किस्सा है अमरावती का, वैसे अमरावती अभी तो 72 वर्ष की है पर यह घटना पुरानी है। अमरावती करीब 42-45 वर्ष की रही होंगी वो अपने पति राम अमोल पाठक जी और चार बच्चों बड़ा बेटा चन्दन, बेटी पूर्णिमा,मंझला बेटा नंदन और छोटा बेटा चंपक के साथ सूरजगढ़ में रहा करती थी | राम अमोल पाठक जी प्रकाश पब्लिकेशन में एडिटर थे, बड़े ही सज्जन और ईमानदार व्यक्ति थे सभी की नज़रों में उनका बड़ा सम्मान था | परन्तु उनकी पत्नी ठीक उनकी विपरीत थी |
अमरावती को झूठ बोलने, हर किसी के लिए बुरा सोचने और हर एक अविश्वास करने की आदत है,अमरावती की इस सोच-विचार को व्यसन यानि की लत कहा जा सकता है | जिस प्रकार व्यसन का बड़ा ही व्यापक प्रभाव होता है मनुष्य का शरीर अनेकों बीमारियों से जकड़ जाता है ठीक उसी प्रकार अमरावती की कुंठित और दूषित सोच-विचार अपने आप में बहुत ही बड़ा मानसिक रोग है | परन्तु इस रोग का दुष्प्रभाव अमरावती पर कम और आस पास क लोगों पर अधिक पड़ता है | अमरावती ने अपने कुंठित और दूषित विचारों का संस्कार अपने बच्चों को भी दे दिया था बस बड़े बेटे चन्दन से नाखुश रहती थीं क्योंकि चन्दन अमरावती के दुर्विचारों और दुष्कर्मों में साथ नहीं देता | बेटी पूर्णिमा तो माँ अमरावती का बिलकुल छोटा रूप थी, मंझला बेटा नंदन कमज़ोर व्यक्तित्व का था माँ दुर्विचारों को ही उसने परम सत्य मान लिया था, माँ जब-जब जैसा-जैसा बोलती नंदन बिलकुल वैसा करता, हर बात पर चीखता-चिल्लाता, अपशब्द बोलता और हर वो काम करता जिससे कि उसकी माँ अमरावती खुश हो जाती | अमरावती भी अपने बेटे नंदन के स्वभाव और कमजोरियों का सही समय पर सही इस्तेमाल करती, और परिस्थितियों को हमेशा अपने अनुकूल बना लेती | छोटा बेटा चम्पक वैसे अपनी पूर्णिमा दीदी अनुयायी था पर वो अपनी ही दुनिया में खोया रहता |
एक दिन अचानक खबर आई कि प्रकाश पब्लिकेशन के मालिक की मृत्यु हो गई और देखते ही देखते प्रकाश पब्लिकेशन बंद होने के कगार पर पहुँच गया और एक दिन प्रकाश पब्लिकेशन के कर्मचारियों को 5-6 महीने की सैलरी देकर नौकरी से निकाल देने की खबर पूरे शहर में फैली हुई थी |
एक रोज़ राम अमोल पाठक जी दफ्तर पहुंचे, भागते हुए गार्ड राम अमोल पाठक जी के पास पहुंचा |
गार्ड - ( कांपती हुई आवाज़ में ) गुड मॉर्निंग पाठक सर |
राम अमोल पाठक - ( हिचकिचाते हुए ) गुड मॉर्निंग चंदू | यहाँ भीड़ क्यों लगी है |
बताइए एडिटर - ( हुए आवाज़ में ) प्रकाश पब्लिकेशन पर बड़ा सा ताला पड़ा है, सबकी नौकरी एक-साथ चली गयी | मेरी भी, आपकी भी, सबकी नौकरी चली गई |
गार्ड की यह बात सुनते ही अमोल पाठक के पांव के नीचे से जमीन खिसक गई, आंखों के सामने अंधेरा छा गया, स्कूटर हाथ से छूट गया और पाठक जी ज़मीन पर गिर पड़े |
प्रकाश पब्लिकेशन के दो स्टाफ और गार्ड ने ने किसी तरह पाठक संभाला और कुर्सी पर बिठाया और पानी के छींटे उनके चेहरे पर पानी छींटे दिए तब उन्हें होश आया |
सिर्फ दो मिनट में पूरी दुनिया बदल गई, जिस ऑफिस में वो शान से बैठा करते थे, उसी ऑफिस के बाहर आज लोगों की लंबी लाइन लगी थी और अमोल पाठक जी भी उसी लाइन में खड़े हो गए क्योंकि प्रकाश पब्लिकेशन हाउस अखिलेश 6 महीने की सैलरी देकर उन्हें अलविदा कहने वाली थी।
राम अमोल पाठक सैलरी लेने की लाइन में खड़े थे चारों तरफ अजीब सा शोर था ऐसा लग रहा था मानो दुनिया भर की दुख-परेशानी आज सिमटकर पब्लिकेशन हाउस के कैंपस में आ गई है | अगले 6 महीने की सैलरी लेने वाला हर एम्प्लोयी यानि स्टाफ़ अपने आने वाले तकलीफों की बात कर रहा था, हर एक आवाज़ पाठक जी के कानों में पड़ रही थी उसमें सिर्फ दर्द ही दर्द था। कुछ देर बाद पाठक जी के कानों तक आवाज ही पहुंचनी बंद हो गई एक अजीब सी आवाज़ खुद-ब-खुद उनके कानों में गूंज रही थी | ठीक वैसी आवाज़ जैसी आवाज़ दूरदर्शन के जमाने मैं नेटवर्क के चले जाने के बाद टीवी से आती थी | बस वही आवाज पाठक जी के कानों में गूंज रही थी और कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था, पर वह चुप से लाइन में खड़े थे और फिर उनकी बारी आई और वह अपने पैसे और डॉक्यूमेंट लेकर निकल पड़े राम अमोल पाठक जी को बाहर जाते देख गार्ड पाठक जी को कुछ कहने की कोशिश कर रहा था चंदू की आवाज राम अमोल पाठक जी कानों तक नहीं पहुंची और वो स्कूटर स्टार्ट कर घर की ओर चल पड़े ।
परन्तु ये सदमा काफी नहीं था घर पर और भी झटके उनका इंतज़ार कर रहे थे |
राम अमोल पाठक जी जब अपने घर पहुंचे और उन्होंने अपने घर का मेन गेट खोला तो बाई तरफ बागान में आम के पेड़ के नीचे कुर्सियां लगी हुई थी,पूर्णिमा, अमरावती, मुहल्ले दो चार औरतों के साथ बातें कर रही थी, नंदन भी एक कोने में खड़ा था और चंपक ज़मीन में बैठकर गुलेल बना रहा था । राम अमोल पाठक जी ने किसी से कुछ नहीं कहा और घर के अंदर चले गए। बागान में बैठी औरतों ने भी राम अमोल पाठक पर ध्यान ज्यादा ध्यान ना दिया और अपनी बातों में लगी रही। चंदन बरामदे में जूते पहन रहा था, कॉलेज जाने को तैयार हो रहा था उसने जब राम अमोल पाठक जी को घर पर देखते ही बोल पड़ा |
चंदन ( रमा अमोल पटक से ) - पापा आप इस वक्त घर पर कैसे ?
राम अमोल पाठक जी ने कोई जवाब नहीं दिया और सीधे अपने कमरे में चले गए और चंदन कॉलेज के लिए निकल गया |
कोई 10 मिनट के बाद चंदन वापस लौट कर आया तब तक अमरावती, पूर्णिमा और बाकी औरतें भी के बागान में ही थी हांफता हुआ चंदन वापस आता है और कहता है |
चंदन ( अमरावती से ) - माँ, प्रकाश पब्लिकेशन में ताला पड़ गया, हमेशा के लिए बंद हो गया, सब की नौकरी चली गई हमेशा के लिए |
इस खबर को सुनते ही औरतों की मज़लिस टूट गई, सबके चेहरे का रंग उतर गया और औरतें अपने घर को चली गईं |
थोड़ी देर के लिए अमरावती, चंदन, नंदन, चंपक और पूर्णिमा चुपचाप बैठे रहे और थोड़ी देर बाद पूर्णिमा बोल पड़ी |
पूर्णिमा ( चंपक से ) - चंपक जा पापा को एक गिलास पानी देकर आ |
अमरावती तीखे स्वर में चंपक से ) - पानी देने की जरूरत नहीं है अभी एक ही घंटे पहले ही तो गए थे ऑफिस, इतनी सी देर में कौन सा गाला सुख गया होगा |
अमरावती के चेहरे पर ना तो दुख का भाव था, ना परेशानी, ना भविष्य की चिंता, ना राम अमोल पाठक की चिंता का | चंदन की मां यानि अमरावती के चेहरे पर एक ही भाव था रोष का और गुस्से का । अमरावती की समझ बस इतनी ही थी कि मेरी जिंदगी सुख में कट रही थी, अब उस सुख में खलल पड़ने वाली है उसकी वज़ह राम अमोल पाठक हैं | अमरावती राम अमोल पाठक जी को हर बात का दोषी मान लिया था और गुस्से से उबल रही थी और गुस्से का भाव साफ उसके चेहरे से झलक रहा था।
राम अमोल पाठक जी का पूरा वक्त घर पर ही बीत रहा था, हर एक के व्यवहार की बारीकियों पर ध्यान दे रहे थे राम अमोल पाठक अपने बड़े बेटे चंदन से काफी प्रभावित थे क्योंकि चंदन की बातों और व्यवहार से अच्छे सोच-विचार की झलक आती थी और अपने छोटे भाई-बहनों को अच्छी अच्छी बातें सिखाने की कोशिश करता । जिस कारण से राम अमोल पाठक जी अपने बेटे चंदन को पसंद करते थे ठीक उसी कारण से उनकी बीवी चंदन की माँ यानि अमरावती अपने बड़े बेटे से नाराज रहा करती थी क्योंकि अमरावती को अच्छी सोच, अच्छी समझ और अच्छे विचार से परहेज और परेशानी थी ।
अमरावती को समझ पाना एडिटर साहब के लिए मुश्किल हो रहा था, वह साफ-साफ देख पा रहे थे कि अमरावती अपने बच्चों को अस्त्र-शस्त्र की तरह इस्तेमाल करती है ।क्योंकि अब एडिटर साहब की नौकरी नहीं है अमरावती हर बात पर एडिटर साहब का अपमान करती है इतना ही नहीं और नंदन के हाथों राम अमोल पाठक जी का भरपूर अपमान करवाती ।
एक रोज़ नंदन को देर रात घर आते देख एडिटर से साहब से रहा न गया और बोल पड़े ।
राम अमोल पाठक ( नंदन से ) - यह कोई वक्त घर लौटने का? ।
नंदन ( अमोल पाठक से ) - पापा, आपका खाली दिमाग आपका शैतान का घर हो रखा है और कोई बात नहीं है | मेरे पीछे खोजबीन करने से बेहतर होगा कि आप नौकरी ढूंढें ।
अमरावती ( राम अमोल पाठक से ) - बिल्कुल सही कह रहा है नंदन, कब तक घर में बैठे रहोगे ? कोई कामकाज ढूंढो 6 महीने की सैलरी पलक झपकते उड़ जाएगी फिर क्या करोगे ? हम सबको कटोरा लेकर मंदिर के दरवाजे पर बिठाओगे ?
बीवी का ऐसा जवाब सुन अमोल पाठक बेचैन हो उठते हैं पर कुछ कह नहीं पाते, बेटे का व्यवहार देखकर राम अमोल पाठक जी नाराज ना हो कर परेशान हो जाया करते । एडिटर साहब को इस बात का अफसोस था कि काश मैंने पूरे घर की बागडोर अमरावती को नहीं दी होती आज मेरे बच्चे कुछ और होते, मुझे अपनी नौकरी पर कम और बच्चों पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए था, यह अफसोस उन्हें बार-बार घेरता था ।
बेटी पूर्णिमा को दिनभर रसोई में खाना बनाते और औरतों की चुगली यों में हिस्सा लेते देख परेशान हो जाया करते थे और एक दिन उनसे रहा न गया और बोल पड़े ।
आलोक पाठक ( पूर्णिमा से ) - पूर्णिमा थोड़ी पढ़ाई किया करो, इंटरमीडिएट की परीक्षा है फेल होना है क्या?
पूर्णिमा ( अमोल पाठक से ) - पापा आप हमेशा किसी न किसी के पीछे पड़े रहते हो, पहले नंदन के पीछे पड़े और अब मेरे पीछे पड़ गए हो ।
अमोल पाठक जी ( नाराज होकर पूर्णिमा से ) - यह कोई बात करने का तरीका है ?
अमरावती (अमोल पाठक से ) - एडिटर साहब अपना तरीका क्यों नहीं देखते ? पंद्रह-सोलह बरस की सयानी बेटी से कोई ऐसे बात करता है । तुम्हारे पास जितने पैसे हैं उतने पैसे में यह मजिस्ट्रेट तो ना बन सकेगी तो इसे चूल्हा चौका सीखने दो, यही आगे चलकर काम आएगा इसके |
राम अमोल पाठक ( अमरावती से ) - चंदन की मां तुम बच्चों को गलत दिशा दे रही हो |
अमरावती ( अमोल पाठक से ) - कहना क्या चाहते हो साफ-साफ कहो |
राम अमोल पाठक ( अमरावती से ) - मैं पैसे कमाने में रह गया और तुमने बच्चों को गलत दिशा दे दी |
जैसी अमरावती की समझ है उसका जवाब भी बिल्कुल वैसा ही है |
अमरावती ( राम अमोल पाठक से ) - (तीखे स्वर में ) हाय एडिटरी करके तो तुमने मुझे रानियों की जिंदगी दी थी और बच्चों को राजकुमार-राजकुमारियों की | जिसके लिए मैं बड़ी एहसानमंद हूँ | पर अब आगे क्या ? हमें गांव की मिट्टी में मिलाने वाले हो या मंदिर में कटोरा लेकर बिठाने वाले हो ?
राम अमोल पाठक जी को समझ में आ गया था कि घर की समस्या बाद में देखी जाए पहले पैसे का इंतजाम करना जरूरी है इसलिए वह अपनी पूरी ताकत नौकरी ढूंढने में लगाने लगे |
सुबह सवेरे राम अमोल पाठक जी घर से निकल जाया करते और सूरजगढ़ के आसपास के शहरों में जितने भी छोटे-बड़े पब्लिकेशन हाउस थे उनमें नौकरी की अर्जी देते। यह सिलसिला भी 15-20 दिनों तक चलता रहा आखिरकार सूरजगढ़ की यूनिवर्सिटी के बच्चों को हिंदी, इंग्लिश और सोशल साइंस के विषयों का ट्यूशन देने लगे ।
वक़्त के साथ पैसे की समस्या दूर हो गई और वक़्त के साथ उनका खोया सम्मान भी वापस आ जाएगा ऐसी उम्मीद करते हुए राम अमोल पाठक जी सो गए |
पर अमरावती का एक और सच राम अमोल पाठक जी आगे आना बाकी था |
अगली सुबह कोई 9:30 बज रहे होंगे, राम अमोल पाठक जी बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के लिए जा रहे थे । थोड़ी दूर गए थे कि उन्हें याद आया कि वो घड़ी पहनना भूल गए हैं और घड़ी लेने के लिए घर वापस लौटते हैं। वह बरामदे में अपने जूते ही उतार ही रहे होते हैं कि उन्हें अमरावती की आवाज सुनाई देती है, अमरावती नंदन से बातें कर रही थीं ।
अमरावती ( दूसरे बेटे नंदन से ) - कल रात तुम्हारे पापा तुम पर काफी नाराज हो रहे थे, उनको तुम पर बिल्कुल भरोसा नहीं है, कह रहे थे कि तुम्हारी पढ़ाई पर एक भी पैसे खर्च नहीं करेंगे उनका मानना है कि तुम हाथ के बाहर हो चुके हो, तुम पर कोई भी पैसे खर्च करना पैसे की बर्बादी है और कुछ नहीं |
नंदन ( अमरावती से ) - ( नाराज होकर ) माँ ये तो कोई बात नहीं हुई ?
पूर्णिमा ( नंदन से) -मैं भी वही थी, माँ ने साफ साफ़ कह दिया की नंदन के सामने कोई नहीं है ? भैया भी नहीं |
पूर्णिमा ( नंदन से) - ( पूर्णिमा ने फिर दोहराया ), माँ ने पापा से साफ़-साफ़ कह दिया है कि कोई नंदन का साथ दे या ना दे, मैं उसके साथ कड़ी हूँ | मैं उसके आगे की पड़े अपने गहने बेच कर भी करवाउंगी | और देख लेना माँ किसी की सुनेगी नहीं, तुम्हारे लिए सब से लड़ जाएगी |
अमरावती और पूर्णिमा की बातें सुनकर नंदन पापा के खिलाफ बड़बड़ाने लगता है |
अब आगे कुछ भी सुन पाना राम अमोल पाठक जी के लिए असहनीय हो गया था | इसलिए राम अमोल पाठक जी ना तो घर के अंदर जाते हैं और ना ही घड़ी लेते हैं और चुपचाप वापस घर के बाहर चले जाते हैं |
राम अमोल पाठक मन ही मन में -
झूठी-सच्ची मनगढ़ंत कहानियां इस घर में कब से चल रही हैं ? आखिर कब से मेरे बच्चों को झूठी-सच्ची कहानियां सुनाकर अमरावती उन्हें गुमराह कर रही है और मुझे उनके नज़रों में गिरा रही है और तो और मेरी बेटी पूर्णिमा भी |