समाज का पुरुष प्रधान तू
सब कहते शक्तिमान तू .
मुझे कोई संज्ञा न दो , बीटा भाई और पिता हूँ .
बस अपनों के लिए जीता हूँ .
सारे काम कर मैं सोता हूँ.
कोई जिज्ञासा लेकर उठता हूँ .
अपने जीवन की व्यधिओ से
अर्जुन बनकर लड़ता हूँ .
शाम को घर आ कर अपना तन- मन पाता हूँ .
बच्चो की किलकारी सुन मैं बच्चा बन जाता हूँ .
स्वयं के निर्णय पर अडिग होता हूँ .
सब कुछ खोकर कुछ नहीं होता खोता हूँ .
मैं पुरुष हूँ कभी नहीं रोता हूँ .
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