उनकी कुछ कविताएं ऐसी भी मिलती हैं जिनमें कुछ सुरुचि के पद से इतनी गिर गई हैं कि उन्हें अश्लील कहा जा सकता है। हमने इस पुस्तक के पहले संस्करण में पृष्ठ सतासी पर यह लिखा था कि यह कविताएं सादी की कदापि नहीं हो सकती, लेकिन इस विषय में विशेष छानबीन करने पर यह ज्ञात हुआ कि वास्तव में सादी ही उनके कर्त्ता हैं। और यह सादी के प्रतिभा रूपी चन्द्र पर ऐसा धब्बा है जो किसी तरह नहीं मिट सकता। जब विचार करते हैं कि शेखसादी कितने नीतिवान, कितने सदाचारी, कितने सद्गुणी महान पुरुष थे तो इन अश्लील कविताओं को देखकर बड़ा खेद होता है। इस भाग में सादी ने अपनी नीतेज्ञता और गांभीरता को त्याग कर खूब गंदी बातें लिखी हैं। इसमें तो कोई संदेह नहीं कि सादी विनोदशील पुरुष थे और विनोदशीलता स्वभाव का दूषण नहीं, वरन गुण है, विशेष करके नीत्युपदेश में वहाँ उसकी बड़ी आवश्यकता होती है, जहाँ उपदेश का दुष्चार और दुष्टता की आलोचना करनी पड़ती है। यह गुण बहुधा उपदेश को रुचिकर बना दिया करता है, पर वही बात जब औचित्य से आगे बढ़ जाती है तो अश्लील हो जाती है। देखना यह है कि शेखसादी ने यह रचना विनोदार्थ की या किसी और कारण से। यह बात उनकी पंक्तियों से स्पष्ट विदित हो जाती है जो उन्होंने इस भाग के आदि में क्षमा प्रार्थना के भाव से लिखी हैं
"एक बादशाह ने मुझे बाध्य किया कि मैं कुछ अश्लील बातें लिखूं। जब मैंने इंकार किया तो उसने मुझे मार डालने की धमकी दी। इसलिए विवश होकर मुझे यह कविताएं लिखनी पड़ीं और मैं इसके लिए परमात्मा से क्षमा मांगता हूं।"
इससे यह पूर्णत: सिध्द हो जाता है कि सादी ने ये कविताएं विवश होकर रचीं और वह उनके लिए लज्जित हैं। वह स्वयं इसे अनुचित्त समझते हैं। यद्यपि इससे सादी की निर्ममता पर कुठाराघात होता है पर उस समय की रुचि तथा सभ्यता को देखते हुए यही बहुत है कि सादी ने इस रचना पर खेद तो प्रकट किया। उस समय कविगण बादशाहों के आमोद-प्रमोद के निमित्त प्राय: गंदी कविताएं लिखा करते थे। यह प्रथा ऐसी प्रचलित हो गई थी कि बड़े-बड़े विद्वानों और पंडितों को भी उनके लिखने में लेशमात्र संकोच न होता था। विद्वज्जन इन रचनाओं का आनंद उठाते थे। रसिकगण उनकी सराहना करते थे। ऐसी दशा में सादी ने भी यदि इन कविताओं की रचना को बहुत आपत्तिजनक न समझा हो तो आश्चर्य की बात नहीं। उन्होंने लज्जा तथा खेद प्रकट किया, इसी पर संतोष करना चाहिए। इन कविताओं में वह प्रफुल्लता और आनंद प्रदायिनी विनोदशीलता नहीं है जो उनका एक प्रधान गुण है। इससे विदित होता है कि शेख ने अवश्य उनकी रचना दुराग्रह से की, अपनी रुचि से नहीं।
मुंशी प्रेमचंद की अन्य किताबें
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। प्रेमचंद की आरम्भिक शिक्षा का आरंभ उर्दू, फारसी से हुआ और जीवनयापन का अध्यापन से पढ़ने का शौक उन्हें बचपन से ही लग गया। 13 साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया । १८९८ में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गए। नौकरी के साथ ही उन्होंने पढ़ाई जारी रखी।१९१० में उन्होंने अंग्रेजी, दर्शन, फारसी और इतिहास लेकर इंटर पास किया और १९१९ में बी.ए. पास करने के बाद शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए। प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर उनकी पहली हिन्दी कहानी सरस्वती पत्रिका के दिसम्बर अंक में १९१५ में सौत नाम से प्रकाशित हुई और १९३६ में अंतिम कहानी कफन नाम से प्रकाशित हुई। बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं।
प्रेमचन्द की रचना-दृष्टि विभिन्न साहित्य रूपों में प्रवृत्त हुई। बहुमुखी प्रतिभा संपन्न प्रेमचंद ने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आदि अनेक विधाओं में साहित्य की सृष्टि की। प्रमुखतया उनकी ख्याति कथाकार के तौर पर हुई और अपने जीवन काल में ही वे ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि से सम्मानित हुए। उन्होंने कुल १५ उपन्यास, ३०० से कुछ अधिक कहानियाँ, ३ नाटक, १० अनुवाद, ७ बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की लेकिन जो यश और प्रतिष्ठा उन्हें उपन्यास और कहानियों से प्राप्त हुई, वह अन्य विधाओं से प्राप्त न हो सकी। यह स्थिति हिन्दी और उर्दू भाषा दोनों में समान रूप से दिखायी देती है। मुंशी प्रेमचंद की प्रमुख रचनाएं सेवासदन ,प्रेमाश्रम , रंगभूमि ,
निर्मला , कायाकल्प, गबन , कर्मभूमि , गोदान, D