जो कर्मयोगी है वो कभी रिटायर नहीं होता है। जो कर्म में विश्वास रखता है वो अवकाश के बारे में नहीं सोचता। एक कर्मयोगी सदैव अपने कर्तव्यों के प्रती उत्साहित और जागरूक रहता है। आज हमारे देश को
लालू जी ने "तेजस्वि" दिया, मुलायम सिंह जी ने अखिलेश दिया, सोनिया जी ने राहुल दिया, उद्धव ठाकरे ने आदित्य दिया, स्टालिन ने जूनियर स्टालिन दिया और ममता ने अभिषेक दिया इत्यादि।
और मित्रों इन सभी में जो एक बात समान रूप से पायी जाती है तो वो है, कि ये सभी सोने का चम्मच मुँह में लेकर पैदा हुए। बिना कुछ किए ही राजनीतिक कद इन्हें विरासत में मिल गया। बिना गली कूचे की खाक छाने ये विधायक, सांसद और मंत्री बन गए। उड़ते प्राइवेट विमान में अपना जन्मदिन, उड़ते हेलिकाप्टर में मछली को नोच नोच के खाकर उसकी कंकाल का मज़ाक उड़ाने वाले, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप में बैठकर डिग्रियां बटोरने वाले ये लालू, मुलायम और सोनिया के शहजादे जब कह्ते हैं कि :-
"इस देश से गरीबी एक झटके में मिटा देंगे", "हम ३० लाख भर्तीया करेंगे","हम रोजगार देंगे", "हम गरीबों को रोटी, कपड़ा और मकान देंगे","हम किसानों के लिए काम करेंगे","हम दलितों, पीड़ितों, शोषितों और नारियों के उत्थान के लिए कार्य करेंगे, तो मित्रों सच मानिये "हँसी और रोष के अलावा हमारे हृदय में और कुछ नहीं उत्पन्न होता।
मैं पूछता हूँ इन शहजादो से कि तुम धन दौलत और सुख- सुविधा की मखमली चादर में पैदा हुए और जवान हो गए (कुछ तो प्रौढ़ता भी पार कर गए) पर क्या तुमने कभी गरीब को देखा; क्या तुमने गरीबी का अनुभव किया; क्या तुमने किसी से पूछा कि तुम दलित क्यों हो; क्या तुमने शोषित से पूछा कि तुम्हारा शोषण किसने किया; क्या तुमने किसी किसान से पूछा कि उसका जीवन इतना कठिनाइयों से भरा क्यों है; क्या तुमने किसी नारी से पूछा कि उसके सशक्तीकरण की अवश्यकता क्यों पड़ी; क्या किसी मजदूर से पूछा कि "दिहाड़ी" की क़ीमत क्या होती है, नहीं पूछा ना, फिर तुम किस मुँह से उनके समस्याओं को दूर करने की बात करते हो।
जब तुम सोने के चम्मच से चांदी की कटोरी में बादाम और काजू से बने हलवे का आनंद अपने माता या पिता के हाथों से ले रहे थे ना, तब ये मजदूर, ये दलित, ये पीड़ित, ये शोषित और ये किसान अपने बच्चों को रूखी सुखी रोटी और ठंडा पानी देकर कहता था बेटा आज ये खाले कल तेरे लिए दूध का इंतजाम मैं कर दूँगा।
जब तुम हजारों का सूट पहनकर अंग्रेज बाबु बनकर घूमते थे और तुम्हारी माँ बलैया लेती थी, उस समय गरीबों, दलितों, शोषितों, पीड़ितों और किसानों के बच्चों की माताएं पैसे वालो के घरों से पुराने कपड़े मांग कर लाती और उन्हें साफ सुथरा कर लोटे में गर्म पानी भर स्त्री करती और अपने बच्चों को पहनाती थी।
तुमने तो ऑस्ट्रेलिया, अमेरीका और ब्रिटेन में जाकर पढ़ाई की पर इन गरीबों, दलितों, शोषितों, पीड़ितों और किसानों के बच्चे तो अपने गांव के स्कुल में भी दाखिला ना ले पाते थे।
तुम तो इंपोर्टेड बोतल बंद पानी पीकर बड़े हुए और इन गरीबों, दलितों, शोषितों, पीड़ितों और किसानों के बच्चों को तो शुद्ध कुएं का पानी भी नसीब नहीं होता था।
दंगे, फसाद होने पर तुम अपनी माँ के पल्लू में छिप जाते थे पर इन गरीबों, दलितों, शोषितों, पीड़ितों और किसानों के बच्चे तो उसी माहौल में खुद को बचाने की नाकाम कोशिश करते परिस्थिति के घाट उतर जाते थे।
और तुम्हें क्या बताऊँ, किस किस प्रकार से आईना दिखाऊँ, मैं लाख कोशिश कर लूं पर तुम ना समझ पाओगे, चलो छोड़ दो, गरीबी तुम क्या मिटावोगे।
और सुनो तुम जिससे लड़ रहे हो ना झुंड बनाकर, उसे तुम नहीं जानते, उसने गरीबी को जीया है; उसने शोषण के अपमान का घूंट पीया है; उसने किसानों के दर्द को समझा है; उसने माताओं और बहनो के दर्द को नजदीक से जाना है; वो स्वयं मजदूर था इसलिए "दिहाड़ी" का महत्व जानता है; वो स्वयं पीड़ित था इसलिए पीड़ितों के मर्म को पहचानता है। उससे लड़ के तुम्हें कुछ हासिल नहीं होगा, वो एक विद्यालय है जहाँ पढ़कर तुम्हें सच्चाई का एहसास होगा। तुम अपने मिथ्या अहंकार में डूब किसे ललकार रहे हो, अरे काबिलियत छत पर चढ़ने की नहीं और सुरज को छूने का प्रयास कर रहे हो। मत ठगो इस देश को और अपने आपको मुर्ख ना बनाओ, यदि दम है तो पहले काबिलियत पैदा करो फिर मैदान में आओ।