ये भी बड़ी अजीब बात है। पढ़ते किताब है। पर घड़ते कुछ और है। मन और किताब की दोस्ती करना बडा मुश्किल काम है।
हो जाए टी अच्छी बात है। नही तो फिर भगवान ही मालिक है। एक्समा के एक दिन पहले दिन बस इनकी बहुत याद आती है। बाकी दिन ये अलमारी की शोभा बढ़ाते हैं। जायदा पढ़ लो ज्ञानी बनने का टेंशन। काम पढ़ लो तो अज्ञानी बनने का टेंशन।,,,,,,,,,,,