मैं हर रोज जरूरतमंद अपना काम-काज निपटा कर शब्दों को तौडने - जोडने की अपनी आदत से मजबूर था। मेरी पत्नी कुसुम लता घर की साफ-सफाई करते हुए का गुस्सा किसी दूसरी बात पर था लेकिन मेरी आदत पर अपना गुस्सा हल्का करते हुए बोली,
"अभी तो मां-बाप की कमाई का जरिया है, कभी कंप्यूटर खरीद लेते और कभी फोन बदल लेते और जब उनके चले जाने के बाद घर का सारा बोझ उठाओगे न, तब पता चलेगा, बाजार के भाव का।,,,,
दो साल हो गए कागज़ों को काला-नीला करते - करते न कही पत्थर फूटे और न कही से फूटी - कौड़ी मिली? बडे चाव और दावे से कहते थे इस लाइन में आम के आम और गुठलियों के दाम! ",,,,
मैने कुसुम लता जी की ये बातें एक कान से सुनी और दूसरे से निकाल दी। बहरहाल जो कुछ भी हो कुसुम लता का गुस्सा जायज था और मैं ही उसका कसूरवार था। कल उन्होंने मुझसे कहा था कि आज हम दोनों ने बड़ी बहन के घर उनसे मिलने जाना हैं। न चाहते हुए भी मेरे मुख से निकल पड़ा,
"अरे भाग्यवान ! दूसरे दिन तो आप दोनों बहनों के बीच वीडियो काल पर बातचीत होती रहती है, फिर वहां आने - जाने की इतनी जल्दी भी क्या है?"।
"हा, जल्दी हैं। जो दुख - सुख की बातें आपस में बैठ कर ली जाती है न वह फोन पर नहीं होती।"
"देखो, जीजा - साली का ये रिश्ता ऐसा ही होता है, घर के न सही, पड़ोसी दूसरे नजरिए से देखते है। " मैंने चुटकी ली।
" पडोसी दूसरे नजरिए से देखें या तीसरे नजरिए से हम दोनों बहनों के उपर कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि हम दोनों बहनें पाक - साफ़ है और रहेगी। ",,,, ,,,
" मानता हूं, लेकिन आज न जेब में पैसा है और न बाइक में पैट्रोल,,,,,, फिर कभी चल पडेगे?,,,, मैने सचभाव में कहा। कुसुम लता आगे बिन बोले उदास हो मेरे पास से उठकर फिर अपने काम में जुट गई एक गऊ की तरह। जाने क्या सोच रही होगी कि उसकी आखें छलक आई थीं और मै सहन नहीं कर सका। उठकर उनके पास गया।
"कुसुम लता! काम छोडो और चलो चलते हैं।"
"कहा?
" तुम्हारी बहन के घर और कहा? "
" बाइक में पैट्रोल और जेब में पैसा तो नहीं है "
दबी-कुचली सी आवाज उसके मुख से निकली
" तुम उस बात की चिंता मत करो? "
मेरी जेब में पैसा भी था और बाइक में पैट्रोल भी। और फिर हम उड गए आजाद पंछी की तरह।
स्वरचित एवं मौलिक
नयपाल सिंह चौहान, तिगरा,
यमुना नगर - 135001 (हरियाणा)
29 / सितंबर /2022