जी हाँ मित्रों आज का विपक्ष केवल एक मुद्दे पर जिवित है और वो है "विरोध"। विरोध यदि सकारात्मक है तो उसका प्रभाव राष्ट्र के जनमानस पर अवश्य पड़ता है और वो भी उसमें सम्मिलित होने का प्रयास करता है उदाहरण के लिए स्वतंत्र भारत में जननायक स्वर्गीय जयप्रकाश नारायण का विरोध एक सकारात्मक विरोध था जिसने जन आंदोलन का रूप ले लिया । विरोध यदि नकारात्मक हो तो भी स्वार्थी शक्तियाँ एक साथ आ जाती है उदहारण के लिए CAA का विरोध और शाहीन बाग।
पर मित्रों विरोध केवल विरोध करने के लिए किया जाये अर्थात औचित्यहीन हो तो फिर उसका ना तो कोई प्रभाव होता है और ना सम्मान। आज का विपक्ष तीन प्रकार के विरोध पर साँसे ले रहा है:-
१:- प्रधान सेवक श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी का विरोध;
२:- विश्व के एकमात्र धर्म सनातन धर्म का विरोध तथा
३:- देश को समृद्ध बनाने वाले अडानी, अम्बानी और टाटा इत्यादि उद्योग समूह का विरोध।
१:- प्रधान सेवक का विरोध:- आज का विपक्ष प्रधान सेवक के विरोध में इतना व्यस्त हो चुका है कि वो जनता जनार्दन के समक्ष हँसी का पात्र बन रहा है उसे इस बात का अनुमान ही नहीं है। प्रधान सेवक को अपमानित करने हेतु भरी सभाओ में मौत का सौदागर, चौकीदार चोर है, रावण, भ्रष्ट, निच, चायवाला, अनपढ़ और देश को बेचने वाला इत्यादि शब्दों से संबोधित करते हैं। उनको उनकी औकात बताने और बोटी बोटी काट देने की धमकियां देते हैं और तो और "मोदी तेरी कब्र खुदेगी" जैसे असमाजिक और अनैतिक नारे लगाए जाते हैं। यही नहीं प्रधान सेवक के द्वारा जनता की भलाई के लिए क्रियान्वित प्रत्येक योजना का विपक्ष ने केवल विरोध करने के लिए विरोध किया, उदाहरणार्थ उज्ज्वला योजना के अंतर्गत निशुल्क गैस कनेक्शन और गैस सिलेंडर देना हो, स्वच्छ भारत योजना के अंतर्गत टॉयलेट बनावाना हो, आयुष्मान योजना के अंतर्गत ₹५ लाख तक का चिकित्सा बीमा करवाना हो, जन धन योजना से करोड़ो लोगों के खाते खुलवाना हो, क्रांतिकारी UPI सिस्टम से लेन देन शुरू करना हो, किसान सम्मान निधि योजना से प्रत्येक वर्ष ₹६०००/- किसानों को देना हो, राफेल खरीद कर रक्षा प्रणाली को मजबूत करना हो और आतंकियों पर सर्जिकल स्ट्राइक हो प्रत्येक का विपक्ष ने विरोध ही किया और तो और COVID-19 की वैक्सीन को "मोदी का वैक्सीन" बताकर लगवाने से इंकार करके जनता को भी भ्रमित करने का पूरा प्रयास किया यहाँ तक कि राष्ट्र के वैज्ञानिकों को भी अपमानित किया। पर इन विरोधों से विपक्ष जनता की दृष्टि से लगातार गिरता गया और आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है।
२:- सनातन धर्म का अपमान:- विपक्ष ने तो सनातन धर्म के अपमान की तो होड़ सी मचा दी। भगवा आतंकवाद की झूठी कहानी गढ़ना, मन्दिर में लोग लड़कियाँ छेड़ने जाते हैं जैसा वक्तव्य देना, हिन्दुत्व का विरोध करना, श्री रामचरित मानस के दोहों और चौपाइयों का निरर्थक अर्थ निकालकर उसका अपमान करना, श्री रामचरित मानस की प्रतियां जलाना, हिन्दू अर्थात निच बताना, हिन्दू धर्म ही नहीं है ये बताना और तो और सनातन धर्म को समाप्त करने के लिए खुले मंच से आवाज लगाना इत्यादि बातें तो विपक्ष के लिए आम सी बात हो गई है।रामनवमी, दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा, हनुमानजी की जयंती पर निकाले जाने वाले शोभा यात्रा पर पथराव करना तो आम सी बात हो गई है और तो और मंदिरों पर अतिरिक्त TAX लगा दिया जाता है सनातनियों की भूमि को वक्फ बोर्ड को दे दिया जाना ये तो आम सी बात हो गई है। सनातन धर्म के विरोध को खुला समर्थन देना और सनातनियों को जातियों में तोड़कर इनकी शक्ति को कम करने के षड्यंत्र पर विपक्ष पूरी मुस्तैदी के साथ कार्य कर रहा है। राम लला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार करना किस ओर इशारा कर रहा है। जब प्रधान सेवक द्वारिका में समुद्र के अंदर जाकर पूजा सम्पन्न किए तो उसका भी मज़ाक विपक्ष ने उड़ाया और इस प्रकार केवल विरोध करने के लिए विपक्ष ने सनातन धर्म का विरोध किया और इसका प्रतिफल भी विपक्ष को जनता ने दिया उनको हासिये पर धकेल कर।
३:- अडानी, अम्बानी और टाटा इत्यादि का विरोध:-अब विपक्ष को अडानी उद्योग समूह से सबसे अधिक चिढ़ है वो पानी पी पी कर अडानी को कोसते हैं, उन्हें बुरा भला कह्ते हैं। अडानी समूह के हर कदम का विरोध पूरी जान लगाकर करते हैं, कई बार तो उन्हें पता भी नहीं रहता है कि वो किस बात के लिए अडानी का विरोध कर रहे हैं। विपक्ष अपने अपने राज्यों में जैसे राजस्थान (अब भाजपा शासित) , पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ (अब भाजपा शासित) में तो अडानी समूह के साथ हाथ मिलाता है उन्हें गले लगाता है पर भाजपा शासित राज्यों में उन्हें गालियाँ देता है, अजीब है ना। लगभग यही रवैया विपक्ष अम्बानी और टाटा समूह के लिए भी अपनाता है अतः यह समझ से परे है कि विपक्ष आखिर इनका विरोध करता क्यूँ है? विपक्ष वैसे बेरोजगारी, महंगाई, कानून व्यवस्था और शिक्षा इत्यादि से जुड़े मुद्दे उठाता तो अवश्य है पर उस पर गम्भीरता से जनता के समक्ष अपना विचार नहीं रखता जिससे ये मुद्दे मुख्य होने के पश्चात भी गौण हो जाते हैं।
अब विपक्ष एक बार फिर EVM के पीछे पड़ा हैं और उसका शील भंग करने का निरर्थक प्रयास कर रहा है। इसी EVM के रहते जब वो कर्नाटक, तेलंगाना और तमिलनाडु इत्यादि में जब जीत दर्ज करते हैं तब उन्हें इससे परेशानी नहीं होती है परंतु भाजपा के जीतते ही इन्हें EVM चरित्रहीन नजर आने लगती है। अरे बख्श दो भाई इस EVM ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?
अब तो एक ही प्रश्न बार बार उठता है कि क्या ये विपक्ष इसी प्रकार की राजनीति करता रहेगा या फिर बड़ी सोच के साथ विपक्ष की असली भूमिका में आ पायेगा। इस प्रकार यदि हम देखें तो " विरोध " के अस्तित्व से खिलवाड़ कर रहा विपक्ष क्या मूर्खता की सिमा को भी पार कर रहा है और यदि ऐसा है तो फिर मूर्खो के विषय में हमारे शास्त्र कुछ इस प्रकार से अपनी भावना व्यक्त करते हैं :-
भर्तृहरि नीति शतक-श्लोक ४
प्रहस्य मणिमुद्धरेन्मकरवक्रदंष्ट्रान्तरात् समुद्रमपि सन्तरेत्प्रचलदूर्मिमालाकुलम् ।
भुजङ्गमपि कोपितं शिरसि पुष्पवद्धारये न्न तु प्रतिनिविष्टमूर्खजनचित्तमाराधयेत् ॥
अर्थात :- अगर हम चाहें तो मगरमच्छ के दांतों में फसे मोती को भी निकाल सकते हैं, साहस के बल पर हम बड़ी-बड़ी लहरों वाले समुद्र को भी पार कर सकते हैं, यहाँ तक कि हम गुस्सैल सर्प को भी फूलों की माला तरह अपने गले में पहन सकते हैं; लेकिन एक मुर्ख को सही बात समझाना असम्भव है।