रिस्तो को कैसे प्राप्त करे? # कैसे उन मे मधुरता लेके आये ?
एक गाँव में एक बूढ़ी माई काकी रहती थी । काकी का आगे – पीछे कोई नहीं था इसलिए बूढ़ी काकी बिचारी अकेली रहती थी । एक दिन उस गाँव में एक संत आए । बूढ़ी काकी ने महात्मा जी का बहुत ही प्रेम पूर्वक आदर सत्कार किया ।
जब महात्मा जी जाने लगे तो बूढ़ी काकी ने कहा – “ महात्मा जी ! आप तो ईश्वर के परम भक्त है । कृपा करके मुझे ऐसा आशीर्वाद दीजिये जिससे मेरा अकेलापन दूर हो जाये । अकेले रह – रह करके उब चुकी हूँ ”
तब उन महात्मा ने मुस्कुराते हुए अपनी झोली में से बालक की एक मूर्ति निकाली और बुढ़िया काकी को देते हुए कहा – “ काकी ये लो आपका बालक है, इसका अपने बच्चे की तरह प्रेम पूर्वक लालन-पालन करती रहना। बुढ़िया काकी बड़े लाड़-प्यार से उस का लालन-पालन करने लगी।
एक दिन गाँव के कुछ शरारती बच्चों ने देखा कि काकी मूर्ती को अपने बच्चे की तरह लाड़ कर रही है । नटखट बच्चो को काकी से हंसी – मजाक करने की सूझीl
उन्होंने काकी से कहा - "दादी सुनो ! आज गाँव में जंगल से एक पागल कुत्ता घुस आया है, जो छोटे बच्चो को काट रहा है । तू अपने लाल का ख्याल रखना, कही कुत्ता उसे ना काट ले !
बुढ़िया काकी ने अपने बालक को उसी समय कुटिया मे बिठाया और स्वयं लाठी (छड़ी) लेकर दरवाजे पर पहरा लगाने के लिए बैठ गयी।
अपने लाल को कुत्ते से बचाने के लिये बुढ़िया काकी भूखी -प्यासी दरवाजे पर पहरा देती रही। पहरा देते-देते एक दिन बीता, फिर दुसरा, तीसरा, चौथा और पाँचवा दिन बीत गया।
बुढ़िया काकी पाँच दिन और पाँच रात लगातार, बगैर पलके झपकाये -भेड़ियेकुत्ते से अपने बालक की रक्षा के लिये पहरा देती रही। उस भोली-भाली काकी का यह भाव देखकर, भगवान का ह्रदय प्रेम से भर गया, अब भगवान को काकी के प्रेम का प्रत्यक्ष रुप से आस्वादन करने की इच्छा हुई।
भगवान बहुत ही सुंदर रुप धारण कर, वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होकर काकी के पास आये। भगवान के पाँव की आहट पाकर माई ड़र गई कि "कही दुष्ट भेड़ियाकुत्ता तो नहीं आ गया, मेरे लाल को उठाने !" काकी ने लाठी उठाई और कुत्ते को भगाने के लिये उठ खड़ी हूई।
तब भगवान ने कहा – “दादी मैं हूँ, मैं तेरा वही बालक हूँ -जिसकी तुम रक्षा करती हो!"
माई ने कहा - "क्या ? चल हट तेरे जैसे बहुत देखे है, तेरे जैसे सैकड़ो अपने लाल पर न्यौछावर कर दूँ, अब ऐसे मत कहियो ! चल भाग जा यहा से।
भगवान काकी के इस भाव और एकनिष्ठता को देखकर बहुत ज्यादा प्रसन्न हो गये। वो काकी से बोले - "अरी मेरी भोली दादी , मैं त्रिलोकीनाथ भगवान हूँ, मुझसे जो चाहे वर मांग ले, मैं तेरी भक्ती से प्रसन्न हूँ"
बुढ़िया काकी ने कहा - "अच्छा आप भगवान हो, मैं आपको सौ-सौ प्रणाम् करती हूँ ! कृपा कर मुझे यह वरदान दीजिये कि मेरे प्राण-प्यारे लाल को भेड़ियाकुत्ता न ले जाय" अब भगवान और ज्यादा प्रसन्न होते हुए बोले - "तो चल काकी मैं तेरे लाल को और तुझे अपने निज धाम लिए चलता हूँ, वहाँ पागल कुतो का कोई भय नहीं है।" इस तरह प्रभु बुढ़िया काकी को अपने निज धाम ले गये।
ये एक अटूट प्रेम भाव वाले रिश्ते की कहानी है।
रिस्तो को पाने का सबसे सरल मार्ग, प्रेम है - निष्काम प्रेम जैसे बुढ़िया काकी ने किया....
हमें अपने अन्दर बैठे ईश्वरीय अंश (प्रेम) की काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार रूपी काकी पागल कुत्ते से रक्षा करनी चाहिए ।
जब हम पूरी तरह से तन्मय होकर अपनी पवित्रता और शांति की रक्षा करते है तो एक न एक दिन अच्छे रिश्ते के रूप में ईश्वर हमें दर्शन जरुर देते है.
यह एक सुंदर और मर्मस्पर्शी कहानी है जो प्रेम और भक्ति की शक्ति पर जोर देती है। बच्चे की मूर्ति की रक्षा के लिए बुढ़िया का निःस्वार्थ प्रेम और समर्पण उनकी प्रतिबद्धता और समर्पण की गहराई को प्रदर्शित करता है।
कहानी नकारात्मक भावनाओं और व्यवहारों से खुद को बचाने के महत्व पर भी प्रकाश डालती है जो हमारी आंतरिक शांति और पवित्रता को नुकसान पहुंचा सकते हैं। अपने मूल्यों के प्रति सच्चे रहकर और समर्पित रहकर, हम अपने जीवन में सकारात्मक संबंधों और अनुभवों को आकर्षित कर सकते हैं।
आखिरकार, यह कहानी हमें याद दिलाती है कि मजबूत रिश्ते बनाने का सबसे सरल और सबसे शक्तिशाली तरीका सच्चा प्यार और करुणा है। जब हम दया और समझ के स्थान पर दूसरों के साथ अपनी बातचीत करते हैं, तो हम स्थायी बंधन बना सकते हैं जो हमारे जीवन को समृद्ध करते हैं और हमें परमात्मा के करीब लाते हैं।