योग और ध्यान तकनीक प्राचीन आध्यात्मिक अभ्यास हैं, जिन्हें पिछले ४-५ वर्षों में वर्ल्ड में विकसित किया गया है। हम इन प्रथाओं की जड़ों को स्वीकार करते हैं क्योंकि आज हम उन्हें अपनी जागरूकता, कल्याण, स्वास्थ्य और जीवन शक्ति का समर्थन करने के लिए अनुकूलित अनुकल मानते हैं।
हम योग और ध्यान शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं जिन्होंने अपने ज्ञान को सदियों से साझा किया है। हम विनम्रता के साथ आगे बढ़ते हैं, क्योंकि हम इन पवित्र प्रथाओं के उपयोग और समझ में सीखते और बढ़ते रहते हैं।
योग और ध्यान को परिभाषित करना आसान नहीं है क्योंकि यह पल पल रूपांतरित होने वाली प्रक्रिया है। जो व्यक्ति योग और ध्यान का नियमित अभ्यास करते है और अभस्थ हो जाता है। वह आत्मा के प्रकाश को देखने लगता है। जिस प्रकाश को हमारी आंखें देखती है वह प्रकाश बाहरी है।
ध्यान और योग में कोई अंतर नही है बल्कि ध्यान, योग का ही एक अंग है । आसन और प्राणायाम सिर्फ योग सिद्ध करने के साधन हैं।
एक बार हम ध्यान शिविर में बैठ कर के कुछ लोग चर्चा कर रहे थे।
हिमाचल में एक बहुत खुबसुरत जगह है जहाँ हमारे गुरुजी ऐसे ध्यान शिविर कराते रहते हैं। (कभी कभी हिमालय की तलहटियों में भी ये ध्यान कराये जाते है )
जो हो रहा है, वो इससे अच्छा नहीं हो सकता।
योग का अर्थ है, समस्त सृष्टि और सृष्टिकर्ता के साथ एक हो जाना।
वो लोग ध्यान नहीं लगा सकते जो अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए ध्यान योग का सहारा ले रहे हैं।
ध्यान में तो खो जाना होता है। जब खुद की भी सुध न रहे तब ही ध्यान की शुरुआत होती है।
अगर आप और गहरे ध्यान में उतरना चाहते हैं तो आपको पूर्ण समर्पण करना पड़ता है।
इतना समर्पण कि अगर आज ही मृत्य हो जाये तो भी आप खुशी खुशी तैयार हैं अपने ईश्वर से एक हो जाने के लिए। ऐसे योगी को कोई भी शक्ति दे दीजिए, वो उसमें दिलचस्पी नहीं लेंगे। क्योंकि वो जानते हैं, इस संसार रूपी समंदर की सतह पर कितनी भी हलचल हो, सारी लहरें वापस उसी समंदर (परमात्मा) में ही मिल जाती हैं, जहाँ गहराई में कोई हलचल नहीं।
योग और ध्यान बस एक गहरा, विशाल और शांत समंदर है…कह सकते है की सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड इन दो शब्दो में समाया हुवा है ।