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प्रकृति से प्यार

15 मई 2022

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 मेरी डायरी,

आज मैं बहुत खुश हूँ। क्योंकि मुझे एक मुकाम मिला है। कुछ नया ज्ञान, कुछ नई विवेचना, जो हमारे रास्ते को आसान बनाती हैं। मेरी संस्था मेरी पहचान है। आज पद्य माह की गोष्ठी थी। मेरी कविता -  पर्यावरण बचाओ  को  काफी सराहना मिली |  पर्यावरण की हरियाली हमारे ज़ेहन को शुकुन देता है | उसका महत्व मुझे शहर बदलने पर पता चला |  बिना पेड़- पौधों के घर घर नहीं  लगता | आजकल तो होटलों, रिसोर्ट, डोरमेट्री हर जगह हरियाली फैली रहती है | सभी जगह जंगलों और प्राकृतिक दृश्य को जगह दी जाती है | लेकिन हम जो भाषण तो बहुत देते हैं पर करते कुछ और ही हैं |  विकास के नाम पर छोटे खोमचे वाले हों या सड़क किनारे दुकान लगा कर रोजी-रोटी चलाने वाले हों , सभी के पेट पर लात मारी जाती है | फिर हरियाली समाप्त कर कंक्रीट की सड़क और पुल का निर्माण कर दिया जाता है |  इन सब के बीच कोरोना ने जो कहर ढाया वह  किसी से छिपा नहीं है | 

प्रकृति के आंचल तले बसा समस्त संसार/

हरी-भरी धरती बनी उदर-पूर्ति के द्वार।

शीतल पवन के झोंके लाये संग जीवन की सांसें/

आतुर पक्षी के कलरव बने कानों की झंकार।

मेघा बरसे रिमझिम बूँदों से भरती नदी,

पीकर उनका जल शीतल प्यास बुझे मन की।

स्वच्छ, शीतल शमां है स्वस्थ्य जीवन का आधार,

कुटिल विचारों ने किया प्रकृति से व्यभिचार।

परिणाम धरा पर बिखरा पड़ा है,

जीवन जीते गिन-गिन सांसें।

घर में बंद पड़े सोच रहे,

कैसे होंगे दिन कैसे कटेगी रातें।

आज के लिए इतना ही 🙏

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