shabd-logo

अध्याय 1

11 फरवरी 2022

45 बार देखा गया 45

शेख़ मुसलहुद्दीन (उपनाम सादी) का जन्म सन् 1172 ई. में शीराज़ नगर के पास एक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम अब्दुल्लाह और दादा का नाम शरफुद्दीन था। 'शेख़' इस घराने की सम्मान सूचक पदवी थी। क्योंकि उनकी वृत्ति धार्मिक शिक्षा-दीक्षा देने की थी। लेकिन इनका ख़ानदान सैयद था। जिस प्रकार अन्य महान् पुरुषों के जन्म के सम्बन्ध में अनेक अलौकिक घटनाएं प्रसिध्द हैं उसी प्रकार सादी के जन्म के विषय में भी लोगों ने कल्पनायें की हैं। लेकिन उनके उल्लेख की जरूरत नहीं। सादी का जीवन हिंदी तथा संस्कृत के अनेक कवियों के जीवन की भांति ही अंधकारमय है। उनकी जीवनी के सम्बन्ध में हमें अनुमान का सहारा लेना पड़ता है यद्यपि उनका जीवन वृत्तमन्त फारसी ग्रन्थों में बहुत विस्तार के साथ है तथापि उसमें अनुमान की मात्रा इतनी अधिक है कि गोली से भी, जिसने सादी का चरित्र अंग्रेजी में लिखा है, दूध और पानी का निर्णय न कर सका। कवियों का जीवन-चरित्र हम प्राय: इसलिए पढ़ते हैं कि हम कवि के मनोभावों से परिचित हो जायँ और उसकी रचनाओं को भलीभांति समझने में सहायता मिले। नहीं तो हमको उन जीवन-चरित्रों से और कोई विशेष शिक्षा नहीं मिलती। किन्तु सादी का चरित्र आदि से अन्त तक शिक्षापूर्ण है। उससे हमको धौर्य, साहस और कठिनाइयों में सत्पथ पर टिके रहने की शिक्षा मिलती है।
शीराज़ इस समय फारस का प्रसिध्द स्थान है और उस जमाने में तो वह सारे एशिया की विद्या, गुण और कौशल की खान था। मिश्र, एराक, हब्श, चीन, खुरासान आदि देश देशान्तरों के गुणी लोग वहाँ आश्रय पाते थे। ज्ञान, विज्ञान, दर्शन, धर्मशास्त्र आदि के बड़े-बड़े विद्यालय खुले हुए थे। एक समुन्नत राज्य में साधारण समाज की जैसी अच्छी दशा होनी चाहिए वैसी ही वहाँ थी। इसी से सादी को बाल्यावस्था ही से विद्वानों के सत्संग का सुअवसर प्राप्त हुआ। सादी के पिता अब्दुल्लाह का 'साद बिन जंग़ी' (उस समय ईरान का बादशाह) के दरबार में बड़ा मान था। नगर में भी यह परिवार अपनी विद्या और धार्मिक जीवन के कारण बड़ी सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। सादी बचपन से ही अपने पिता के साथ महात्माओं और गुणियों से मिलने जाया करते थे। इसका प्रभाव उनके अनुकरणशील स्वभाव पर अवश्य ही पड़ा होगा। जब सादी पहली बार साद बिन जंगी के दरबार में गये तो बादशाह ने उन्हें विशेष स्नेहपूर्ण दृष्टि से देखकर पूछा, “मियां लड़के, तुम्हारी उम्र क्या है?” सादी ने अत्यंत नम्रता से उत्त र दिया, “हुजूर के गौरवशील राज्यकाल से पूरे 12 साल छोटा हूं।” अल्पावस्था में इस चतुराई और बुध्दि की प्रखरता पर बादशाह मुग्ध हो गया। अब्दुल्लाह से कहा, बालक बड़ा होनहार है, इसके पालन-पोषण तथा शिक्षा का उत्तयम प्रबन्ध करना। सादी बड़े हाजिर जवाब थे, मौके की बात उन्हें ख़ूब सूझती थी। यह उसका पहला उदाहरण है।
शेखसादी के पिता धार्मिक वृत्ति के मनुष्य थे। अत: उन्होने अपने पुत्र की शिक्षा में भी धर्म का समावेश अवश्य किया होगा। इस धार्मिक शिक्षा का प्रभाव सादी पर जीवन पर्यन्त रहा। उनके मन का झुकाव भी इसी ओर था। वह बचपन ही से रोजा, नमाज आदि के पाबन्द रहे। सादी के लिखने से प्रकट होता है कि उनके पिता का देहान्त उनके बाल्यकाल ही में हो गया था। संभव था कि ऐसी दुरवस्था में अनेक युवकों की भांति सादी भी दुर्व्यसनों में पड़ जाते लेकिन उनके पिता की धार्मिक शिक्षा ने उनकी रक्षा की।
यद्यपि शीराज़ में उस समय विद्वानों की कमी न थी और बड़े-बड़े विद्यालय स्थापित थे, किन्तु वहाँ के बादशाह साद बिन जंग़ी को लड़ाई करने की ऐसी धुन थी कि वह बहुधा अपनी सेना लेकर एराक पर आक्रमण करने चला जाया करता था और राजकाज की तरफ से बेपरवा हो जाता था। उसके पीछे देश में घोर उपद्रव मचते रहते थे और बलवान शत्रु देश में मारकाट मचा देते थे। ऐसी कई दुर्घटनायें देखकर सादी का जी शीराज़ से उचट गया। ऐसी उपद्रव की दशा में पढ़ाई क्या होती? इसलिए सादी ने युवावस्था में ही शीराज़ से बग़दाद को प्रस्थान किया। 

11
रचनाएँ
शेख़ सादी
0.0
प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। शेख़ सादी मुंशी प्रेमचंद ने इस नाटक में शेख़ मुसलहुद्दीन (उपनाम सादी) का जन्म सन् 1172 ई. में शीराज़ नगर के पास एक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम अब्दुल्लाह और दादा का नाम शरफुद्दीन था। 'शेख़' इस घराने की सम्मान सूचक पदवी थी। क्योंकि वृत्ति धार्मिक शिक्षा-दीक्षा देने की थी। लेकिन इनका ख़ानदान सैयद था। जिस प्रकार अन्य महान् पुरुषों के जन्म के सम्बन्ध में अनेक अलौकिक घटनाएं प्रसिध्द हैं उसी प्रकार सादी के जन्म के विषय में भी लोगों ने कल्पनायें की हैं। लेकिन उनके उल्लेख की जरूरत नहीं। सादी का जीवन हिंदी तथा संस्कृत के अनेक कवियों के जीवन की भांति ही अंधकारमय है।
1

अध्याय 1

11 फरवरी 2022
6
2
0

शेख़ मुसलहुद्दीन (उपनाम सादी) का जन्म सन् 1172 ई. में शीराज़ नगर के पास एक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम अब्दुल्लाह और दादा का नाम शरफुद्दीन था। 'शेख़' इस घराने की सम्मान सूचक पदवी थी। क्योंकि उनक

2

अध्याय 2

11 फरवरी 2022
2
1
0

बग़दाद उस समय तुर्क साम्राज्य की राजधानी था। मुसलमानों ने बसरा से यूनान तक विजय प्राप्त कर ली थी और सम्पूर्ण एशिया ही में नहीं, यूरोप में भी उनका-सा वैभवशाली और कोई राज्य नहीं था। राज्य विक्रमादित्य क

3

अध्याय 3

11 फरवरी 2022
0
0
0

भ्रमण मुसलमान यात्रियों में इब्‍नबतुता (प्रख्‍यात यात्री एवं महत्‍वपूर्णग्रं‍थ ‘सफ़रनामा’ का लेखक) सबसे श्रेष्‍ठ जाता है। सादी के विषय में विद्वानों ने स्थिर किया है कि उनकी यात्रायें 'बतूता' से कुछ

4

अध्याय 4

11 फरवरी 2022
0
0
0

शीराज़ में पुनरागमन तीस-चालीस साल तक भ्रमण करने के बाद सादी को जन्‍म–भूमि का स्‍मरण हुआ । जिस समय वह वहाँ से चले थे, वहाँ अशांति फैली हुई थी। कुछ तो इस कुदशा और कुछ विद्या लाभ की इच्छा से प्रेरित होक

5

अध्याय 5

11 फरवरी 2022
0
0
0

चरित्र सादी उन कवियों में हैं ... जिनके चरित्र का प्रतिबिंब उनके काव्‍य रूपी दर्पण में स्‍पष्‍ट दिखाई देता हैं। हृदय से निकलते थे और यही कारण है कि उनमें इतनी प्रबल शक्ति भरी हुई है। सैकड़ों अन्य उप

6

अध्याय 7

11 फरवरी 2022
1
0
0

गुलिस्तां हम गुलिस्‍तां की कुछ कथाऍं देते हैं जिनसे पाठकों को भी सादी के लेखन कौशल का परिचय दे सकें।गुलिस्तां में आठ प्रकरण हैं। प्रत्येक प्रकरण में नीति और सदाचार के भिन्न-भिन्न सिध्दांतों का वर्णन

7

अध्याय 8

11 फरवरी 2022
0
0
0

फ़ारसी साहित्‍य की पाठ्य पुस्‍तकों में गुलिस्‍तां के बाद बोस्‍तां का ही प्रचार है । यह कहने में कुछन होगी कि काव्यग्रंथों में बोस्तां का वही आदर है जो गद्य में गुलिस्तां का है। निज़मी का सिकन्दरनामा,

8

अध्याय 9

11 फरवरी 2022
0
0
0

सादी की लोकोक्तियॉं किसी लेखक की सर्वप्रियता इस बात से भी देखी जाती है कि उसके वाक्‍य और पद कहावतों के रूप में कहाँ तक प्रचलित हैं। मानवचरित्र, पारस्परिक व्यवहार आदि के संबंध में जब लेखक की लेखनी से

9

अध्याय 10

11 फरवरी 2022
0
0
0

गज़लें ग़जल फारसी कविता का प्रधान अंग है । कोई कवि, जब तक व‍ह गज़ल कहने में निपुर्ण न हो। गज़लें समाज में आदर का स्थान नहीं पाता। यों तो गज़ल शृंगार का विषय है, किन्तु कवियों ने इसके द्वारा सभी रसों

10

अध्याय 11

11 फरवरी 2022
0
0
0

क़सीदे कसीदा फ़ारसी कविता के उस अंग को कहते हैं जिसमें कवि किसी महान पुरुष या किसी विशेष वस्तु की प्रशंसा करता है। जिस प्रकार भूषण, मतिराम, केशव आदि कविजन अपने समकालीन महीपतियों या पदाधिकारियों की प्

11

अध्याय 12

11 फरवरी 2022
0
0
0

उनकी कुछ कविताएं ऐसी भी मिलती हैं जिनमें कुछ सुरुचि के पद से इतनी गिर गई हैं कि उन्हें अश्‍लील कहा जा सकता है। हमने इस पुस्तक के पहले संस्करण में पृष्ठ सतासी पर यह लिखा था कि यह कविताएं सादी की कदापि

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए