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अध्याय 12

11 फरवरी 2022

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उनकी कुछ कविताएं ऐसी भी मिलती हैं जिनमें कुछ सुरुचि के पद से इतनी गिर गई हैं कि उन्हें अश्‍लील कहा जा सकता है। हमने इस पुस्तक के पहले संस्करण में पृष्ठ सतासी पर यह लिखा था कि यह कविताएं सादी की कदापि नहीं हो सकती, लेकिन इस विषय में विशेष छानबीन करने पर यह ज्ञात हुआ कि वास्तव में सादी ही उनके कर्त्‍ता हैं। और यह सादी के प्रतिभा रूपी चन्द्र पर ऐसा धब्‍बा है जो किसी तरह नहीं मिट सकता। जब विचार करते हैं कि शेखसादी कितने नीतिवान, कितने सदाचारी, कितने सद्गुणी महान पुरुष थे तो इन अश्‍लील कविताओं को देखकर बड़ा खेद होता है। इस भाग में सादी ने अपनी नीतेज्ञता और गांभीरता को त्याग कर खूब गंदी बातें लिखी हैं। इसमें तो कोई संदेह नहीं कि सादी विनोदशील पुरुष थे और विनोदशीलता स्वभाव का दूषण नहीं, वरन गुण है, विशेष करके नीत्युपदेश में वहाँ उसकी बड़ी आवश्यकता होती है, जहाँ उपदेश का दुष्चार और दुष्टता की आलोचना करनी पड़ती है। यह गुण बहुधा उपदेश को रुचिकर बना दिया करता है, पर वही बात जब औचित्य से आगे बढ़ जाती है तो अश्‍लील हो जाती है। देखना यह है कि शेखसादी ने यह रचना विनोदार्थ की या किसी और कारण से। यह बात उनकी पंक्तियों से स्पष्ट विदित हो जाती है जो उन्होंने इस भाग के आदि में क्षमा प्रार्थना के भाव से लिखी हैं
"एक बादशाह ने मुझे बाध्‍य किया कि मैं कुछ अश्‍लील बातें लिखूं। जब मैंने इंकार किया तो उसने मुझे मार डालने की धमकी दी। इसलिए विवश होकर मुझे यह कविताएं लिखनी पड़ीं और मैं इसके लिए परमात्मा से क्षमा मांगता हूं।"
इससे यह पूर्णत: सिध्द हो जाता है कि सादी ने ये कविताएं विवश होकर रचीं और वह उनके लिए लज्जित हैं। वह स्वयं इसे अनुचित्‍त समझते हैं। यद्यपि इससे सादी की निर्ममता पर कुठाराघात होता है पर उस समय की रुचि तथा सभ्यता को देखते हुए यही बहुत है कि सादी ने इस रचना पर खेद तो प्रकट किया। उस समय कविगण बादशाहों के आमोद-प्रमोद के निमित्‍त प्राय: गंदी कविताएं लिखा करते थे। यह प्रथा ऐसी प्रचलित हो गई थी कि बड़े-बड़े विद्वानों और पंडितों को भी उनके लिखने में लेशमात्र संकोच न होता था। विद्वज्जन इन रचनाओं का आनंद उठाते थे। रसिकगण उनकी सराहना करते थे। ऐसी दशा में सादी ने भी यदि इन कविताओं की रचना को बहुत आपत्तिजनक न समझा हो तो आश्‍चर्य की बात नहीं। उन्होंने लज्जा तथा खेद प्रकट किया, इसी पर संतोष करना चाहिए। इन कविताओं में वह प्रफुल्लता और आनंद प्रदायिनी विनोदशीलता नहीं है जो उनका एक प्रधान गुण है। इससे विदित होता है कि शेख ने अवश्य उनकी रचना दुराग्रह से की, अपनी रुचि से नहीं। 

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रचनाएँ
शेख़ सादी
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प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। शेख़ सादी मुंशी प्रेमचंद ने इस नाटक में शेख़ मुसलहुद्दीन (उपनाम सादी) का जन्म सन् 1172 ई. में शीराज़ नगर के पास एक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम अब्दुल्लाह और दादा का नाम शरफुद्दीन था। 'शेख़' इस घराने की सम्मान सूचक पदवी थी। क्योंकि वृत्ति धार्मिक शिक्षा-दीक्षा देने की थी। लेकिन इनका ख़ानदान सैयद था। जिस प्रकार अन्य महान् पुरुषों के जन्म के सम्बन्ध में अनेक अलौकिक घटनाएं प्रसिध्द हैं उसी प्रकार सादी के जन्म के विषय में भी लोगों ने कल्पनायें की हैं। लेकिन उनके उल्लेख की जरूरत नहीं। सादी का जीवन हिंदी तथा संस्कृत के अनेक कवियों के जीवन की भांति ही अंधकारमय है।
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अध्याय 1

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शेख़ मुसलहुद्दीन (उपनाम सादी) का जन्म सन् 1172 ई. में शीराज़ नगर के पास एक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम अब्दुल्लाह और दादा का नाम शरफुद्दीन था। 'शेख़' इस घराने की सम्मान सूचक पदवी थी। क्योंकि उनक

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अध्याय 2

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बग़दाद उस समय तुर्क साम्राज्य की राजधानी था। मुसलमानों ने बसरा से यूनान तक विजय प्राप्त कर ली थी और सम्पूर्ण एशिया ही में नहीं, यूरोप में भी उनका-सा वैभवशाली और कोई राज्य नहीं था। राज्य विक्रमादित्य क

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अध्याय 3

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भ्रमण मुसलमान यात्रियों में इब्‍नबतुता (प्रख्‍यात यात्री एवं महत्‍वपूर्णग्रं‍थ ‘सफ़रनामा’ का लेखक) सबसे श्रेष्‍ठ जाता है। सादी के विषय में विद्वानों ने स्थिर किया है कि उनकी यात्रायें 'बतूता' से कुछ

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अध्याय 4

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शीराज़ में पुनरागमन तीस-चालीस साल तक भ्रमण करने के बाद सादी को जन्‍म–भूमि का स्‍मरण हुआ । जिस समय वह वहाँ से चले थे, वहाँ अशांति फैली हुई थी। कुछ तो इस कुदशा और कुछ विद्या लाभ की इच्छा से प्रेरित होक

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अध्याय 5

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चरित्र सादी उन कवियों में हैं ... जिनके चरित्र का प्रतिबिंब उनके काव्‍य रूपी दर्पण में स्‍पष्‍ट दिखाई देता हैं। हृदय से निकलते थे और यही कारण है कि उनमें इतनी प्रबल शक्ति भरी हुई है। सैकड़ों अन्य उप

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अध्याय 7

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गुलिस्तां हम गुलिस्‍तां की कुछ कथाऍं देते हैं जिनसे पाठकों को भी सादी के लेखन कौशल का परिचय दे सकें।गुलिस्तां में आठ प्रकरण हैं। प्रत्येक प्रकरण में नीति और सदाचार के भिन्न-भिन्न सिध्दांतों का वर्णन

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अध्याय 8

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फ़ारसी साहित्‍य की पाठ्य पुस्‍तकों में गुलिस्‍तां के बाद बोस्‍तां का ही प्रचार है । यह कहने में कुछन होगी कि काव्यग्रंथों में बोस्तां का वही आदर है जो गद्य में गुलिस्तां का है। निज़मी का सिकन्दरनामा,

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अध्याय 9

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सादी की लोकोक्तियॉं किसी लेखक की सर्वप्रियता इस बात से भी देखी जाती है कि उसके वाक्‍य और पद कहावतों के रूप में कहाँ तक प्रचलित हैं। मानवचरित्र, पारस्परिक व्यवहार आदि के संबंध में जब लेखक की लेखनी से

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अध्याय 10

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गज़लें ग़जल फारसी कविता का प्रधान अंग है । कोई कवि, जब तक व‍ह गज़ल कहने में निपुर्ण न हो। गज़लें समाज में आदर का स्थान नहीं पाता। यों तो गज़ल शृंगार का विषय है, किन्तु कवियों ने इसके द्वारा सभी रसों

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अध्याय 11

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क़सीदे कसीदा फ़ारसी कविता के उस अंग को कहते हैं जिसमें कवि किसी महान पुरुष या किसी विशेष वस्तु की प्रशंसा करता है। जिस प्रकार भूषण, मतिराम, केशव आदि कविजन अपने समकालीन महीपतियों या पदाधिकारियों की प्

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अध्याय 12

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