नोटबंदी 2.0: रिजर्व बैंक ने आज एक और बार नोटबंदी की घोषणा की है। इस बार बैंक ने 2000 रुपये के नोट को तत्काल प्रभाव से बस्ते में बंद करने का फैसला किया है। इस नए नोटबंदी के निर्णय का अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव होगा, इसका अनुमान लगाना काफी कठिन है। नोटबंदी के पहले फैसले ने देशभर में व्यापार, रोजगार, और व्यक्तिगत आर्थिक स्थिति पर व्यापक प्रभाव डाला था। यह दूसरी नोटबंदी इस दृष्टि से अधिक ध्यानदेनेय है क्योंकि इसमें 2000 रुपये के नोटों को बंद किया जा रहा है।
नवंबर, २०१६ को हर किसी को याद है , जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में एक अचानक फैसला लिया और ५०० और १००० रुपये के नोटों को मान्यता से बाहर कर दिया। इस फैसले ने पूरे देश में काफी सनसनी मचाई और लोगों को कई रातों तक नींद नहीं आई। अगले दिन से ही लोगों ने बैंकों और ATM के सामने लम्बी-लम्बी कतारों में खड़ा होना शुरू कर दिया। आज, १९ मई, २०२३ को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने घोषणा की है कि २००० रुपये के नोटों को चलाने की प्रक्रिया को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया गया है। लेकिन क्या इसका हमारी अर्थव्यवस्था पर कोई असर पड़ेगा या नहीं? यह बात तो आगे की है.
'' यह फैसला ऐसे वक्त में आया है जब 2024 का चुनाव सर पर है. RBI ने कहा, "जनता अपने लेन-देन के लिए 2,000 रुपये के नोटों का उपयोग जारी रख सकती है और वह पेमेंट के तौर पर भी ले सकती है. हालांकि, उन्हें 30 सितंबर, 2023 को या उससे पहले इन नोटों को जमा करने और/या बदलने के लिए कहा जा रहा है." इस फैसले का अशर आगामी चुनावों भी देखने को मिल सकता है , मोदी सरकार पर इस का क्या असर पड़ेगये तो आने वाला वक्त ही बताएगा.
लेकिन 2000 रुपये के नोट को बंद करने के परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था क्या प्रभाव पड़ सकते हैं। यहां कुछ निचे लिखे प्रभाव अपेछित लगते है:
नकद तरलता की कमी(Cash liquidity crunch): 2000 रुपये के नोटों को विमुद्रीकृत करने से अर्थव्यवस्था में नकदी तरलता की कमी हो सकती है। नकदी की यह कमी उद्योगों, व्यवसायों और दैनिक लेन-देन में मुश्किलें पैदा कर सकती है।
आर्थिक गतिविधियों में व्यवधान: नकदी की कमी आर्थिक गतिविधियों को बाधित कर सकती है, खासकर वे जो नकद लेनदेन पर निर्भर हैं। उद्योगों और व्यवसायों को उत्पादन, आपूर्ति श्रृंखला और बिक्री में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
अनौपचारिक और नकदी पर निर्भर क्षेत्रों पर प्रभाव: विमुद्रीकरण का उन क्षेत्रों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है जो नकद लेनदेन पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं, जैसे कि कृषि, छोटे व्यवसाय और अनौपचारिक क्षेत्र। इन क्षेत्रों में अस्थायी मंदी और व्यापार करने में कठिनाइयों का अनुभव हो सकता है।
डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा: नकदी की कमी से निपटने के लिए, डिजिटल लेनदेन में वृद्धि हो सकती है, जिसमें मोबाइल वॉलेट, ऑनलाइन भुगतान और डिजिटल बैंकिंग शामिल हैं। यह वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दे सकता है और अधिक डिजीटल अर्थव्यवस्था का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
काले धन और भ्रष्टाचार पर अंकुश: विमुद्रीकरण का एक उद्देश्य काले धन पर अंकुश लगाना और भ्रष्टाचार को कम करना है। उच्च मूल्यवर्ग के नोटों को अमान्य करके, सरकार का लक्ष्य बेहिसाब धन की जमाखोरी को हतोत्साहित करना और अधिक पारदर्शी वित्तीय प्रणाली को बढ़ावा देना है।
अल्पकालिक आर्थिक मंदी: विमुद्रीकरण के प्रारंभिक चरण में आर्थिक विकास में एक अस्थायी मंदी हो सकती है क्योंकि व्यवसाय और व्यक्ति नकदी की कमी और डिजिटल लेनदेन के लिए संक्रमण को समायोजित करते हैं। हालांकि, दीर्घकालिक प्रभाव भिन्न हो सकते हैं।
यह नोट करना महत्वपूर्ण है कि विमुद्रीकरण के प्रभाव जटिल हो सकते हैं और कार्यान्वयन रणनीति, विमुद्रीकरण के पैमाने और समग्र आर्थिक स्थितियों सहित विभिन्न कारकों पर निर्भर करते हैं।