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यादें

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बारिश की पहली फुहार के साथ ही अपने बचपन की खट्टी-मिठी यादे ताजा हो गई। बचपन के वो झूले, वोनीम का पेड ,वो जानी -पहचानी गलियाँ और वो गुड्डे- गुडियो का खेल।मेरे लिए मानो ये कल की ही बात हो।इतनी ज

मेरी बहुत ही अच्छी सहेली थी कुमुद। हम दोनो नवीं कक्षा में साथ ही पढा करती थी। वो एक पास के गाँव से पढने के लिएआया करती थी। हँसती, खेलती एक जिन्दादिल लडकी थी कुमुद।डर और झिझक तो उसमे थी ही नही।

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मामूली हैं मगर बहुत खास है...बचपन से जुड़ी वे यादेंवो छिप छिप कर फिल्मों के पोस्टर देखनामगर मोहल्ले के किसी भी बड़े को देखते ही भाग निकलनासिनेमा के टिकट बेचने वालों का वह कोलाहलऔर कड़ी मशक्कत से हासिल टिकट लेकरकिसी विजेता की तरह पहली पंक्ति में बैठ कर फिल्में देखनाबचपन की भीषण गर्मियों में शाम होने

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....वो पुरानी यादें .... ??? Er Bairwa N R - वर्ष 2016 की विदाई ....

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नागपुर में रह रहे सुप्रतिम साहा का नाम भारतीय कॉमिक्स प्रेमियों के लिए नया नहीं है। सुप्रतिम भारत के बड़े कॉमिक्स कलेक्टर्स में से एक हैं, जो अपने शौक के लिए जगह-जगह घूम चुके हैं। कहना अतिश्योक्ति नहीं, ऐसे सूपरफैंस की वजह से ही भारतीय कॉमिक्स उद्योग अभी तक चल रहा है। पहले कुछ कॉमिक कम्युनिटीज़ में इन

 अंग्रेज़ीदा लोगों का मौफुसिल टाउन ,और यादों का शहर पुराना सा .कुछ अधूरी नींद का जागा,कुछ ऊंघता कुनमुनाता साशहर मेरा अपना कुछ पुराना सा .हथेलियों के बीच से गुज़रतेफिसलते रेत के झरने सा . कुछ लोग पुराने से ,कुछ छींटे ताज़ी बूंदों केकुछ मंज़र अजूबे सेऔर एक ठिठकती ताकती उत्सुक सी सुबह . सरसरी सवालिया निगाह

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