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श्री एस जयशंकर जैसा सपूत और श्री नरेंद्र मोदी जी जैसा जौहरी|

22 अक्टूबर 2024

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जी हाँ दोस्तों विदेशो में हमारे देश के मुख अभिव्यक्ति बने श्री एस जयशंकर जी कि राजनितिक वाक्पटुता और स्पष्टवादिता के सभी मूरीद हो चुकेहैं, धन्य हैं हमारे पारखी प्रधानमंत्री जिन्होंने इस हिरे को परखा और विदेशमन्त्रालय कि कमान सौप दी। जैसा कि हमारे शाष्त्रों में कहा गया है। 

गुणानामन्तरं प्रायस्तज्ञो वेत्ति न चापरम्। मालतीमल्लिकाऽऽमोदंघ्राणं वेत्ति न लोचनम्।। 

अर्थात   : गुणों,  विशेषताओं में अंतर प्रायः विशेषज्ञों, ज्ञानीजनों द्वारा ही जाना जाता है, दूसरों के द्वारा कदापि नहीं। जिस प्रकार चमेली की गंध नाक से ही जानी जा सकती है, आंख द्वारा कभी नहीं। ठीकउसी प्रकार शास्त्र ये भी बताते हैं कि 

जाड्यं धियोहरति सिंचतिवाचि सत्यं, मानोन्नतिं दिशतिपापमपाकरोति। चेतः प्रसादयति दिक्षुतनोति कीर्तिं, सत्संगतिः कथयकिं नकरोति पुंसाम्।। 

अर्थात  :-सत्संगति, बुद्धि की जड़ता को हरती है, वाणी में सत्य सींचती है, सम्मान की वृद्धि करती है, पापों को दूर करती है, चित्त को प्रसन्न करती है और दशों दिशाओं में कीर्ति को फैलाती है। कहो, सत्संगति मनुष्य में क्या नहीं करती? 

मित्रों मैं आपक ध्यान अमेरिका में हुवर Institution द्वारा आयोजित वर्चुअल चर्चा में जनरल मैकमास्टर के साथ भाग लेने वाले अपने विदेश मंत्री श्री एस. जयशंकर द्वारा दिए गए वक्तव्यों कि ओर आकृष्ट कराना चाहता हूँ। 

चर्चा केदौरान उनसे प्रश्न किया गया कि  COVID-19 (जिसे हम प्यार से“चाइना-वायरस”भी कहते हैं) से फैली महामारी के दौरान भारत ने उससे कैसे निपटा/ मुकाबला किया। अब इस व्यक्ति का उत्तर पढ़िए, जो निम्न प्रकार है:-  उन्होंने कहा, “हम 800 मिलियन लोगों को मुफ्त भोजन दे रहे हैं। हमने
400 मिलियन के बैंक खातों में पैसा डाला है।अपने कथन को रेखांकित करने के लिए उन्होंने स्पष्ट किया कि, भारत अमेरिका की आबादी से ढाई गुना अधिक खाद्य स्टॉक प्रदान कर रहा था और अमेरिका कि जनसंख्या से अधिक धन प्रदान कर रहा था। इस तथ्य के प्रकटीकरण के पश्चात् उन्होंने प्रश्न किया कि इन कोशिशों के समय और घटती अर्थव्यवस्थाओं के माध्यम से कितने राष्ट्र इस तरह के खर्च को बनाए रखने में सक्षम थे? 

भारत सरकार के एक विफल सरकार के रूप में वैश्विक प्रक्षेपण पर जयशंकर ने कहा, “मैं निश्चित रूप से इसे हमारी वर्तमान सरकार को एक निश्चित तरीके से चित्रित करने वाले राजनीतिक प्रयास के एक हिस्से केरूप में देखूंगा और जाहिर है कि मेरा इससे बहुत गहरा अंतर है।” हाल के दिनों में, भारतकी वैश्विक छवि, “अंतिम संस्कार की चिता की रही है”, जिसमें एक राष्ट्र को महामारी के खिलाफ अपनी लड़ाई में विफल होने का चित्रण किया गया है। दुनिया ने देखी है महामारी की कई लहरें.. उन्होंने विश्व को सच का सामना कराते हुए तथ्यान्कित करते हुए यह बताया कि अमेरिका, यूरोपीय राष्ट्रों, ब्राजील आदि सहित भारत की तुलना में कम आबादी वाले देशों में हताहतों की संख्या, प्रतिशत में कंही अधिक रही है। 

उन्होंने पुनः विश्व कि आँखों में पड़ी धूल को साफ करते हुए स्पष्ट किया और बताया कि “अमेरिका में वास्तविकता यह थी कि, कोविड हताहतों को सामूहिक कब्रों में दफनाया गया था, यांत्रिक साधनों का इस्तेमाल किया गया था और ये सब् परिजनों को उनकेअंतिम सम्मान का भुगतान करने या उपस्थित होने की अनुमति दिए बिना किया गया था। कोविड के खिलाफ जंग हारने वालों में ह्यूमन टच नदारद था। सामूहिक दफन की प्रतीक्षा में न्यूयॉर्क में लंबे समय से रेफ्रिजेरेटेड वैन में पड़े हुए कोविड के मृतकों के होने की भी खबरें थीं पर अमेरिका और पश्चिमी मीडिया ने तस्वीरों के द्वारा लोगों को खुले मैदान में फूल बिखेरते दिखाया, मृतकों की याद में। 

इटली में, स्थिति इतनी निराशाजनक थी कि, सेना को बुलाया गया, हताहतों को लेने के लिए और शहरों से दूर ले जाकर जल्दी से उनका अंतिम संस्कार किया गया। अधिकांश पश्चिमी राष्ट्र,जो वर्तमान में भारतके लिए महत्वपूर्ण हैं,ने इसी तरह के उपायों को अपनाया। दूसरी ओर, भारतीयों ने तमाम कमियों और एक फैलने वाले वायरस के बावजूद, गरिमा के साथऔर धार्मिक लोकाचार के अनुसार अपने मृतकों का अंतिम संस्कारकिया। 

उन्होंने मिडिया के दुश्चरित्र को उजागर करते हुए आईना दिखाया और बताया कि“ यह धार्मिक श्रद्धा का प्रदर्शन था, जिसमें मीडिया ने एक असफल राष्ट्र का चित्रण किया। कोविड के खिलाफ जीत केवल हताहतों (मृतया संक्रमित..) की संख्या से निर्धारित नहीं होती है, बल्कि अधिकांश आबादी की रक्षा करके, साथ ही लागू लॉकडाउन की अवधि के दौरान उनकी आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति से निर्धारित होती है।” 

हताहतों की संख्या एक राष्ट्र के भीतर जनसंख्या और घनत्व पर निर्भर है; हालांकि वे मायने रखते,पर वे अंतिम निर्धारक नहीं हो सकते। सफलता तार्किक रूप से कोविड चक्र को उलटने पर निर्भर होनी चाहिए, जिसमें न्यूनतम असुविधा और न्यूनतम जनता की पीड़ा हो।तथ्य यह है कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला राष्ट्र होने के कारण,उच्च हताहतों की संख्या को नजरअंदाज कर दिया गया था। 

इसमें कोई संदेह नहीं है कि वर्तमान सरकार ने चुनाव, धार्मिक आयोजनों और विरोधों के साथ आगे बढ़ते हुए, प्रसार में जोड़ा लेकिन, भारत को ग्लोबली सिंगल आउट क्यों किया गया..? आंतरिक राजनीतिक एक-अप-मैनशिप और सरकार विरोधी समूहों सहित एक अवसर हथियाने सहित कई कारण हो सकते हैं। 

भारत कि राष्ट्रीय शक्तिहाल केवर्षों मेंबढ़ी है, यह वैश्विक टिप्पणीकारों के लिए प्रतिरक्षा है, जिन्होंने महसूस किया कि वे तीसरी दुनिया के देशों को अपनी सनक और पसंद के अनुसार व्यवहार करने के लिए मजबूर कर सकते हैं।तथाकथित ग्लोबल वॉचडॉग या सीनेटर या पश्चिमी दुनिया के संसद सदस्यों कीआलोचना के बावजूद, भारत के फैसले बदलने से इनकार, (चाहे कश्मीर पर हो या नागरिकता संशोधनअधिनियम,) करने से निजी तौर परवित्त पोषितप्रभावशाली संगठनों को चोट लगी, जिनमें से कई मीडिया हाउस को नियंत्रित करते हैं। राष्ट्रीय छवि धूमिल करने में ये सबसे आगे थे। 

पश्चिमी दुनिया की ईर्ष्या का एकअन्य प्रशंसनीय कारण एक एशियाई राष्ट्र की परिधि में, एक वैश्विक आर्थिक दिग्गज बनना, उनकी अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं को पछाड़ना और पहली लहर का सफलतापूर्वक मुकाबला करना भी है।भारत, जिसे हाल ही में तीसरी दुनिया का देश माना जाता था,
एक उभरती हुई आर्थिकशक्ति है,जहाँ पश्चिमी नेता व्यापार सौदों पर हस्ताक्षर करने के लिए दौड़ पड़ते हैं। बढ़ते भारतीय बाजार का एक हिस्सा हथियाना, किसी भी पश्चिमी देश के लिएआर्थिक विकास के लिए एक पूर्व-आवश्यकता है। भाग्य में इस उलटफेरने पश्चिम में कई प्रभावशाली संगठनों को चोट पहुंचाई है।पश्चिमी राष्ट्रों ने स्वार्थी रूप से तीसरी दुनिया के देशों की उपेक्षा की और सभी टीकों और चिकित्सा उपकरणों को बचा लिया, जो वे अपनी आबादी के लिए जुटा सकते थे,आवश्यकता से कहीं अधिक भंडारण कर सकते थे। 

यह भारत था, जिसने कमजोर राष्ट्रों तक पहुंच कर समर्थन किया।भारतीय वैक्सीन डिप्लोमेसी ने भारत के लिए वैश्विक प्रशंसा अर्जित की, जबकि पश्चिम को स्वार्थी करार दिया गया।मित्रों इतनी सुंदरता से स्पष्ट रूप से औरअत्यंत हि सामान्य शब्दों की  सहायता से भारत के अतुलनीय पराक्रम को व्यक्त करने कि कला तो बस हमारे विदेशमंत्री श्री एस. जयशंकरजी में हि हो सकती है।ऐसे हि व्यक्तियों के बारे में हमारे शास्त्र कहते हैं:- 

विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा, सदसि वाक्पटुता युधि विक्रमः। यशसि चाभिरुचिर्व्यसनं श्रुतौ,प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम्।। 

अर्थात  :-विपत्तिमें धीरज, अपनी वृद्धि में क्षमा, सभा में वाणी की चतुराई, युद्ध में पराक्रम,यश में इच्छा, शास्त्र में व्यसन-ये छः गुण महात्मा लोगों में स्वभाव से ही सिद्ध होते हैं।ऐसे गुण स्वभाव से ही, जिनमें हो,उन को महात्मा जानो।इससे जो महात्मा बनना चाहे वह ऐसे गुणों के सेवन के लिए अत्यंत उद्योग करे। 

भारत कि वैश्विक उदारता का   कायल तो पूरा विश्व है।आप सभी को याद होगा कि किस प्रकार से अमेरिका के राष्ट्रपति ने भारत में बन रही वैक्सीन के लिए Raw material देने पर रोक लगा दी थी। आपको यह भी याद होगा कि जर्मनी और इंग्लैंड जैसे देश किस प्रकार भारत को घेरने कि तैयारी कर रहे थे, परन्तु ये विदेशमंत्री श्री एस. जयशंकरऔर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदीजी की जुगलबंदी थी कि लाख कठिनाइयों के पश्चात भी भारत ने ना केवल अपने देश के नागरिकों को वेक्सीन उपलब्ध करवाई अपितु वैश्विक स्तर पर कई छोटे व गरीब देशों को भी वैक्सीन के लाखों डोज निशुल्क प्रदान किये। 

जिस प्रकार हमारे प्रधानमंत्री रात दिन भारत कि प्रजा कि भलाई के लिए पूर्णरूपेण ईमानदारी और सच्चाई से कठोर परिश्रम करते रहते हैं, ठीक उसी प्रकार जॉंच परखकर नियुक्त किये गए मंत्रिगण भीअपना दायित्व निभाते हैंऔर श्री एस जयशंकरजी उन्हीं में से एक हैं।ऐसे महापुरुषों के लिए मैं तो केवल इतना हि कहना चाहूँगा शास्त्रों कि सहायता से:- 

क्वचिदभूमौ शय्या क्वचिदपि च पर्यङ्कशयनम। क्वचिच्छाकाहारी क्वचिदपि च शाल्योदनरुचि:।। क्वचित्कन्थाधारी क्वचिदपि च दिव्याम्बरधरो। मनस्वी कार्यार्थी न गणयति दु:खं न च सुखम्।। 

अर्थात  :-कभी जमीन परसो रहते हैं और कभी उत्तम पलंग परसोते हैं, कभी साग-पात खाकर रहते हैं,कभी दाल-भात कहते हैं, कभी फटी पुराणी गुदड़ी पहनतेहैं और कभी दिव्यवस्त्र धारण करते हैं– कार्यसिद्धि पर कमर कस लेने वाले पुरुष सुख और दुःख दोनों को ही कुछ नहीं समझते।  

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रचनाएँ
वो नहीं तो कौन ?
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मित्रों ये किताब उस व्यक्ति विशेष को समर्पित है जिसके सद्चरित्र, अनुशाशन, ईमानदारी, शांतिप्रियता, कर्मठता और अपने राष्ट्र और राष्ट्जनो के प्रति अथाह प्रेम और समर्पण का कायल सम्पूर्ण विश्व है | आप में से बहुत लोग मेरे विचार से असहमत हो सकते हैं परन्तु वर्तमान में भारत की स्थिति और विश्व के अन्य देशों की स्थिति का तुलनात्मक विशेलषण करने के पश्चात आपकी असहमति कुछ सिमा तक सहमति में परिवर्तित हो सकती है | हमारे शास्त्रों केअनुसार "विदेशेषु धनं विद्या व्यसनेषु धनं मति:। परलोके धनं धर्म: शीलं सर्वत्र वै धनम्॥" अर्थात विदेश में विद्या धन है, संकट में बुद्धि धन है, परलोक में धर्म धन है और शील(अच्छा चरित्र ) सर्वत्र ही धन है! इसी को चरितार्थ करता वो महापुरुष विश्व का सबसे लोकप्रिय जनप्रतिनिधि बन कर उभर चूका है| वृतं यत्नेन संरक्षेद वित्तमेति च याति च | अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः!" अर्थात चरित्र की यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए। धन तो आता-जाता रहता है। धन के नष्ट होने पर भी चरित्र सुरक्षित रहता है, लेकिन चरित्र नष्ट होने पर सबकुछ नष्ट हो जाता है। और उस महापुरुष के पावन जीवन से इसी तथ्य की शिक्षा मिलती है | वो महा व्यक्तित्व जानता है कि "येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः । ते मृत्युलोके भुवि भारभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति! अत: वोअपने ज्ञान के प्रकाश से विश्व को रोशन करता है और अपना सर्वस्य दान कर देता है | वो एक तपस्वी का जीवन जीता है और कर्म को अपने जीवन का आधार बना के ही जीता है | वो यह भी जानता है कि "मानं हित्वा प्रियो भवति। क्रोधं हित्वा न सोचति।।कामं हित्वा अर्थवान् भवति। लोभं हित्वा सुखी भवेत्।।" इसीलिए हर प्रकार के अहंकार को त्याग कर सबका प्रिय बन चूका है| उसने क्रोध, कामेच्छा तथा लोभ को त्याग कर स्वयं को सुखी बना लिया है और सबको प्रेरित कर रहा है। "यथा चित्तं तथा वाचो यथा वाचस्तथा क्रियाः ! चित्ते वाचि क्रियायांच साधुनामेक्रूपता !!" वो अच्छा है इसलिए उसके ह्रदय में जो है उसे ही वो प्रकट करता है, वो जो कहता है वही करता है , उसके मन, वचन और कर्म में समानता होती है | और जब ऐसे व्यक्ति का विरोध कोई करता है तो मैं उससे केवल एक प्रश्न पूछता हूँ कि "वो नहीं तो कौन ?"
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आखिर उस “चायवाले” के व्यक्तित्व में ऐसा क्या विशेष है?

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आखिर विपक्षि नेता हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी जी से चीढते क्योँ हैं?

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क्या मोदी विरोधी मोदीफोबिया रूपी एक रहस्यमय मानसिक बीमारी से त्रस्त है?

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 मित्रों उसमहामानव के विरुद्ध दुर्भावना की अभिव्यक्ति उस वर्ष से हि शुरूहो गई थी जब वो प्रथम बार गुजरात के मुख्यमंत्री पद से सुशोभित हुआ। यद्यपि उसने गोधरा के दंगों और फसादों से किसी शुरवीर कि भांति ल

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हत्या का षड्यंत्र २०२० में और उस पर अमल २०२२ में|

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वो पीढियों से चली आ रही मांगे पूरी कर रहे, हमें उनका साथ नहीं छोड़ना|

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23 अक्टूबर 2024
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मित्रों आज से कुछ वर्ष पूर्व गीतकार और कवी प्रसून जोशी के एक प्रश्न का उत्तर देते हुए   हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदीजी ने कहा था कि “भारत ना आँखे उठा के बात करता है और ना आँखे

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23 अक्टूबर 2024
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जी हाँ,  मित्रों जब पूरे विश्व में कोरोना काल का भयानक दौर चल रहा था, सर्वत्र त्राहि माम त्राहि माम की असहनीय दशा अपने चरम पर थी, तब हमारे प्रधानमंत्री (श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी) ने देशवासियो का

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मित्रों ये सत्य है कि प्रतिष्ठित परिवार में जन्म ले लेने से ही कोई व्यक्ति उस प्रतिष्ठा का अधिकारी नहीं हो जाता और यदि उसे प्रतिष्ठित मान भी लिया जाए तो, यह उसके अपने कर्म पर निर्भर करता है कि वो व्यक

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विपक्ष की राजनीति केवल "विरोध"।

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जी हाँ मित्रों आज का विपक्ष केवल एक मुद्दे पर जिवित है और वो है "विरोध"। विरोध यदि सकारात्मक है तो उसका प्रभाव राष्ट्र के जनमानस पर अवश्य पड़ता है और वो भी उसमें सम्मिलित होने का प्रयास करता है उदाहरण

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पसमांदा मुसलमानो के लिए मसीहा बने " नमो" |

23 अक्टूबर 2024
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 जी हाँ मित्रों आज तक आपने मुसलमानो के केवल “शिया” या “सुन्नी” नामक दो बड़े भागो में विभक्त देखा होगा या फिर इन्हें “हनफि”, “अहमदीया”, “देवबन्दी”, “देहलवी”, ” बरेलवी”, “बहावी” और कई प्रकार की जमातो में

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 जी हाँ मित्रों आज अंग्रेजों और अंग्रेजों का पक्ष लेने वाले और भारत में रहने वाले उनके चाटुकारो के लिए निसंदेह दुःख भरा दिन है, परन्तु प्रत्येक सच्चे भारतीय के लिए आज का दिन गौरवमय आंनद से भरा उत्सव ज

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श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदीजी विरुद्ध ममता, नितीश, केजरी और राहुल|

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 मित्रों मैं आपका ध्यान आकृष्ट कराना चाहता हूँ वर्ष २०२४ में होने वाले लोकसभा चुनाव और प्रधानमंत्री पद के उम्मीद्वारो पर। ज़रा ध्यान दीजिये एक ओर है, आदरणीय श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी यदि हम ईनके

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पहले काबिलियत पैदा करो फिर मैदान में आओ।

23 अक्टूबर 2024
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जो कर्मयोगी है वो कभी रिटायर नहीं होता है। जो कर्म में विश्वास रखता है वो अवकाश के बारे में नहीं सोचता। एक कर्मयोगी सदैव अपने कर्तव्यों के प्रती उत्साहित और जागरूक रहता है। आज हमारे देश को  लालू जी न

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पाकिस्तानी पप्पू बिलावल भुट्टो का हमारे प्रधानमंत्री के बारे में बयान|

23 अक्टूबर 2024
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मित्रों पाकिस्तानी पप्पू और  "बिल्लो  रानी "   के नाम से कुख्यात बिलावल भुट्टो ने एक बयान देते हुए कहा कि “प्रधानमंत्री मोदी को अमेरिका ने बैन कर दिया था। “गुजरात का कसाई जिन्दा है” |  खैर पप्पू

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मित्रों आज हमारे देश में दो प्रकार का नेतृत्व है। एक है आदरणीय प्रधानमन्त्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी के रूप में जिनके पास २०२९ तक भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था तथा २०४७ तक ए

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हे प्रभु इतनी भयानक योजना।

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कांग्रेस पार्टी वर्ष २०१४ के पश्चात किस प्रकार अति भयावह रूप में सनातनियों के विरुद्ध षड्यंत्र रच रहीं है, उसका एक और जीता जागता उदाहरण है उसका घोषणा पत्र जिसे वो न्याय पत्र कह रहीं है। सनातनियों को ल

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BharOS भारत का अपना ओपरेटिंग सिस्टम|

24 अक्टूबर 2024
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रों आदरणीय  प्रधानमंत्री  श्री  नरेंद्र  दामोदरदास  मोदी  जी  के  नेतृत्व  में आत्मनिर्भर भारत कि दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम बढ़ाते हुए हमारे देश ने अपना एक ओपरेटिंग सिस्टम विकसित कर लिया है, जो अति

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Central Bank digital currency @E-rupya सफलता का नया मुकाम|

24 अक्टूबर 2024
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 मित्रों UPI अर्थात Unified Payment Interface (जिसकेमाध्यम से मोबाइल प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग करके अपने बैंक अकाउंट से किसी दूसरे के बैंक अकाउंट में पैसे ट्रांसफर किया जाता है) कि अभूतपूर्व सफलता के पश्चा

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" नमो" , भारत और विश्व की अर्थव्यवस्था |

24 अक्टूबर 2024
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हे मित्रों, ईश्वर की असीम अनुकम्पा है हम भारतीयों के ऊपर कि हमने सही समय पर सही निर्णय लिया और किसी के बहकावे में ना आकर हम अपने निर्णय पर अडिग रहे और  अपने  देश  की  बागडोर  श्री  नरेंद्र  दामोदरदास

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चूँकि वो तानाशाह है।

27 अक्टूबर 2024
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हाँ तुम लोग सही कह रहे हो वो तानाशाह है इसलिए :-   १:-तुम उसे खुलेआम "मौत का सौदागर, नीच, भ्रष्ट, चोर और ना जाने कैसे कैसे अपशब्दों से पुकारते हो और वो तुम्हें इसके लिए क्षमा कर  देता है और tumhare व

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