शक्ति का संचार तुम हो ।दृष्टी से झरती तुम्हारी ,सूर्य की नव रश्मीयाँ ,तुम प्रकाशित तुमही प्रगति,उपहार तुम हो ।आत्मा में धर्म ,मन ,वाणी ,ह्रदय में संहित ,प्रेम की आराधना ,समृद्धि का उद्दगार तुम हो|सत्य है अक्षय ,प्रगट होकर ,ना क्षय होता
हर साल, शिक्षक दिवस ५ सितम्बर को डॉ. सर्वपल्ली राधा कृष्णन के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है| इस दिन हम अपने प्रिय शिक्षकों को याद करना कभी भी नहीं भूलते| डा. राधाकृष्णन, महान शिक्षाविद होने के साथ-साथ, हमारे देश के दूसरे राष्ट्रपति भी थे। डॉ. राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर, 1888 को तमिलनाडु के
शब्दनगरी मंच पर, आप रोचक तथा ज्वलंत विषयों पर अपने विचारों को मुखर भी कर सकते हैं| विचारों की अभिव्यक्ति को ब्लॉग के माध्यम से करके, आप अपनी बात लाखों लोगों तक पहुंचा सकते हैं|इस मंच के माध्यम से, आप अपने विचारों को कविता, कहानी, संस्मरण का रूप दे सकते हैं| इन लेखों के माध्यम से, आप स्थापित लेखकों क
शब्दनगरी वेबसाइट तथा मोबाइल एप पर, आप असंख्य लोगों को अपने साथ जोड़ सकते हैं| सिर्फ़ एक क्लिक में, उन तक अपनी रचनायें एवं संदेश पहुँचा सकते हैं, मित्र तथा अनुयायी बना सकते हैं और आयाम के अनेक सदस्यों से जुड़ सकते हैं| इस मंच के माध्यम से, आप विभिन्न लोगों से जुड़कर उन तक अपनी विचारों को लेखों के माध्य
शब्दनगरी वेबसाइट एवं एप पर आप हिन्दी ही नही बल्कि अँग्रेज़ी कीबोर्ड द्वारा भी हिन्दी में लिख सकते हैं| तथा, ऑनस्क्रीनकीबोर्ड के द्वारा भी अपने विचार दूसरों तक पहुँचा सकते हैं| इस सोशल मंच पर, हिंदी में लिखना बहुत आसान हैं| अँग्रेज़ी कीबोर्ड का इस्तेमाल करके, आप अपनी बात आसानी से हिंदी में लोगों तक प
शब्दनगरी वेबसाइट तथा मोबाइल एप पर, पढ़ने और लिखने की उत्कृष्ट सेवायें उपलब्ध हैं|शब्दनगरी से जुड़े सभी ब्लॉगर्स, इन सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं और श्रेष्ठ रचनाकारों से जुड़कर उनकी रचनाओं का आनंद ले सकते हैं| उभरते हुए लेखक, शब्दनगरी मंच के द्वारा लेखन जगत में अपनी पहचान बना सकते हैं तथा अपनी रचनाओं प
शब्दनगरी, अब मोबाइल पर भी उपलब्ध हैं| इस एप के द्वारा, शब्दनगरी के यूज़र्स कहीं भी, कभी भी लॉग-इन कर, शब्दनगरी की विभिन्न सेवाओं का आनंद ले सकते हैं| शब्दनगरी के मोबाइल एप द्वारा, आप अपनी सूचनाओं को पढ़ सकते हैं, नए मित्रों को आमंत्रित कर सकते हैं, लेख लिख सकते हैं तथा वेबसाइट की अतिरिक्त विशेषताओं
शब्दनगरी यूज़र्स के लिए सुनहरा मौका, इस मंच पर आयोजित कविता प्रतियोगिता में भाग लीजिये| इस कविता प्रतियोगिता का विषय, "हमारी मातृ-भाषा: हिंदी" है|प्रतियोगिता के लिए २-४ पंक्तियों में कविता लिखे|चुनी गयी, सर्वेष्ठ् कविताओं को रचनाकार के नाम के साथ शब्दनगरी मंच पर, प्रकाशित किया जायेगा|
जहाँ तकदेख सकता था तुम्हेंदेखा,जहाँ तकजा सकता था तुम्हारे लियेगया,जहाँ तकसोच सकता था तुम पर सोचा,जहाँ तकलौट सकता था तुम्हारे लिएलौटा,जहाँ तकपा सकता था तुम्हारा अंदाजचला,जहाँ तकपहुँचा सकता था अपनी बातपहुँचाया,मेरे इस देखने,सोचने,चलने,लौटनेऔर पहुँचाने में, पता नहीं कौन-कौन था? **महेश रौतेला
विलक्षण: 1- अद्भुत 2- विस्मयकारी 3- अनूठा 4- अजीब 5- अलबेला प्रयोग: हमारा राष्ट्र, धर्म, संस्कृति और भाषाओं के क्षेत्र में एक विलक्षण वैविध्य प्रदर्शित करता है।
नज़्म... अटकी हुई है देर से, ज़ेहन के गोशों में कहीं। मुंह लटकाए पड़ी है कब से, खामोखयाली की मटमैली चादर ओढ़े। करेले सा ... कडुआपन हलक को चीरे जाता है जैसे; एक बच्चे ने आइसक्रीम खाते-खाते बहा रखी है कुहनियों तक, थोड़ी सी मैं भी चख लूँ फिर लिखता हूँ। नज़्म अटकी हुई है देर से......!
वो लोग वतन बेच के,खुशहाल हो गए,वाशिंदा मेरे मुल्क के,कंगाल हो गए ।रखना पडा है गिरवी ,आबरू-ईमान को,बच्चे हमारे भूख से ,बेहाल हो गए ।रोटी की भूख कम थी ,चारा भी खा गए,सत्ता में सियासत के,जो दलाल हो गए ।है मुल्क तरक्की के, दौर-ए-सफ़र में यारो,कई राम-औ -रहीम के,बिकवाल हो गए ।लौ कंपकपा रही है,अरमान चिरागों
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में तीन दिवसीय "10वें विश्व हिंदी सम्मेलन"आयोजित हो रहा है। इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घघाटन प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने माखन लाल चतुर्वेदी नगर, लाल परेड मैदान, भोपाल में किया। १० से १२ सितंबर तक चलने वाले इस सम्मेलन में, देश-विदेश से आये प्रतिनिधि भी शामिल हो
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में तीन दिवसीय "10वें विश्व हिंदी सम्मेलन"आयोजित हो रहा है। इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घघाटन प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने माखन लाल चतुर्वेदी नगर, लाल परेड मैदान, भोपाल में किया। १० से १२ सितंबर तक चलने वाले इस सम्मेलन में, देश-विदेश से आये प्रतिनिधि शामिल हो रह
समय वो तलवार है जिसे कोई नहीं हासिल कर सका, समय वो ताकत है जिसे कोई नही रोक सका, समय से आजतक कोई नही बच सका लगता है , लगता है हम समय को काट रहे हैं ,पर सच तो है की समय हमे काट रहा है,समय वो ज़ंजीर है जिसे कोई नही तोड़ सका, समय वो चीज है जिसे भागवान नही रोक सका ।'कृष्णा' ! ये पंक्तींया मेरे
अब भाषा भारत की हिंदी, ऐसी है अलबेली ।ज्यों घन घुमड़े, करे दामिनी घटा मध्य अठखेली ।।आज परिष्कृत शुभ्र सुन्दरी, हो गई हिन्दी भाषा ।कवि, लेखकों, विद्वानों की मिटती ज्ञान पिपासा ।।विकसित हुई आज ये हिन्दी, सब बाधाएँ झेलीं ।अनुपमेय लगती जैसे, अभिसारिका नई नवेली ।।अब भाषा भारत की हिंदी, ऐसी है अलबेली ।ज्यो
तेरी रहमत से जी रहे हैं परिधि में रहकर चिरागों से ज़रा पूछ अपनी मर्ज़ी से न वे जलते हैं और न बुझते हैं ।उनकी जलती हुई लौ को देखो अपने पास न वे कुछ रखते हैं ।लाल अग्नि में जलकर ख़ामोश हो जाते हैंरौशनी किसको मिली वे नहीं पूछते अंधेरों में कौन खो गए वे नहीं जानते उनकी फितरत थी जलना वे जलते रहे, उनका काम थ
हिंदू परम्पराओं से जुड़े ये वैज्ञानिक तर्क1- कान छिदवाने की परम्परा-भारत में लगभग सभी धर्मों में कान छिदवाने की परम्परा है।वैज्ञानिक तर्क-दर्शनशास्त्री मानते हैं कि इससे सोचने की शक्ति बढ़ती है। जबकि डॉक्टरों का मानना है कि इससे बोली अच्छी होती है और कानों से होकर दिमाग तक जाने वाली नस का रक्त संचा
बिंदिया ने उठाई बन्दूक
यादों के भंवर से ,पीछे मुड़ कर देखते हूँ,तब याद आता है बचपन,बस्ता टाँगे, कॉपी लिए किसी बच्चे को स्कूल जाते देखते हूँ,तब दोस्तों संग स्कूल जाने के लिए आतुर हो जाता हैं बचपन,रोजमर्रा ज़िन्दगी से जब ऊब जाती हूँ, तब मुस्कराता है बचपन,स्वछंद हंसी देखती हूँ,तो नटखट ढंग से लजाता है बचपन,चॉकलेट और टॉफ़ी देखती
स्टाइल की हो बात, या हो ट्रैफिक का जाम,मस्ती में डूबा दिन, जहां रंगीन सारी शाम,कंटॉप-लल्लनटॉप, फाडू-जुगाडू काम,. . . सबसे अलग है भईया, अपने कानपुर का नाम . . .आई. आई. टी., ग्रीनपार्क, रेव-थ्री का रॉक, मेट्रोसिटी में लहियापट्टी स्नैक्स का शॉक,बीसीबाज़ी ऐसी, हर जुबान हो जाये लॉक,कनपुरिया कल्चर का अपनाप