बचपन की यादो का भी क्या कहना है . स्कूल न जाने के लिए हम भी बड़े बहाने करते थे .
पेट पर अपनी हाथ रखकर जोर से दर्द होने का बहाना किया करता था . पर मम्मी हमें पकड़
लिया करती थी . और हमे स्कूल जाना पड़ता था . अगर किसी कारन हम स्कूल नहीं जाने का
बहाना करते थे , तो मम्मी हमे 1 रूपए वाली चॉकलेट दिलाकर या शाम को अच्छी डिश
बनाने का वडा करने पर ही हम स्कूल जाय करते थे . स्कूल से आने के बाद बस हमारा एक ही काम हुआ
करता था , बंदरो के चित्र बनाना और यही हमारी पढाई होती थी . ठीक सोने से पहले हमे याद आता था .
मैडम ने हमे होमवर्क दिया हैं . जैसे तैसे आधा अधूरा होमवर्क करके जाते थे . मैडम गुस्से में आकर हमे
थोड़ी देर के लिए बेंच पर खड़ा कर देती थी. फिर हमे बैठा दिया करते थे . अक्सर मेले के दिन पर
रेड टी शर्ट और नीचे ब्लैक पेंट पहनना नहीं भूलते थे . स्पेशल चीज सीटी वाले जुटे जो हमारे लिए
सबसे जयादा महत्वपूर्ण होता था .मेले में पहुंचकर हमारी पहली प्राथमिकता गुपचुप होती थी .
अगर हमने मेले में जाकर गुपचुप का स्वाद नहीं लिया तो हमारा मेला जाना ही व्यर्थ होता था .
एक हाथ में मिठाई और एक हाथ में रंगीन गुब्बारा लेकर हम बड़ी शान से घर लौटते थे .
अपनी गलियों में कंचे खेलना , और बारिश के दिनों में कागज की नाव बनाकर पानी पर चलाना
ही हमारा काम होता था . आज ये स्छूल ,चॉकलेट , मेला और बारिश बहुत याद आती हैं .