मानवीय पूँजी क्या है?
मानव पूंजी शब्द एक कार्यकर्ता के अनुभव और कौशल के आर्थिक मूल्य को दर्शाता है। मानव पूंजी में शिक्षा, प्रशिक्षण, बुद्धि, कौशल, स्वास्थ्य, और अन्य चीजें जैसे वफादारी और समय की पाबंदी शामिल हैं। मानव पूंजी को उत्पादकता और लाभप्रदता बढ़ाने के लिए माना जाता है।
मानव पूंजी के उदाहरण ?
मानव पूंजी के उदाहरणों में जीवन यापन कौशल, शिक्षा, तकनीकी कौशल, , अनुभव, समस्या सुलझाने के कौशल, मानसिक स्वास्थ्य, वेल्थ मैनेजमेंट और व्यक्तिगत लचीलापन शामिल हैं।
मानव पूंजी प्रबंधन क्या है?
मानव पूंजी प्रबंधन एक ऐसा अभ्यास है जिसका उपयोग संगठन लघु और दीर्घकालिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सर्वोत्तम कर्मचारियों को आकर्षित करने, प्रशिक्षित करने, विकसित करने और बनाए रखने के लिए करते हैं। व्यावसायिक लक्ष्यों की उपलब्धि के लिए उच्चतम स्तर पर योगदान करने के लिए भी मानव पूंजी जरुरी है जिसे मानव एंड व्यावसाय को अपनी पर्सनल ग्रोथ भी मिल सके। मानव पूंजी प्रबंधन कर्मचारियों को मूल्यवान संसाधनों के रूप में देखता है जिनका उपयोग उनकी क्षमता को पूरा करने के लिए किया जाना चाहिए।
कम्पनीज भी अपने अधिकांश उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कर्मचारियों पर निर्भर हैं, वे अपने कर्मचारियों को परिणाम देने के लिए आवश्यक मुख्य कौशल और दक्षताओं को विकसित करने और विकसित करने के लिए संसाधनों का आवंटन करते हैं। मानव पूंजी प्रबंधन उन्हें अपनी क्षमताओं में कमियों की पहचान करने और उन जरूरतों को पूरा करने के लिए भर्ती प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है। यह कर्मचारियों के लिए अधिक नौकरी की पूर्ति प्रदान करता है क्योंकि उन्हें उन पदों पर काम मिलता है जो उन्हें उनकी ताकत का उपयोग करने की अनुमति देते हैं। संगठन के लिए, मानव पूंजी प्रबंधन एक वफादार कार्यबल बनाता है जो इसे अपने लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करता है।
मानव पूंजी के सिद्धांत को शिक्षा और प्रशिक्षण में काम करने वाले कई लोगों से काफी आलोचना भी मिली है। १९०० के दशक में, इस सिद्धांत पर मुख्य रूप से हमला किया गया था क्योंकि इसने बुर्जुआ व्यक्तिवाद को वैध बना दिया था, जिसे स्वार्थी और शोषक के रूप में देखा जाता था। लोगों के बुर्जुआ वर्ग में मध्यम वर्ग के लोग शामिल थे, जिनके बारे में माना जाता था कि वे मजदूर वर्ग का शोषण करते थे। यह भी माना जाता था कि सिस्टम में हुई किसी भी खराबी के लिए लोगों को दोष देना और श्रमिकों को पूंजीपतियों से बाहर करना आम बात हो गई थी ।
आप को मै अपनी बात बताउ तो , मानव के लिए असली मानव पूंजी उस की हेल्थ है , जब से मेने अपने होस संभाले है मेने अपने माँ और पापा को काम करते ही देखा, मै एक छूटे से गांव का रहने वाला हु तो गांव की परंपरा से आप सब वाकिफ होंगे घर से सब काम करने का जिम्मा एक औरत पर होता है , पुरुष सिर्फ कमाने वाले कामो को करता है , गांव मे पशू पालन एक मुख्य व्यवसाय है मरे घर में भी पशु पालन होता था , पापा अपने काम से बहार निकल जाते थे तो सभी पशुवो की देख भल मेरी माँ को ही करनी होती थी।
लेकिन इन सबमे उन्होंने अपने शरीर की कभी फिक्र ही नही की नतीजा उन्हें दिल की बीमारी हो गयी जो कि हर रोज बद से बदतर ही हुई जा रही है इसी कारण हम मेरी २ बहने है उन की भी शादी हो गई , भाई की भी शादी हुई और लगभग कई साल की बीमारी के बाद मेरी माँ के काम करने की हिमत ने जवाब दे दिया , जबकि उनकी उम्र केवल ५०-51 हुई होगी
अब यहॉं सुख कब भोगा…भाई की शादी गयी माँ के साथ रहते है, मै भी एक टाइम पे माँ के साथ ही रहता था तो कुछ पारिवारि कारणों से उनसे दूर रहने लगा , सोचा था कि अब वें आराम से रहेंगे और सब शौंक पूरे करेंगे और कम से कम सुकून से परिवार में रहेंगी और अगली पीढ़ी को बढ़ते देखेंगी लेकिन हुआ क्या जब शरीर ही जबाब देने लगेतो क्या..?? अगर उन्होंने समय रहते अपने शरीर का ध्यान रखा होता तो ये सब होता ही नही इसमे गलती हम बच्चों की भी है , दवाओ के सहारे कब तक जीवन चलेगा …
दोस्तों मै आप को ये बताने की कोशिस कर रहा हु भले ही हमें बाहर से सब नॉर्मल लगता हो लेकिन ऐसा नही होता है , सबका शरीर अलग होता है।
मैं ने उन से बहुत कुछ सीखा है उस के बाद कुछ लिखा है उम्मीद है की आप कुछ समझेंगे और आप अपनी लाइफ से कुछ सीखेंगे।