आज का टॉपिक बहुत ही चिंता का विषय है ऐसा नहीं की ये सिर्फ किसी देश या राज्य का विषय है ये पुरे संसार के लिए चिंता का विषय बना हुवा है -
ग्लोबल वार्मिंग, या ग्लोबल क्लाइमेट कहे दोनों की एक ही परिभाषा है।
आपके शहर या राज्य, या यहां तक कि किसी महाद्वीप में विशेष रूप से गर्मी या ठण्ड का होना , यह ग्लोबल वार्मिंग या उसके खिलाफ सबूत नहीं माना जा सकता। यह बहुत मुख्य बात है ।
जैसे ही सूर्य उगता है तो उसकी की किरणे धरातल से टकराती है तो धरातल का दिन का भाग गर्म हो जाता है| जैसे जैसे रात होती है तो सूर्य विकिरण गर्मी हस्तांतरण द्वारा अंतरिक्ष में अपनी गर्म ऊर्जा छोड़ देता है।
सामन्या परिस्थितियों में, जलवायु बराबर होती है, और धरातल का समग्र वैश्विक औसत तापमान दिन-प्रतिदिन और साल-दर-साल समान रहता है। तो, होता ये है की जब संतुलन गड़बड़ा जाता है तो हमें जलवायु मे परिवर्तन दिखाई देने लगता है। लेकिन अगर हम एक दिन या २ दिन के अंतर की बात कर रहे हैं तो यह जलवायु परिवर्तन नहीं है। जलवायु परिवर्तन को कम से कम एक दशक के तापमान परिवर्तन से परिभाषित किया जाता है या माना जाता है |
कुछ सालो पहले आप ने सूना होगा या पढ़ा होगा उत्तरी अमेरिका के कई हिस्सों में रिकॉर्ड तोड़ ठंड थी। लेकिन यह ठंड कहाँ से आई? हम गर्मी के संदर्भ में "ठन्डे तापमान" के बारे में सोचते हैं, इसलिए इसके बजाय इस प्रश्न को ऐसे सोचे "गर्मी कहां गई?"। खैर, इस मामले में यह लेख ठंडे स्थान पर चला गया। इसलिए जब लोग उत्तरी अमेरिका में जम रहे थे, आर्कटिक क्षेत्र में रिकॉर्ड तोड़ जबरदस्त उच्च तापमान था।
देखो मै यह बताना चाहता हूँ की अभी सब संतुलन में लग रहा लेकिन ऐसा नहीं है धरातल पर गर्मी की मात्रा बढ़ रही है और ग्लोबल वार्मिंग का सीधा सीधा यही मतलब है कि धरातल पर गर्मी की मात्रा बढ़ रही है। साधारण शब्दो मे इसे ऐसे ही समझा जा सकता है।
धरातल पर गर्मी की मात्रा बढ़ने के कई कारण है जैसे -
१. हवा में बढ़ता हुवा वायु प्रदुषण
२. बढ़ते हुए प्रदुषण के कारण ओजोन परत मे छेद होना
३. ओज़ोन परत मे छिद्र होने के कारण सूर्य से निकलने वाली घातक पराबैगनी किरणों को सीदे धरातल से टकराना
३. पेड़ो की संख्या दिन दिन-प्रतिदिन का कम होना इत्यादि......