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आपदा सदैव एक अवसर के साथ आती है|

23 अक्टूबर 2024

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जी हाँ,  मित्रों जब पूरे विश्व में कोरोना काल का भयानक दौर चल रहा था, सर्वत्र त्राहि माम त्राहि माम की असहनीय दशा अपने चरम पर थी, तब हमारे प्रधानमंत्री (श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी) ने देशवासियो का हौसला बढ़ाते हुए कहा था कि इस आपदा से घबराने की आवश्यकता नहीं है, अपितु इसका डटकर सामना करने की आवश्यकता है, इस आपदा को अवसर में बदलने की आवश्यकता है! 

मित्रों ये कोई नई बात नहीं कहीं थी हमारे प्रधानमंत्री ने, उन्होंने केवल हमें याद दिलाया था और अपने प्रतिभा, योग्यता और ज्ञानका उपयोग करते हुए,
इसका सामना करने की बात कही थी। अब आप सोच रहे होंगे की“आपदा में अवसर तलाशने वाली बात ”पुरानी कैसे हो सकती है, तो आइये मैं आपको कुछ उदाहरण देकर इसका प्रमाण देता हूँ! हम अत्यंत प्राचीन काल में ना जाकर दूसरे विश्व युद्ध से हि इसकी शुरुआत करते हैं:- 

१:- जब अंग्रेज विश्वयुद्द में उलझें थे तो इसका प्रभाव हमारे देश परभी पड़ रहा था, ये विश्वयुद्ध पूरी मानवता पर एक मानव निर्मित आपदा थी और इसी आपदा में हमारे प्रिय नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को भारत को स्वतन्त्रता दिलाने का अवसर दिखाई दिया, उन्होंने गाँधी जी से कहा की इस वक़्त हमें इन अंग्रेजो के विरुद्ध विद्रोह छेड़ देना चाहिए, अंग्रेज युद्ध में फसे होने के कारण इसका दमन नहीं कर पाएंगे, पर अंग्रेजो के प्रिय गाँधीजी ने इसे नहीं माना अपितु उन्होंने अंग्रेजो की सहायता करने का निर्णय लिया। 

२:- मित्रों याद करिये जब स्व श्री लाल बहादुर शास्त्री जी प्रधानमंत्री थे, उस दौरान सूखा और अकाल पड़ जाने के कारण देश खाद्यान्न संकटसे जुझ रहा था।अमेरिका से गेंहू आयात होता था और अमेरिका सुअरो को खिलाने वाला गेंहू भारत को देता था। इसी बीच पाकिस्तान ने आक्रमण कर दिया। शास्त्री जी ने एक कुशल सेनापति की भांति सेना को युद्ध के लिए तैयार किया और आदेश दिया कि दुश्मन को उसकी औकात बता दो। भारतीय सेना ने अद्भुत पराक्रम और वीरता का परिचय दिया और कराची और लाहौर तक घुसकर पाकिस्तानियो का जूस निकालने लगी, तब घबराकर पाकिस्तान अमेरिका के पास गया और भारत को युद्ध से रोकने के लिए प्रार्थना किया।उधर अमेरिका अपने घमंड में चूर होकर तुरंत भारत को युद्ध रोकने के लिए आदेश दिया और ऐसा ना करने पर गेंहू का निर्यात बंद करने की धमकी दी। 

मित्रों ये उस वक़्त के कई आपदाओं में से एक आपदा थी, पर शास्त्री जी अमेरिका के सामने झुके नहीं, उन्होंने अपने देशवासियों से प्रार्थना की यदि हम सब मिलकर एक वक़्त के भोजन का त्याग कर दे तो इस भुखमरी वाले हालात से निपट सकते हैं और इसके बाद इन्होने जब “जय जवान जय किसान”  का मंत्र दिया तो पूरा देश इनके साथ हो गया और इस प्रकार अमेरिका के घमंड को धूल में मिला दिया। शास्त्रीजी ने आपदा को एक अवसर के रूप में देखा और पूरे भारत के जनमानस को एकजुट कर दिया। 

३:- याद करिये जब पश्चिमी पाकिस्तान के लोग पूर्वी पाकिस्तान के लोगों परअत्याचार कर रहे थे और बड़ी मात्रा में पूर्वी पाकिस्तान के लोग भारत की सीमा में प्रवेश कर रहेथे शरणार्थी के रूप में।इससे भारत की स्थिति अस्थिर हो रही थी, क्योंकि लाखों की संख्या में शरणार्थीयो के लिए व्यवस्था करना अत्यंत हि मुश्किल हो रहा था। उस वक़्त भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी जी थी। उन्होंने अमेरिका से पाकिस्तान में चल रहे गृहयुद्ध को रोकने के लिए दखल देने की बात कही, पर अमेरिका ने अनसुनाकर दिया, फिर क्या था, इंदिराजी ने इस आपदा को अवसर के रूप में देखा और भारतीय सेना के पराक्रम ने पाकिस्तान के दो हिस्से कर दिए, एक पाकिस्तान और दूसरा आज का बंग्लादेश। 

४:-याद करिये जब सोवियत संघ का विघटन हो चुका था औरअब अमेरिका केवल एक महाशक्ति केरूप में था। उस दौरान श्री नरसिम्हा राव जी कि सरकार थी। भारत को क्रायोजेनिक इंजन किअवश्यक्ता थी अपने एक प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए।रूस, भारत को वो इंजन देने के लिए तैयार था,
परन्तु अमेरिका के दवाब में आकरउसने क्रायोजेनिक इंजन देने से मना कर दिया। फिर क्या था भारत के वैज्ञानिकों ने इस आपदा में अवसर को तलाशा और ६ वर्षो के कड़े परिश्रम के पश्चात क्रायोजेनिक इंजन बनाने में सफलता प्राप्त कर ली। 

५:- याद करिये जबअमेरिका ने भारत को स्पष्ट चेतावनी देते हुए कहा   था की, यदि भारत ने परमाणु बम का परीक्षण किया तो उसे गंभीर प्रतिबन्धो का सामना करना पड़ सकता है। अमेरिका के डर से कोई भी देश हमें यूरेनियम देने के लिए तैयार नहीं था। तब स्व श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी और स्व डॉ अब्दुल कलाम जी ने इस आपदा को अवसर के रूप में लिया और जब अमेरिका के अधुनिकतम सेटेलाइट्स को चकमा देकर राजस्थान के पोखरन में एक नहीं अपितु तीन परमाणु विस्फोट सफलतापुर्वक किये तो पूरी दुनिया सहित अमेरिका भी  भौचक्का रह गया। 

तो मित्रों देखा आपने किस प्रकार पहले भीआपदा को अवसर में बदलकर उसका वीरतापूर्वक सामना करने के उदाहरण मिलते हैं। मित्रों आपने ये भी देखा होगा की नकारात्मक ऊर्जावाली शक्तियों ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास जी के इस “आपदा अर्थात "  COVID -19"  को अवसर में बदलने” वाले मंत्र का जानबूझकर केवल उनका अपमान करने के लिए ना केवल गलत अर्थ निकाला अपितु उसे जोर शोर से प्रचारित भी किया। 

पर जैसा कि आप जानते हैं, ये सबका अपना अपना स्वभाव और सोच होता है, कुछ लोग अच्छाई में भी बुराई ढूंढते हैं और वहीं कुछ बुराई में भी अच्छाई निकाल लेतेहैं।  श्रीमद्भागवत गीता अध्याय ६ – आत्मसंयमयोग के श्लोक ८ में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं:-

" ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेन्द्रियः। युक्त इत्युच्यते योगीसमलोष्टाश्मकांचनः॥ ८॥" 

अर्थात :- जिसका अन्तःकरण ज्ञान-विज्ञान से तृप्त है, जिसकी स्थिति विकाररहित है, जिसकी इन्द्रियाँ भलीभाँति जीती हुई हैं और जिसके लिए मिट्टी, पत्थरऔर सुवर्णसमान हैं, वह योगीयुक्त अर्थात भगवत्प्राप्त है, ऐसे कहा जाता है॥अब यदि आप अपने प्रधानमंत्री केदैनिक जीवन पर ध्यान केंद्रित करें तो आपको अवश्य ज्ञात हो जाएगा की उपर्युक्त श्लोक की एक एक बात उन पर चरितार्थ हो जाती है।अब आइये कोरोना काल में हमारे प्रधानमंत्री ने किस प्रकार इस आपदा को अवसर में बदला:- 

१:- इस आपदा को अवसर् बनाते हुए हमारे देश के वैज्ञानिकों ने रूस, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस का मुकाबला करते हुए, दुनिया में सबसे ज्यादा असरदार वेक्सिन बनाई। 

२:- भारत ने दुनिया के लगभग ८० छोटेबड़े देशों में बिना मूल्य केवेक्सिन भेजी।इस वेक्सिन डिप्लोमेसी ने भारत कि विदेश निति को जबरदस्त मजबूती प्रदान की। 

३:- भारत ने ना केवल अपने ८२ करोड़ देशवासियों को बिना मूल्य के राशन प्रदान किया अपितु दुनिया के कई गरीब देशों को भी राशन भेजा।इस राशन डिप्लोमेसी ने भी भारत का कद पूरी दुनिया में ऊँचा कर दिया। 

४:- भारतने अमेरिका जैसी महाशक्ति से लेकर भूटान जैसे छोटे देश तक सभी को दवाइयां भेजी। 

५:- कई चिकित्सा के उपकरण पहले भारत में नहीं निर्मित होते थे, परन्तु इस आपदा काल में उन सभी अधारभूत चिकित्सीय परिधानो और उपकरण का निर्माण शुरूहो गया और यही नहीं भारत ने उसका निर्यात भी शुरू कर दिया। और इस प्रकार आपदा को अवसर में बदलने वाले मंत्र ने पूरे देश को एक गज़ब के उत्साह और जोश में भर दिया, जिसने ना केवल विश्वपटल पर भारत के कद को ऊँचा किया अपितु देशवासियों में आत्मविश्वास की बहुप्रतीक्षित ज्योति प्रज्वलित कर दी। श्रीमद्भागवत गीता अध्याय ६ – आत्मसंयमयोग के श्लोक ४६ में भगवान् कहते हैं:- 

" तपस्विभ्योऽधिको योगीज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिकः। कर्मिभ्यश्चाधिको योगीतस्माद्योगी भवार्जुन॥ ४६ ॥"  

अर्थात :-  योगी तपस्वियों से श्रेष्ठ है, शास्त्र ज्ञानियों से भी श्रेष्ठ माना गया है और सकाम कर्म करने वालों से भी योगी श्रेष्ठ है। इससे हे अर्जुन!
तू योगी हो ! हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी जी वही योगी हैं।  पर इन विवेकहीन विपक्षियों को क्या कहें जो नाख़ून कटा के शहीद होने का दर्जा हासिल करना चाहते हैं,  पर मित्रों इनके विषय में हमारे शास्त्र क्या खूब कहते हैं :-          

यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्रं तस्य करोति किं।लोचनाभ्याम विहीनस्य, दर्पण:किं करिष्यति।।

अर्थात:- जिस मनुष्य के पास स्वयं का विवेक नहीं है, शास्त्र उसका क्या करेंगे। जैसे नेत्रविहीन व्यक्ति के लिए दर्पण व्यर्थ है। मित्रों आपदा आवश्यकता पैदा करती है और आवश्यकता ही अविष्कार की जननी होती है अत: आपदा किसी भी प्रकृति की हो अपने साथ एक अवसर अवश्य लेकर आती है |                                       

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रचनाएँ
वो नहीं तो कौन ?
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मित्रों ये किताब उस व्यक्ति विशेष को समर्पित है जिसके सद्चरित्र, अनुशाशन, ईमानदारी, शांतिप्रियता, कर्मठता और अपने राष्ट्र और राष्ट्जनो के प्रति अथाह प्रेम और समर्पण का कायल सम्पूर्ण विश्व है | आप में से बहुत लोग मेरे विचार से असहमत हो सकते हैं परन्तु वर्तमान में भारत की स्थिति और विश्व के अन्य देशों की स्थिति का तुलनात्मक विशेलषण करने के पश्चात आपकी असहमति कुछ सिमा तक सहमति में परिवर्तित हो सकती है | हमारे शास्त्रों केअनुसार "विदेशेषु धनं विद्या व्यसनेषु धनं मति:। परलोके धनं धर्म: शीलं सर्वत्र वै धनम्॥" अर्थात विदेश में विद्या धन है, संकट में बुद्धि धन है, परलोक में धर्म धन है और शील(अच्छा चरित्र ) सर्वत्र ही धन है! इसी को चरितार्थ करता वो महापुरुष विश्व का सबसे लोकप्रिय जनप्रतिनिधि बन कर उभर चूका है| वृतं यत्नेन संरक्षेद वित्तमेति च याति च | अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः!" अर्थात चरित्र की यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए। धन तो आता-जाता रहता है। धन के नष्ट होने पर भी चरित्र सुरक्षित रहता है, लेकिन चरित्र नष्ट होने पर सबकुछ नष्ट हो जाता है। और उस महापुरुष के पावन जीवन से इसी तथ्य की शिक्षा मिलती है | वो महा व्यक्तित्व जानता है कि "येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः । ते मृत्युलोके भुवि भारभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति! अत: वोअपने ज्ञान के प्रकाश से विश्व को रोशन करता है और अपना सर्वस्य दान कर देता है | वो एक तपस्वी का जीवन जीता है और कर्म को अपने जीवन का आधार बना के ही जीता है | वो यह भी जानता है कि "मानं हित्वा प्रियो भवति। क्रोधं हित्वा न सोचति।।कामं हित्वा अर्थवान् भवति। लोभं हित्वा सुखी भवेत्।।" इसीलिए हर प्रकार के अहंकार को त्याग कर सबका प्रिय बन चूका है| उसने क्रोध, कामेच्छा तथा लोभ को त्याग कर स्वयं को सुखी बना लिया है और सबको प्रेरित कर रहा है। "यथा चित्तं तथा वाचो यथा वाचस्तथा क्रियाः ! चित्ते वाचि क्रियायांच साधुनामेक्रूपता !!" वो अच्छा है इसलिए उसके ह्रदय में जो है उसे ही वो प्रकट करता है, वो जो कहता है वही करता है , उसके मन, वचन और कर्म में समानता होती है | और जब ऐसे व्यक्ति का विरोध कोई करता है तो मैं उससे केवल एक प्रश्न पूछता हूँ कि "वो नहीं तो कौन ?"
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हाँ तुम लोग सही कह रहे हो वो तानाशाह है इसलिए :-   १:-तुम उसे खुलेआम "मौत का सौदागर, नीच, भ्रष्ट, चोर और ना जाने कैसे कैसे अपशब्दों से पुकारते हो और वो तुम्हें इसके लिए क्षमा कर  देता है और tumhare व

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