कभी कभी मन करता है कि सबकुछ छोड़कर अपने मन की करूं।
पर सबकुछ हमारे मन के हिसाब से नहीं होता है। वो कुछ और सोचते है। मैं कुछ और। दोनों की सोच मिल जाए। ऐसा हर बार नहीं होती हैं। उनको लगता वो सही है और मुझे लगता है । मैं सही हूं। सबके हिसाब से करते करते आप अपनी पहचान कब खो देते हैं हमे पता ही नहीं चलता है।