एक आठ-दस साल की मासूम सी गरीब लड़की ने बुक स्टोर पर एक पेंसिल और दस रुपये वाली कापी खरीदी। फिर उसने खड़ी होकर एक आदमी से पूछा, "अंकल, एक काम कहूँ करोगे?" अंकल ने पूछा, "बताओ, बेटा, क्या काम है?" लड़की ने कहा, "अंकल, वह कलर पेंसिल का पैकेट कितने का है? मुझे ड्राइंग टीचर बहुत मारती है मगर मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं, ना ही माँ-बाबा के पास हैं, मैं आहिस्ता-आहिस्ता पैसे दे दूंगी।" शॉपकीपर की आंखों में आंसू आ गए और वह लड़की को कलर पेंसिल को पैकेट दे दिया। लड़की बहुत खुश थी और उसने अंकल को धन्यवाद देकर चली गई।
शॉपकीपर के मन में उठते हुए खयालों का असर था। उसने सोचा, यदि उस बच्ची ने किसी और दुकानदार की दुकान पर जाकर पैसे माँगे होते तो उसकी जिंदगी का हाल दूसरों की तरह होता। उसने फिर सोचा कि यह नहीं हो सकता और वह अपने दुकान में आए लोगों से अनुरोध करेगा कि वे ऐसे मासूम बच्ची को मदद करें जो उसकी दुकान पर आए हैं। उसने फिर खुद से सोचा कि यह बच्ची एक छोटी सी बात के लिए नहीं आई होगी और शायद वह एक बड़ी समस्या से जूझ रही होगी। उसने फिर सोचा कि शायद वह बच्ची उसे जानती भी नहीं होगी और इसलिए उसकी समस्या का हल भी उसे मालूम नहीं होगा। इसलिए, उसने तुरंत बच्ची को पैसे देने की जगह उसकी मदद करने का फैसला किया। इससे उस बच्ची की समस्या हल हुई और शॉपकीपर को अपने आप पर गर्व महसूस हुआ कि वह एक सामाजिक उत्तरदायी नागरिक होने के साथ-साथ एक निर्मल मन वाला इंसान भी है।
यह बहुत अच्छा है कि शॉपकीपर ने उस बच्ची की मदद की और उसकी समस्या का हल करने की कोशिश की। सामाजिक उत्तरदायी नागरिक होना हमारा फर्ज होता है और हमें समाज के हर वर्ग की मदद करनी चाहिए। इससे हम समाज में एक सकारात्मक और समरसता भरा माहौल बना सकते हैं। इस तरह के छोटे-मोटे कदम अक्सर बड़ी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। शॉपकीपर की इस सकारात्मक कार्यशैली को देखते हुए दूसरे भी लोगों को इस से प्रेरित होना चाहिए।
हमारी समाज में हम सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और हमें एक दूसरे की मदद करने का फर्ज बनना चाहिए। जिस तरह से शॉपकीपर ने बच्ची की मदद की, उससे अच्छा सामाजिक उत्तरदायी कौन हो सकता है? हमें भी उनकी तरह हर समय जागरूक रहना चाहिए और अपने समाज के हर वर्ग की मदद करने की कोशिश करनी चाहिए। यह समाज में एक सकारात्मक और समरसता भरा माहौल बनाने में मदद करेगा और हमें सभी को एक साथ आगे बढ़ने में मदद मिलेगी।
हम सभी एक समाज के अंग होते हुए एक दूसरे की मदद करने और एक दूसरे के साथ समरसता बनाए रखने का फर्ज बनता है। जब हम अपने आसपास के लोगों की मदद करते हैं, तो हम समाज में एक सकारात्मक और सहयोगपूर्ण माहौल बनाते हैं जो हमें एक साथ आगे बढ़ने में मदद करता है। इससे हम अपने समाज के लिए बेहतर निर्णय ले सकते हैं, समस्याओं का समाधान ढूंढ सकते हैं और सामाजिक उत्थान में मदद कर सकते हैं। इसलिए हमें अपनी समाजिक ज़िम्मेदारियों को समझना चाहिए और उन्हें पूरा करने के लिए सक्रिय तरीकों से जुड़ना चाहिए।
मेरी सभी टीचर्स से गुजारिश है की अगर बच्चे कोई कापी पेंसिल कलर पेंसिल वगैराह नही ला पाते तो जानने की कोशिश कीजिये के कही उसकी मजबूरी उसके आड़े तो नही आ रही। और हो सके तो ऐसे मासूम बच्चों की पढाई की छोटी जरूरतें आप टीचर मिल कर उठा लिया करें।
यक़ीन जानिए हज़ारों लाखो की तनख्वाह में से चंद सो रुपए किसी की जिंदगी ना सिर्फ बचा सकती है बल्के संवार भी सकती है...!
एक युवा लड़की जो शिक्षा को महत्व देती को देखकर दिल खुश हो जाता है और अपने वित्तीय संघर्षों के बावजूद अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करने को तैयार है। हालाँकि, यह इस बात से संबंधित है कि वह इतने कमजोर तरीके से मदद माँगने की आवश्यकता महसूस करती है।
दुकानदार की प्रतिक्रिया सराहनीय है, लेकिन यह इस दुखद सच्चाई को भी उजागर करती है कि कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बच्चों की मासूमियत और भेद्यता का फायदा उठाते हैं। वयस्कों के लिए सतर्क रहना और बच्चों को इस तरह के दुर्व्यवहार से बचाना महत्वपूर्ण है।
शिक्षकों और शिक्षकों की यह जिम्मेदारी है कि वे न केवल गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करें बल्कि अपने छात्रों, विशेष रूप से वंचित पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों की जरूरतों के बारे में जागरूक रहें। बुनियादी ज़रूरतों जैसे पेंसिल, नोटबुक और पाठ्यपुस्तकों के साथ छात्रों की सहायता करना उनकी सीखने और सफल होने की क्षमता में महत्वपूर्ण अंतर ला सकता है।
हम सभी को जरूरतमंद लोगों की मदद करने का प्रयास करना चाहिए, खासकर मासूम बच्चों को जो हमारे समाज का भविष्य हैं। जैसा कि कहा जाता है, "एक बच्चे को पालने के लिए एक गाँव चाहिए।" आइए हम सब उनके लिए एक बेहतर दुनिया बनाने में अपना योगदान दें।