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राष्ट्रवाद और राष्ट्रवादी क्यों जरूरी है?

23 अक्टूबर 2024

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 देख लो जब अफगानिस्तान पर तालिबान ने आक्रमण कर कब्जा करना शुरू किया तो वंहा कि जनता के साथ साथ सेना ने भी बुजदिलो कि तरह आत्मसमर्पण कर दिया। उनके पास पेट्रोल, डीजल कि कमी नहीं थी, सारी दुनिया से मदद भी आ रही थी और अमेरिका तो था ही पर फिरभी ३.५ लाख सैनिको ने ६० से ६५ हजार तालिबानीयो के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। कमी क्या थी? कंही तो कुछ ऐसा था जो इन लोगो ने अपनी जान की परवाह तो की परअपने देश की परवाह नहीं की उसे जाने दिया तालिबानियों के हाथो में। 

यूरोपियन देश यूक्रेन भी विकसित राष्ट्र कि श्रेणी में आता है। बड़ी बड़ी जगमगाती शानदार बिल्डिंगें है.. चमचमाती हुई सड़कें और लंबी लक्जरी कार गाडियां हैं, सड़कों पर साइकिल तो क्या दोपहिया वाहन भी दिखाई नहीं देते क्योंकि सबके पास महंगी लक्जरी गाडियां है, अच्छे मेडिकल कॉलेज भी है, पेट्रोल है, डीजल है, महंगाई नहीं है, RSS नहीं है, भाजपा नहीं है, हिंदुत्व नहीं है, सेक्युलरिज्म है, लिबरलिज्म् है और समस्त भौतिक आधुनिक सुख सुविधाएं हैं। बड़ी बड़ी युनिवर्सिटी है, बेहतरीन मेडिकल कालेज हैं, तभी तो शिक्षा के लिए भारत के हजारों छात्र यूक्रेन में पढ़ाई कर रहें हैं। अब हमारे यंहा के तथाकथित सेक्युलरवादी, लिबरलवादी, साम्यवादी और कांग्रेसवादी तथा कथित बुध्जिवियो केअनुसार यूक्रेन में चारों तरफ संपन्नता है। 

पर इस सम्पन्नता के चक्कर में युक्रेन ने अगर कुछ नहीं बनाया तो वो है देश की सामरिक शक्ति, मजबूत सेना, अत्याधुनिक हथियार। वंहा कि जनता भौतिक सुख सुविधाओं का भोग करने कि इतनी आदत हो चुकी है, कि उनके लिए ना तो राष्ट्र का कोई मतलब हैऔर ना राष्ट्रवाद से कोई लेना देना। उन्हें इस बात की परवाह हि नहीं रही की युक्रेन उनका अपना देश है वो केवल इसे मिट्टी का एक टुकड़ा भर समझते रहे और अपने राष्ट्र के प्रति वहां की जनता में राष्ट्रवादी भावना ना होने कारण  मात्र दो घंटे में रुस ने यूक्रेन को घुटनों पर लाकर खड़ा कर दिया यूक्रेन के सैनिक उनका सामना नहीं कर पा रहे। यूक्रेन के राष्ट्रपति आम लोगों से युद्ध लड़ने की अपील कर रहें हैं, परन्तु भौतिक्तावादी जनता उनके इस अपील को नजरअंदाज कर केवल अपनी जान बचाने के लिए इधर उधर भाग रही है। 

यद्यपि इसके लिए सारी पाबंदियां भी हटा दी गई हैऔर यूक्रेन आम नागरिकों को युद्ध लड़ने के लिए हथियार देने की बात भी कह रहा है पर मजाल है  यूक्रेन का एक भी नागरिक (जिसने केवल और केवल आधुनिक सुख सुविधाओं से युक्त विलासितापूर्ण जीवन जियाहै), युद्ध लड़ने को तैयार हुआ हो, क्योंकि यूक्रेन के नागरिकों में भारत या इजराइल के नागरिकों की तरह राष्ट्रवाद की भावना ही नहीं है। 

वह तो एशो आराम की जिन्दगी जीने के आदी हो चुके हैं।जिसका परिणाम ये है कि यूक्रेन के स्कूल कालेज, युनिवर्सिटी, बाजार, दुकान,आफिस सब बन्द कर दिये गये हैं। सब कारोबार चौपट हो गया है।कारखाने फैक्ट्री सब बन्द हो गये, लोग रोजगार तो क्या अपनी जान बचाने के लिए सिमित संख्या में मौजूद बंकरों में छुप रहें हैं अंडरग्राउंड मेट्रो स्टेशनों में शरण ले रहें हैं।यानि सबकुछ होते हुए भी यूक्रेन आज जिंदगी की भीख मांग रहा है। 

अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी इत्यादि सभी ने युक्रेन को धोखा देते हुए सैन्य मदद देनेसे इंकार कर दिया क्योंकि रूस से कोई पंगा नहीं लेना चाहता।युक्रेन NATO में शामिल होना चाहता था और उसे भली भांति पता था कि रूस इसे बर्दास्त नहीं करेगा पर अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देशों के धूर्तता और मक्कारी के चक्कर में वो रूस की विश्व स्तरीय सामरिक् शक्ति को छोटा समझने कि भूल कर बैठा। 

ये लेख भारत के उन लोगों को समर्पित है जो राष्ट्रवाद और राष्ट्रवादियों को गाहे बगाहे गालियां देते रहते हैं तथा सिर्फ महंगाई, बेरोजगारी और आलू प्याज टमाटर तथा मुफ्त की योजनाओं को ही देशके विकास का पैमाना मान बैठे हैं। 

यह लेख राहुलगांधी के उस  बयान को  मूर्खतापूर्ण बयान कि श्रेणी में रखकर आइना दिखाता है जिसमें राहुल गांधी ने कहा था कि सेना की मजबूती और  अत्याधुनिक हथियारों के जखीरे इकट्ठा करने से देश का विकास नहीं होता।कांग्रेस के युवराज राहुलगांधी जैसे मंदबुद्धि को रुस यूक्रेन युद्ध से शाय़द थोड़ी अक्ल आ जाये हम ईश्वर से यही प्रार्थना करते हैं और उन मुफ्तखोरों को भी समझ आ जायेगी, क्योंकि किसी भी देशके विकास का रास्ता उसकी सैनिक ताकत, सीमाओं की मजबूत सुरक्षा और अत्याधिक हथियारों से होकर निकलता है। हम राष्ट्रभक्त भारतीय सदैव ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि :- 

विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर् विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम्। परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्।।

अर्थात:-  आपकी असीम कृपा से हमारी यह विजयशालिनी संघठित कार्यशक्ति हमारे धर्म का सरंक्षण कर इस राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाने में समर्थ हो।            

अब आप हि इस तथ्य से भारत के नामुराद छद्दमधर्मनिरपेक्षता वादियों, लिबरलवादीयो, साम्यवादीयो, कांग्रेसवादीयो को अवगत कराये और पूछें की बताओ भारत कि धरती पर बोझ बन कर जीने वालों बताओ ये सच है कि नहीं कि “राष्ट्रवाद हि नागरिकों को अपने राष्ट्र से जोडता है, अपने राष्ट्र की रक्षा के लिए अपना सर्वस्य बलिदान करने के लिए प्रेरित करता है।एक देश के नागरिकों के राष्ट्रवाद कि भावना ही राष्ट्र को मजबूत बनाती है, उसकी सुरक्षा करती है। 

अब जरा यूक्रेन और रूस के भारत से सम्बन्धो के ऊपर भी गौर कर लें | ये बात किसी से छिपी नहीं है की जब जब भारत पर मुसीबत आयी है तब तब या तो रूस  भारत के पक्ष में खड़ा हुआ है या फिर इजराइल | इन दोनों देशो ने पूरी दुनिया से भारत के लिए पंगा लिया और इसलिए भारत ने भी इजराइल  और रूस का भरपूर साथ दिया | अब यूक्रेन की जरा बात करे तो क्या यूक्रेन ने कभी भी भारत का साथ दिया है , उत्तर होगा नहीं, क्योंकि नाटो की सदस्य्ता पाने और अमेरिका के नजदीक जाने में यूक्रेन ने इतनी दिलचस्पी दिखाई की हर बार उसने या तो भारत का या फिर रूस का विरोध किया |  भारत के विरुद्ध किये गए यूक्रेन के कार्य  निम्नवत है :- 

१)यूक्रेन ने कश्मीर मुद्दे पर UNO में भारत के खिलाफ वोट दिया था। २ ) यूक्रेन ने परमाणु परीक्षण मुद्दे पर UNO में भारत के खिलाफ वोट दिया था। ३ ) यूक्रेन ने UNO की सिक्योरिटी कौंसिल में भारत की स्थायी सदस्यता के खिलाफ वोट किया था। ४ ) यूक्रेन पाकिस्तान को हथियार सप्लाई करता है। ५ ) यूक्रेन अल कायदा को समर्थन देता है। 

उपर्युक्त कारणों से युक्रेन से ( भारतीय होने के नाते ) मुझे कोई भी सहानुभूति नही है। जब हमारे उपर प्रतिबन्ध लगा तो UNO मे उसने प्रतिबन्ध के पक्ष मे वोट किया।इसके पास यूरेनियम का भंडार था फिर भी बार बार मांगे जाने पर भी इसने कभी भी देना तो दूर हमारे तत्कालीन PM को टरका दिया।सीधे मुँह बात तक नही किया, जबकि भारत अपनी ऊर्जा के लिए यूरेनियम खोज रहा था।मैं  केवल नागरिको के साथ सहानुभूति ही व्यक्त कर सकता हूँ । कमज़ोर युक्रेन(जो की अपने आप बना) के साथ वही हो रहा है जो  नेहरूजी के समय 1947 से पहले औरउसके बाद हुआ। अर्थात विभाजन और देश के सीमा पर अतिक्रमण। इसलिए जो लोग यूक्रेन के समर्थन में दुबले हो रहे  है उनको समझना चाहिए कि यूक्रेन हमारा एक दुश्मन है जिसने कभी भारत का साथ नही दिया। 

आज भारत में रह रहे यूक्रेन के राजदूत भारत से गुहार लगा रहे हैं की वो रूस के क्रोध से यूक्रेन को बचा ले| भारत ने मानवतावादी दृष्टिकोण को कायम रखते हुए मोदीजी केनेतृत्व में रूस के महानायक पुतिन से बात भी की और मामले के शांतिपूर्ण हल ढूढ़ने की सलाह दी परन्तु समस्या ये है की नाटो के हाथो में खेलता यूक्रेन, रूस के लिए कभी भी खतरा बन सकता है, क्योंकि नाटो का सदस्य बन जाने के पश्चात यूक्रेन की भूमि का उपयोग अमेरिकाऔर ब्रिटेन रूस के विरुद्ध आसानी से कर सकते हैं अत: रूस अपने दरवाजे पर दुश्मन को खड़ा होने का मौका क्यों देगा | अब इस एक प्रश्न का जवाब और समस्या का हल दोनों यूक्रेन के पास है, रूस केपास नहीं| 

यूक्रेन ना तो अपने को ताकतवर बना पाया और ना अपने नागरिको के दिलो में राष्ट्रवाद को जिन्दा कर पाया और परिणाम ये है की यूक्रेन के नागरिक अपने देश को नहीं अपितु अपनी जान बचाने  के लिए इधरउधर  भाग  रहे हैं, अफगानियों की तरह | इसीलिए मित्रों भारत के हम राष्ट्रभक्त सदैव अपने मातृभूमि की वंदना करते हुए प्रार्थना करते  हैं :- 

नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम्। महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते।।

अर्थात :-  हे वात्सल्य मयी मातृ भूमि, तुम्हें सदा प्रणाम करता हूँ। इस मातृभूमि ने अपने बच्चों की तरह प्रेम और स्नेह दिया है। हमें इस सुखपूर्वक हिन्दू भूमि पर में बड़ा हुआ हूँ। यह भूमि मंगलमय और पुण्यभूमि है। इस भूमि के लिए में अपने नश्वर शरीर को मातृभूमि के लिए अर्पण करते हुए इस भूमि को बार बार प्रणाम करता हूँ। मित्रों हम भारतवासी तो प्रभु श्रीराम के वंशज हैं जिन्होंने सोने की लंका को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि :-  नेयं स्वर्णपुरी लङ्का रोचते मम लक्ष्मण। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।। अर्थात :-   हे लक्ष्मण! यह स्वर्णपुरी लंका मुझे (अब) अच्छी नहीं लगती। माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी बडे होते है।  राष्ट्र और राष्ट्रवाद दोनों आवश्यक हैं |                                         


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रचनाएँ
वो नहीं तो कौन ?
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मित्रों ये किताब उस व्यक्ति विशेष को समर्पित है जिसके सद्चरित्र, अनुशाशन, ईमानदारी, शांतिप्रियता, कर्मठता और अपने राष्ट्र और राष्ट्जनो के प्रति अथाह प्रेम और समर्पण का कायल सम्पूर्ण विश्व है | आप में से बहुत लोग मेरे विचार से असहमत हो सकते हैं परन्तु वर्तमान में भारत की स्थिति और विश्व के अन्य देशों की स्थिति का तुलनात्मक विशेलषण करने के पश्चात आपकी असहमति कुछ सिमा तक सहमति में परिवर्तित हो सकती है | हमारे शास्त्रों केअनुसार "विदेशेषु धनं विद्या व्यसनेषु धनं मति:। परलोके धनं धर्म: शीलं सर्वत्र वै धनम्॥" अर्थात विदेश में विद्या धन है, संकट में बुद्धि धन है, परलोक में धर्म धन है और शील(अच्छा चरित्र ) सर्वत्र ही धन है! इसी को चरितार्थ करता वो महापुरुष विश्व का सबसे लोकप्रिय जनप्रतिनिधि बन कर उभर चूका है| वृतं यत्नेन संरक्षेद वित्तमेति च याति च | अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः!" अर्थात चरित्र की यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए। धन तो आता-जाता रहता है। धन के नष्ट होने पर भी चरित्र सुरक्षित रहता है, लेकिन चरित्र नष्ट होने पर सबकुछ नष्ट हो जाता है। और उस महापुरुष के पावन जीवन से इसी तथ्य की शिक्षा मिलती है | वो महा व्यक्तित्व जानता है कि "येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः । ते मृत्युलोके भुवि भारभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति! अत: वोअपने ज्ञान के प्रकाश से विश्व को रोशन करता है और अपना सर्वस्य दान कर देता है | वो एक तपस्वी का जीवन जीता है और कर्म को अपने जीवन का आधार बना के ही जीता है | वो यह भी जानता है कि "मानं हित्वा प्रियो भवति। क्रोधं हित्वा न सोचति।।कामं हित्वा अर्थवान् भवति। लोभं हित्वा सुखी भवेत्।।" इसीलिए हर प्रकार के अहंकार को त्याग कर सबका प्रिय बन चूका है| उसने क्रोध, कामेच्छा तथा लोभ को त्याग कर स्वयं को सुखी बना लिया है और सबको प्रेरित कर रहा है। "यथा चित्तं तथा वाचो यथा वाचस्तथा क्रियाः ! चित्ते वाचि क्रियायांच साधुनामेक्रूपता !!" वो अच्छा है इसलिए उसके ह्रदय में जो है उसे ही वो प्रकट करता है, वो जो कहता है वही करता है , उसके मन, वचन और कर्म में समानता होती है | और जब ऐसे व्यक्ति का विरोध कोई करता है तो मैं उससे केवल एक प्रश्न पूछता हूँ कि "वो नहीं तो कौन ?"
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आखिर उस “चायवाले” के व्यक्तित्व में ऐसा क्या विशेष है?

22 अक्टूबर 2024
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आखिर विपक्षि नेता हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी जी से चीढते क्योँ हैं?

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 मित्रों अब ये तथ्य किसी से छिपा नहीं है , कि आज विश्व के ही नहीं अपितु भारत की विपक्षी राजनितिक पार्टियों के नेता पूर्णतया "मोदी विरोध " की राजनीति में डूब चुके हैं | मोदी विरोध में ये कभी भी कि

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श्री एस जयशंकर जैसा सपूत और श्री नरेंद्र मोदी जी जैसा जौहरी|

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जी हाँ दोस्तों विदेशो में हमारे देश के मुख अभिव्यक्ति बने श्री एस जयशंकर जी कि राजनितिक वाक्पटुता और स्पष्टवादिता के सभी मूरीद हो चुकेहैं, धन्य हैं हमारे पारखी प्रधानमंत्री जिन्होंने इस हिरे को परखा औ

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क्या मोदी विरोधी मोदीफोबिया रूपी एक रहस्यमय मानसिक बीमारी से त्रस्त है?

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 मित्रों उसमहामानव के विरुद्ध दुर्भावना की अभिव्यक्ति उस वर्ष से हि शुरूहो गई थी जब वो प्रथम बार गुजरात के मुख्यमंत्री पद से सुशोभित हुआ। यद्यपि उसने गोधरा के दंगों और फसादों से किसी शुरवीर कि भांति ल

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हत्या का षड्यंत्र २०२० में और उस पर अमल २०२२ में|

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साल २०२० में एक यूट्यूब चैनल पर खालिस्तानी आतंकवादियो ने एक एनिमेटेड वीडियो अपलोड किया था, जिसमें जो कुछ दिखाया गया था वो कुछ इसप्रकार है:- १:- प्रधानमंत्री जी अपने कार्यालयसे बाहर निकलते हैं अपनी SPG

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वो पीढियों से चली आ रही मांगे पूरी कर रहे, हमें उनका साथ नहीं छोड़ना|

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23 अक्टूबर 2024
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हमारा संविधान खतरे में है, हमें संविधान को बचाना है|

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 मित्रों जैसा की आप और हम वर्ष २०१४ से लगातार अपने देश में एक शोर सुन रहे हैं, खासकर विपक्ष का हर नेता और उनकी पार्टी का हर कार्यकर्ता चीख चीख कर जनता को बता रहा है कि “हमारा संविधान खतरे में है, हमें

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मित्रों आज से कुछ वर्ष पूर्व गीतकार और कवी प्रसून जोशी के एक प्रश्न का उत्तर देते हुए   हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदीजी ने कहा था कि “भारत ना आँखे उठा के बात करता है और ना आँखे

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आपदा सदैव एक अवसर के साथ आती है|

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जी हाँ,  मित्रों जब पूरे विश्व में कोरोना काल का भयानक दौर चल रहा था, सर्वत्र त्राहि माम त्राहि माम की असहनीय दशा अपने चरम पर थी, तब हमारे प्रधानमंत्री (श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी) ने देशवासियो का

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भयानक षड्यंत्र, भ्रष्टाचार और नफरत का धंधा , गोधरा |

23 अक्टूबर 2024
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मित्रों ये सत्य है कि प्रतिष्ठित परिवार में जन्म ले लेने से ही कोई व्यक्ति उस प्रतिष्ठा का अधिकारी नहीं हो जाता और यदि उसे प्रतिष्ठित मान भी लिया जाए तो, यह उसके अपने कर्म पर निर्भर करता है कि वो व्यक

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विपक्ष की राजनीति केवल "विरोध"।

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जी हाँ मित्रों आज का विपक्ष केवल एक मुद्दे पर जिवित है और वो है "विरोध"। विरोध यदि सकारात्मक है तो उसका प्रभाव राष्ट्र के जनमानस पर अवश्य पड़ता है और वो भी उसमें सम्मिलित होने का प्रयास करता है उदाहरण

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पसमांदा मुसलमानो के लिए मसीहा बने " नमो" |

23 अक्टूबर 2024
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 जी हाँ मित्रों आज तक आपने मुसलमानो के केवल “शिया” या “सुन्नी” नामक दो बड़े भागो में विभक्त देखा होगा या फिर इन्हें “हनफि”, “अहमदीया”, “देवबन्दी”, “देहलवी”, ” बरेलवी”, “बहावी” और कई प्रकार की जमातो में

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ब्रिटेन को पछाड़कर विश्व की पाँचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना भारत |

23 अक्टूबर 2024
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 जी हाँ मित्रों आज अंग्रेजों और अंग्रेजों का पक्ष लेने वाले और भारत में रहने वाले उनके चाटुकारो के लिए निसंदेह दुःख भरा दिन है, परन्तु प्रत्येक सच्चे भारतीय के लिए आज का दिन गौरवमय आंनद से भरा उत्सव ज

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श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदीजी विरुद्ध ममता, नितीश, केजरी और राहुल|

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 मित्रों मैं आपका ध्यान आकृष्ट कराना चाहता हूँ वर्ष २०२४ में होने वाले लोकसभा चुनाव और प्रधानमंत्री पद के उम्मीद्वारो पर। ज़रा ध्यान दीजिये एक ओर है, आदरणीय श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी यदि हम ईनके

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पहले काबिलियत पैदा करो फिर मैदान में आओ।

23 अक्टूबर 2024
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जो कर्मयोगी है वो कभी रिटायर नहीं होता है। जो कर्म में विश्वास रखता है वो अवकाश के बारे में नहीं सोचता। एक कर्मयोगी सदैव अपने कर्तव्यों के प्रती उत्साहित और जागरूक रहता है। आज हमारे देश को  लालू जी न

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पाकिस्तानी पप्पू बिलावल भुट्टो का हमारे प्रधानमंत्री के बारे में बयान|

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मित्रों पाकिस्तानी पप्पू और  "बिल्लो  रानी "   के नाम से कुख्यात बिलावल भुट्टो ने एक बयान देते हुए कहा कि “प्रधानमंत्री मोदी को अमेरिका ने बैन कर दिया था। “गुजरात का कसाई जिन्दा है” |  खैर पप्पू

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मित्रों आज हमारे देश में दो प्रकार का नेतृत्व है। एक है आदरणीय प्रधानमन्त्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी के रूप में जिनके पास २०२९ तक भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था तथा २०४७ तक ए

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कांग्रेस पार्टी वर्ष २०१४ के पश्चात किस प्रकार अति भयावह रूप में सनातनियों के विरुद्ध षड्यंत्र रच रहीं है, उसका एक और जीता जागता उदाहरण है उसका घोषणा पत्र जिसे वो न्याय पत्र कह रहीं है। सनातनियों को ल

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रों आदरणीय  प्रधानमंत्री  श्री  नरेंद्र  दामोदरदास  मोदी  जी  के  नेतृत्व  में आत्मनिर्भर भारत कि दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम बढ़ाते हुए हमारे देश ने अपना एक ओपरेटिंग सिस्टम विकसित कर लिया है, जो अति

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Central Bank digital currency @E-rupya सफलता का नया मुकाम|

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 मित्रों UPI अर्थात Unified Payment Interface (जिसकेमाध्यम से मोबाइल प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग करके अपने बैंक अकाउंट से किसी दूसरे के बैंक अकाउंट में पैसे ट्रांसफर किया जाता है) कि अभूतपूर्व सफलता के पश्चा

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" नमो" , भारत और विश्व की अर्थव्यवस्था |

24 अक्टूबर 2024
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हे मित्रों, ईश्वर की असीम अनुकम्पा है हम भारतीयों के ऊपर कि हमने सही समय पर सही निर्णय लिया और किसी के बहकावे में ना आकर हम अपने निर्णय पर अडिग रहे और  अपने  देश  की  बागडोर  श्री  नरेंद्र  दामोदरदास

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चूँकि वो तानाशाह है।

27 अक्टूबर 2024
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हाँ तुम लोग सही कह रहे हो वो तानाशाह है इसलिए :-   १:-तुम उसे खुलेआम "मौत का सौदागर, नीच, भ्रष्ट, चोर और ना जाने कैसे कैसे अपशब्दों से पुकारते हो और वो तुम्हें इसके लिए क्षमा कर  देता है और tumhare व

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