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विपक्ष की राजनीति केवल "विरोध"।

23 अक्टूबर 2024

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जी हाँ मित्रों आज का विपक्ष केवल एक मुद्दे पर जिवित है और वो है "विरोध"। विरोध यदि सकारात्मक है तो उसका प्रभाव राष्ट्र के जनमानस पर अवश्य पड़ता है और वो भी उसमें सम्मिलित होने का प्रयास करता है उदाहरण के लिए स्वतंत्र भारत में जननायक स्वर्गीय जयप्रकाश नारायण का विरोध एक सकारात्मक विरोध था जिसने जन आंदोलन का रूप ले लिया । विरोध यदि नकारात्मक हो तो भी स्वार्थी शक्तियाँ एक साथ आ जाती है उदहारण के लिए CAA का विरोध और शाहीन बाग।

पर मित्रों विरोध केवल विरोध करने के लिए किया जाये अर्थात औचित्यहीन हो तो फिर उसका ना तो कोई प्रभाव होता है और ना सम्मान। आज का विपक्ष तीन प्रकार के विरोध पर साँसे ले रहा है:-

१:- प्रधान सेवक श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी का विरोध;

२:- विश्व के एकमात्र धर्म सनातन धर्म का विरोध तथा 

३:- देश को समृद्ध बनाने वाले अडानी, अम्बानी और टाटा इत्यादि उद्योग समूह का विरोध।

१:- प्रधान सेवक का विरोध:- आज का विपक्ष प्रधान सेवक के विरोध में इतना व्यस्त हो चुका है कि वो जनता जनार्दन के समक्ष हँसी का पात्र बन रहा है उसे  इस बात का अनुमान ही नहीं है। प्रधान सेवक को अपमानित करने हेतु भरी सभाओ में मौत का सौदागर, चौकीदार चोर है, रावण, भ्रष्ट, निच, चायवाला, अनपढ़ और देश को बेचने वाला इत्यादि शब्दों से संबोधित करते हैं। उनको उनकी औकात बताने और बोटी बोटी काट देने की धमकियां देते हैं और तो और "मोदी तेरी कब्र खुदेगी" जैसे असमाजिक और अनैतिक नारे लगाए जाते हैं। यही नहीं प्रधान सेवक के द्वारा जनता की भलाई के लिए क्रियान्वित प्रत्येक योजना का विपक्ष ने केवल विरोध करने के लिए विरोध किया, उदाहरणार्थ उज्ज्वला योजना के अंतर्गत निशुल्क गैस कनेक्शन और गैस सिलेंडर देना हो, स्वच्छ भारत योजना के अंतर्गत टॉयलेट बनावाना हो, आयुष्मान योजना के अंतर्गत ₹५ लाख तक का चिकित्सा बीमा करवाना हो, जन धन योजना से करोड़ो लोगों के खाते खुलवाना हो, क्रांतिकारी UPI सिस्टम से लेन देन शुरू करना हो, किसान सम्मान निधि योजना से प्रत्येक वर्ष ₹६०००/- किसानों को देना हो, राफेल खरीद कर रक्षा प्रणाली को मजबूत करना हो और आतंकियों पर सर्जिकल स्ट्राइक हो प्रत्येक का विपक्ष ने विरोध ही किया और तो और COVID-19 की वैक्सीन को "मोदी का वैक्सीन" बताकर लगवाने से इंकार करके जनता को भी भ्रमित करने का पूरा प्रयास किया यहाँ तक कि राष्ट्र के वैज्ञानिकों को भी अपमानित किया। पर इन विरोधों से विपक्ष जनता की दृष्टि से लगातार गिरता गया और आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है।

२:- सनातन धर्म का अपमान:- विपक्ष ने तो सनातन धर्म के अपमान की तो होड़ सी मचा दी। भगवा आतंकवाद की झूठी कहानी गढ़ना, मन्दिर में लोग लड़कियाँ छेड़ने जाते हैं जैसा वक्तव्य देना, हिन्दुत्व का विरोध करना, श्री रामचरित मानस के दोहों और चौपाइयों का निरर्थक अर्थ निकालकर उसका अपमान करना, श्री रामचरित मानस की प्रतियां जलाना, हिन्दू अर्थात निच बताना, हिन्दू धर्म ही नहीं है ये बताना और तो और सनातन धर्म को समाप्त करने के लिए खुले मंच से आवाज लगाना इत्यादि बातें तो विपक्ष के लिए आम सी बात हो गई है।रामनवमी, दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा, हनुमानजी की जयंती पर निकाले जाने वाले शोभा यात्रा पर पथराव करना तो आम सी बात हो गई है और तो और मंदिरों पर अतिरिक्त TAX लगा दिया जाता है सनातनियों की भूमि को वक्फ बोर्ड को दे दिया जाना ये तो आम सी बात हो गई है। सनातन धर्म के विरोध को खुला समर्थन देना और सनातनियों को जातियों में तोड़कर इनकी शक्ति को कम करने के षड्यंत्र पर विपक्ष पूरी मुस्तैदी के साथ कार्य कर रहा है। राम लला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार करना किस ओर इशारा कर रहा है। जब प्रधान सेवक द्वारिका में समुद्र के अंदर जाकर पूजा सम्पन्न किए तो उसका भी मज़ाक विपक्ष ने उड़ाया और इस प्रकार केवल विरोध करने के लिए विपक्ष ने सनातन धर्म का विरोध किया और इसका प्रतिफल भी विपक्ष को जनता ने दिया उनको हासिये पर धकेल कर।


३:- अडानी, अम्बानी और टाटा इत्यादि का विरोध:-अब विपक्ष को अडानी उद्योग समूह से सबसे अधिक चिढ़ है वो पानी पी पी कर अडानी को कोसते हैं, उन्हें बुरा भला कह्ते हैं। अडानी समूह के हर कदम का विरोध पूरी जान लगाकर करते हैं, कई बार तो उन्हें पता भी नहीं रहता है कि वो किस बात के लिए अडानी का विरोध कर रहे हैं। विपक्ष अपने अपने राज्यों में जैसे राजस्थान (अब भाजपा शासित) , पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ (अब भाजपा शासित) में तो अडानी समूह के साथ हाथ मिलाता है उन्हें गले लगाता है पर भाजपा शासित राज्यों में उन्हें गालियाँ देता है, अजीब है ना। लगभग यही रवैया विपक्ष अम्बानी और टाटा समूह के लिए भी अपनाता है अतः यह समझ से परे है कि विपक्ष आखिर इनका विरोध करता क्यूँ है? विपक्ष वैसे बेरोजगारी, महंगाई, कानून व्यवस्था और शिक्षा इत्यादि से जुड़े मुद्दे उठाता तो अवश्य है पर उस  पर गम्भीरता से जनता के समक्ष अपना विचार नहीं रखता जिससे ये मुद्दे मुख्य होने के पश्चात भी गौण हो जाते हैं।


अब विपक्ष एक बार फिर EVM के पीछे पड़ा हैं और उसका शील भंग करने का निरर्थक प्रयास कर रहा है।  इसी EVM के रहते जब वो कर्नाटक, तेलंगाना और तमिलनाडु इत्यादि में जब जीत दर्ज करते हैं तब उन्हें इससे परेशानी नहीं होती है परंतु भाजपा के जीतते ही इन्हें EVM चरित्रहीन नजर आने लगती है। अरे बख्श दो भाई इस EVM ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?

अब तो एक ही प्रश्न बार बार उठता है कि क्या ये विपक्ष इसी प्रकार की राजनीति करता रहेगा या फिर बड़ी सोच के साथ विपक्ष की असली भूमिका में आ पायेगा। इस प्रकार यदि हम देखें तो "  विरोध "  के अस्तित्व से खिलवाड़ कर रहा विपक्ष क्या मूर्खता की सिमा को भी पार कर रहा है और यदि ऐसा है तो फिर मूर्खो के विषय में हमारे शास्त्र कुछ इस प्रकार से अपनी भावना व्यक्त करते हैं :-    

भर्तृहरि नीति शतक-श्लोक ४ 

प्रहस्य मणिमुद्धरेन्मकरवक्रदंष्ट्रान्तरात्     समुद्रमपि सन्तरेत्प्रचलदूर्मिमालाकुलम् ।

भुजङ्गमपि कोपितं शिरसि पुष्पवद्धारये     न्न तु प्रतिनिविष्टमूर्खजनचित्तमाराधयेत् ॥ 

अर्थात  :-  अगर हम चाहें तो मगरमच्छ के दांतों में फसे मोती को भी निकाल सकते हैं, साहस के बल पर हम बड़ी-बड़ी लहरों वाले समुद्र को भी पार कर सकते हैं, यहाँ तक कि हम  गुस्सैल सर्प को भी फूलों की माला तरह अपने गले में पहन सकते हैं; लेकिन एक मुर्ख को सही बात समझाना असम्भव है।                                              


 

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रचनाएँ
वो नहीं तो कौन ?
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मित्रों ये किताब उस व्यक्ति विशेष को समर्पित है जिसके सद्चरित्र, अनुशाशन, ईमानदारी, शांतिप्रियता, कर्मठता और अपने राष्ट्र और राष्ट्जनो के प्रति अथाह प्रेम और समर्पण का कायल सम्पूर्ण विश्व है | आप में से बहुत लोग मेरे विचार से असहमत हो सकते हैं परन्तु वर्तमान में भारत की स्थिति और विश्व के अन्य देशों की स्थिति का तुलनात्मक विशेलषण करने के पश्चात आपकी असहमति कुछ सिमा तक सहमति में परिवर्तित हो सकती है | हमारे शास्त्रों केअनुसार "विदेशेषु धनं विद्या व्यसनेषु धनं मति:। परलोके धनं धर्म: शीलं सर्वत्र वै धनम्॥" अर्थात विदेश में विद्या धन है, संकट में बुद्धि धन है, परलोक में धर्म धन है और शील(अच्छा चरित्र ) सर्वत्र ही धन है! इसी को चरितार्थ करता वो महापुरुष विश्व का सबसे लोकप्रिय जनप्रतिनिधि बन कर उभर चूका है| वृतं यत्नेन संरक्षेद वित्तमेति च याति च | अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः!" अर्थात चरित्र की यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए। धन तो आता-जाता रहता है। धन के नष्ट होने पर भी चरित्र सुरक्षित रहता है, लेकिन चरित्र नष्ट होने पर सबकुछ नष्ट हो जाता है। और उस महापुरुष के पावन जीवन से इसी तथ्य की शिक्षा मिलती है | वो महा व्यक्तित्व जानता है कि "येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः । ते मृत्युलोके भुवि भारभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति! अत: वोअपने ज्ञान के प्रकाश से विश्व को रोशन करता है और अपना सर्वस्य दान कर देता है | वो एक तपस्वी का जीवन जीता है और कर्म को अपने जीवन का आधार बना के ही जीता है | वो यह भी जानता है कि "मानं हित्वा प्रियो भवति। क्रोधं हित्वा न सोचति।।कामं हित्वा अर्थवान् भवति। लोभं हित्वा सुखी भवेत्।।" इसीलिए हर प्रकार के अहंकार को त्याग कर सबका प्रिय बन चूका है| उसने क्रोध, कामेच्छा तथा लोभ को त्याग कर स्वयं को सुखी बना लिया है और सबको प्रेरित कर रहा है। "यथा चित्तं तथा वाचो यथा वाचस्तथा क्रियाः ! चित्ते वाचि क्रियायांच साधुनामेक्रूपता !!" वो अच्छा है इसलिए उसके ह्रदय में जो है उसे ही वो प्रकट करता है, वो जो कहता है वही करता है , उसके मन, वचन और कर्म में समानता होती है | और जब ऐसे व्यक्ति का विरोध कोई करता है तो मैं उससे केवल एक प्रश्न पूछता हूँ कि "वो नहीं तो कौन ?"
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जो कर्मयोगी है वो कभी रिटायर नहीं होता है। जो कर्म में विश्वास रखता है वो अवकाश के बारे में नहीं सोचता। एक कर्मयोगी सदैव अपने कर्तव्यों के प्रती उत्साहित और जागरूक रहता है। आज हमारे देश को  लालू जी न

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हे मित्रों, ईश्वर की असीम अनुकम्पा है हम भारतीयों के ऊपर कि हमने सही समय पर सही निर्णय लिया और किसी के बहकावे में ना आकर हम अपने निर्णय पर अडिग रहे और  अपने  देश  की  बागडोर  श्री  नरेंद्र  दामोदरदास

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27 अक्टूबर 2024
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हाँ तुम लोग सही कह रहे हो वो तानाशाह है इसलिए :-   १:-तुम उसे खुलेआम "मौत का सौदागर, नीच, भ्रष्ट, चोर और ना जाने कैसे कैसे अपशब्दों से पुकारते हो और वो तुम्हें इसके लिए क्षमा कर  देता है और tumhare व

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