पहली बार कैमरे के सामने आया तो पता चला। कि उसमें बात करना कोई बच्चों का खेल नहीं है। पहली बार माइक पर कुछ बोलना मेरे लिए एक अलग अनुभव था।। क्लास की पीछे वाली सीट पर बैठकर बातें करना। अलग बात है। फिर भी मैं बहुत खुश था। मैं जिस चैनल को देखता था। आज मैं उसमें खुद आने वाला हूं। ये सोचकर मैं बड़ा ही रोमांचित हो रहा था। सभी करीबी दोस्तों को पहले से ही बता दिया था कि ठीक शाम को 7 बजे मै टीवी पर रहूंगा। इंटरव्यू में मैं क्या पहनकर जाऊं बड़ा कन्फ्यूजन था। पर आखिरी मे चिट पट करके एक पीली वाली शर्ट पहन लिया। पापा भी जल्दी आ गए थे। ताकि इंटरव्यू का कोई हिस्सा उनसे छूट न जाएं। सारे मोहल्ले वालों ने एक घंटा पहले ही टीवी ऑन कर लिया था। न जाने कैसे प्रश्न पूछे जाएंगे। ये मन में दुविधा थी। पर जैसे जैसे प्रश्न का सिलसिला आगे बढ़ता गया। सबकुछ सरल होता गया। सामने बैठे दर्शक जब ताली बजाते थे तो मेरा मनोबल और बढ़ जाता था। इस तरह एक साधारण इंटरव्यू एक यूनिक इंटरव्यू बन गया।