shabd-logo

अध्याय 9

11 फरवरी 2022

34 बार देखा गया 34

सादी की लोकोक्तियॉं

किसी लेखक की सर्वप्रियता इस बात से भी देखी जाती है कि उसके वाक्‍य और पद कहावतों के रूप में कहाँ तक प्रचलित हैं। मानवचरित्र, पारस्परिक व्यवहार आदि के संबंध में जब लेखक की लेखनी से कोई ऐसा सारगर्भित वाक्य निकल जाता है जो सर्व-व्यापक हो तो वह लोगों की ज़बान पर चढ़ जाता है। गोस्वामी तुलसीदास जी की कितनी ही चौपाइयाँ कहावतों के रूप में प्रचलित हैं। अंग्रेज़ी में शेक्सपियर के वाक्यों से सारा साहित्य भरा पड़ा है। फ़ारसी में जनता ने यह गौरव शेखसादी को प्रदान किया है। इस क्षेत्र में वह फ़ारसी के समस्त कवियों से बढ़े-चढ़े हैं। यहाँ उदाहरण के लिए कुछ वाक्य दिये जाते हैं
अगर हिन्जि़ल खुरी अज़ दस्ते खुशखूय,
बेह अज़ शरीनी अज़ दस्ते तुरुशरूय।
कवि रहीम के इस दोहे में यही भाव इस तरह दर्शाया गया है
अमी पियावत मान बिन, रहिम हमें न सुहाय।
प्रेम सहित मरियो भलो, जो विषय देई बुलाय॥
आनांकि ग़नी तरन्द मुहताज तरन्द।
(जो अधिक धनाडय हैं वही अधिक मोहताज है।)
हर ऐब कि सुल्तां बेपसन्दद हुनरस्त।
(यदि राजा किसी ऐब को भी पसंद करे तो वह हुनर हो जाता है।)
हाजमे मश्शाता नेस्त रूय दिलाराम रा।
(सुंदरता बिना शृंगार ही के मन को मोहती है।)
स्वाभाविक सौंदर्य जो सोहे सब अंग माहिं।
तो कृत्रिम आभरन की आवश्यकता नाहिं।
परतवे नेकां न गीरद हरकि बुनियादश बदस्त।
(जिसकी अस्ल खराब है उस पर सज्जनों के सत्संग का कुछ असर नहीं होता।)
दुश्मन न तवां हकीरो बेचारा शुमुर्द।
(शत्रु को कभी दुर्बल न समझना चाहिये।)
आकश्बत गुगज़दा गुर्ग शवद।
(भेड़िये का बच्चा भेड़िया ही होता है।)
दर बाग़ लाला रोयदो दर शोर बूम ख़रा ।
(लाला फल बाग़ में उगता है, ख़स ज़ो घास है, ऊसर में।)
तवंगरी बदिलस्त न बमाल,
बुजुर्गी बअकलस्त न बसाल।
(धनी होना धन पर नहीं वरन् हृदय पर निर्भर है, बड़प्पन अवस्था पर नहीं वरन् बुध्दि पर निर्भर है।)
सघन होन तैं होत नहिं, कोऊ लच्छ मीवान।
मन जाको धनवान है, सोई धनी महान॥
हसूद रा चे कुनम को ज़े खुद बरंज दरस्त।
(ईष्यालु मनुष्य स्वयं ही ईष्या-अग्नि में जला करता है। उसे और सताना व्यर्थ है।)
क़द्रे आफियत आंकसे दानद कि बमुसीबते गिरफ्तार आयद।
(दुख भोगने से सुख के मूल्य का ज्ञान होता है।)
विपति भोग भोग गरू, जिन लोगनि बहुबार।
सम्पति के गुण जानही, वे ही भले प्रकार।
चु अज़बे बदर्द आबुरद रोज़गार,
दिगर अज़वहारा न मानद करार।
(जब शरीर के किसी अंग में पीड़ा होती है तो सारा शरीर व्याकुल हो जाता है।)
हर कुजा चश्मए बुवद शीरीं,
मरदुमों मुर्गों मोर गिर्दायन्द।
विमल मधुर जल सों भरा, जहाँ जलाशय होय।
पशु पक्षी अरु नारि नर, जात तहाँ सब कोय॥
आंरा कि हिसाब पाकस्त अज़ मुहासिबा चेबाक।
(जिसका लेखा साफ है उसे हिसाब समझाने वाले का क्या डर?)
दोस्त आं बाशद गीरद दस्ते दोस्त।
पर परेशां हालि ओ दर मांदगी।
(मित्र वही है जो विपत्ति में काम आवे।)
तोपाक बाश बिरादर! मदार अज़ कस बाक,
ज़नन्द जामये नापाक गाजुरां बरसंग।
(तू बुराइयों से पवित्र (दूर) रहे तो तेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। धोबी केवल मैले कपड़े को पत्थर पर पटकता है।)
चु अज़ कशैमे यके बेदानिशी कर्द,
न केहरा मन्जिलत मानद न मेहरा।
(किसी जाति के एक आदमी से बुराई हो जाती है तो सारी की सारी जाति बदनाम हो जाती है। न छोटे की इज्जत रहती है न बड़े की।)
पाय दर ज़ोर पेशें दोस्ता,
बेह कि बा बेगानगां बोस्तां।
(मित्रों के साथ बन्दीगृह भी स्वर्ग है पर दूसरों के साथ उपवन नरक समान है।)
नेक बाशी व बदत गोयद ख़ल्‍क,
बेह कि बद बाशी व नेकत गोयन्द।
(सन्मार्ग पर चलते हुए अगर लोग बुरा कहें तो यह उससे अच्छा है कि कुमार्ग पर चलते हुए लोग तुम्हारी प्रशंसा करें।)
बातिलस्त उद्बचे मुद्दई गोयद,
(विपक्षी की बात मिथ्या समझी जाती है।)
मर्द बायद कि गीरद अन्दर गोश,
गर नविश्तास्त पन्द बर दीवार।
(मनुष्य को चाहिए कि यदि दीवार पर भी उपदेश लिखा हुआ मिले तो उसे ग्रहण करे।)
हमरह अगर शिताब कुनद हमरहे तो नेस्त।
(तेरा साथी जल्दी करता है तो वह तेरा साथी नहीं है।)
हक्‍का कि बा डकूबत दोज़ख बराबरस्त,
रफतन ब पायमर्दी हमसाया दर बहिश्त।
(पड़ोसी की सिफारिश से स्वर्ग में जाना नरक में जाने के तुल्य है।)
रिज्‍क हरचन्द बेगुमां बरसद,
शर्ते अक्‍़लस्त जुस्तन अज़ दरहा।
(यद्यपि भूखों कोई नहीं मरता, ईश्‍वर सबकी सुधि लेता है, तथापि बुध्दिमान आदमी का धर्म है कि उसके लिए प्रयत्न करे।)
बदोजद तमा दीदए होशमन्द।
(तृष्णा चतुर को भी अंधा बना देती है।)
गरदने बेतमा बुलन्द बुवद।
(निस्पृह मनुष्य का सिर सदा ऊंचा रहता है।)
निकोई बा बदां करदन चुनानस्त,
कि बद करदन बजाए नेक मरदां।
(दुर्जनों के साथ भलाई करना सज्जनों के साथ बुराई करने के समान है।)
यके नुकसाने माया दीगर शुभातते हमसाया।
(गांठ से धन जाय लोग हंसें।)
खश्ताये बजुर्गां गिरफ्तन ख़तास्त।
(बड़ों का दोष दिखाना दोष है।)
ख़रे ईसा अगर बमक्का श्‍वद,
चूं बयायद हनोज़ खर बाशद।
(कौआ कभी हंस नहीं हो सकता।)
जौरे उस्ताद बेह ज़महरे पिदर।
(गुरु की ताड़ना पिता के प्यार से अच्छी है।)
करीमांरा बदस्त अन्दर दिरम नेस्त,
खुदा बन्दा न्याम तरा करम नेस्त।
(दानियों के पास धन नहीं होता और धनी दानी नहीं होते।)
परागन्दा रोज़ों परागन्दा हिल।
(वृत्तिहीन मनुष्य का चित्‍त स्थिर नहीं रहता।)
पेशे दीवार उद्बचे गोई होशदार,
ता न बाशद दर पसे दीवार गोश।
(दीवार के भी कान होते हैं, इसका ध्‍यान रख।)
कि खुब्स नफ़श न गरदद ब सालहा मालूम।
(स्वभाव की नीचता बरसों में भी नहीं मालूम होती।)
मुश्क आनस्त कि खुद बबूयद न कि अत्‍तर बगोयद।
(कस्तूरी की पहचान उसकी सुगन्धि से होती है गान्धी के कहने से नहीं।)
कि बिसियार ख्वारस्त बिसियार ख्वार।
(बहुत खानेवाले आदमी का कभी आदर नहीं होता।)
कुहन जामए खशेश आ रास्तन,
बेह अज़ जामए आरियत ख्‍़वास्तन।
(अपने पुराने कपड़े मंगनी के कपड़ों से अच्छे हैं।)
चु सायल अज़ तो बज़री तलब कुनद चीज़े,
बेदेह बगर न सितमगर बजशेर बसितानद।
(दोनों को दे, वर्ना छीनकर ले लेंगे।)
सखुनश तल्ख न ख्‍़वाहो दहनश शीरीं कुन।
(अगर किसी की कड़वी बात नहीं सुनना चाहे तो उसका मुंह मीठा कर।)
मोरचगांरा चु बुवद इत्तफ़ाक,
शेरेजि़या रा बदरारूद पोस्त।
(अगर चिउटियॉं एका कर लें, तो शेर की खाल खींच सकती हैं।)
हुनर बकार न आयद चु बख्‍़त बदशाह।
(भाग्यहीन मनुष्य के गुण भी काम नहीं आते।)
हरकि सुखन न संजद अज़ जवाब बरंजदा।
(जो आदमी तौलकर बात नहीं करता उसे कठोर बातें सुननी पड़ती हैं।)
अन्दक अन्दक बहम शवद बिसियार।
(एक-एक दाना मिलकर ढेर हो जाता है।)
यद्यपि सादी ने जो उपदेश किये हैं वह अन्य लेखकों के यहाँ भी पाये जाते हैं, लेकिन फ़ारसी में सादी की सी ख्याति किसी ने नहीं पाई थी। इससे विदित होता है कि लोकप्रियता बहुत कुछ भाषा सौंदर्य पर अवलंबित होती है। यहाँ हमने सादी के कुछ वाक्य दिये हैं लेकिन यह समझना भूल होगी कि केवल यही प्रसिध्द हैं। सारी गुलिस्तां ऐसे ही मार्मिक वाक्यों से परिपूर्ण है। संसार में ऐसा एक भी ग्रंथ नहीं है जिसमें ऐसे वाक्यों का इतना आधिक्य हो जो कहावत बन सकते हो।
गोस्वामी तुलसीदास पर यह दोषारोपण किया जाता है कि उन्होंने कई भ्रमोत्पादक चौपाइयॉं लिखकर समाज को बड़ी हानि पहुंचाई है। कुछ लोग सादी पर भी यही दोष लगाते हैं और यह वाक्य अपने पक्ष की पुष्टि में पेश करते हैं
अगर शहरोज़ रा गोयद शबस्त इं,
बबायद गुफ़त ईनक माहो परवीं।
(अगर बादशाह दिन को रात कहे तो कहना चाहिए कि हाँ, हुजूर, देखिये चांद निकला हुआ है।)
इस पर यह आक्षेप किया जाता है कि सादी ने बादशाहों को झूठी खुशामद करने का परामर्श दिया है। लेकिन जिस निर्भयता और स्वतंत्रता से उन्होंने बादशाहों को ज्ञानोपदेश किया है उस पर विचार करते हुए सादी पर यह आक्षेप करना बिल्कुल न्याय संगत नहीं मालूम होता। इसका अभिप्राय केवल यह है कि खुशामदी लोग ऐसा करते हैं।
इसी तरह लोग इस वाक्य पर भी एतराज करते हैं
दरोग़े मसलहत आमेज़ बेह,
अज़ रास्ती फि़तना अंगेज़।
(वह झूठ जिससे किसी की जान बचे उस सच से उत्‍तम है जिससे किसी की जान जाय।)
कहा जाता है कि असत्य सर्वथा अक्षम्य है और सादी का यह वाक्य झूठ के लिए रास्ता खोल देता है। लेकिन विवाद के लिए इस वाक्य की उपेक्षा चाहे की जाय और आदर्श के उपासक चाहे इसे निन्द्य समझें, पर कोई सहृदय मनुष्य इसकी उपेक्षा न करेगा। इसके साथ ही सादी ने आगे चलकर एक और वाक्य लिखा है जिससे विदित होता है कि वह स्वार्थ के लिए किसी हालत में भी झूठ बोलना उचित नहीं समझते थे
गर यस्त सुख़न गोई ब दर बन्द ब मानी,
बेह जशंकि दरोग़त देहद अज़ बन्द रिहाई।
(यदि सच बोलने से तुम कैद हो जाओ तो यह उस झूठ से अच्छा है जो कैद से मुक्त कर दे।)
इससे जान पड़ता है कि पहला वाक्य केवल दूसरों की विपत्ति के पक्ष में है, अपने लिये नहीं। 

11
रचनाएँ
शेख़ सादी
0.0
प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। शेख़ सादी मुंशी प्रेमचंद ने इस नाटक में शेख़ मुसलहुद्दीन (उपनाम सादी) का जन्म सन् 1172 ई. में शीराज़ नगर के पास एक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम अब्दुल्लाह और दादा का नाम शरफुद्दीन था। 'शेख़' इस घराने की सम्मान सूचक पदवी थी। क्योंकि वृत्ति धार्मिक शिक्षा-दीक्षा देने की थी। लेकिन इनका ख़ानदान सैयद था। जिस प्रकार अन्य महान् पुरुषों के जन्म के सम्बन्ध में अनेक अलौकिक घटनाएं प्रसिध्द हैं उसी प्रकार सादी के जन्म के विषय में भी लोगों ने कल्पनायें की हैं। लेकिन उनके उल्लेख की जरूरत नहीं। सादी का जीवन हिंदी तथा संस्कृत के अनेक कवियों के जीवन की भांति ही अंधकारमय है।
1

अध्याय 1

11 फरवरी 2022
6
2
0

शेख़ मुसलहुद्दीन (उपनाम सादी) का जन्म सन् 1172 ई. में शीराज़ नगर के पास एक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम अब्दुल्लाह और दादा का नाम शरफुद्दीन था। 'शेख़' इस घराने की सम्मान सूचक पदवी थी। क्योंकि उनक

2

अध्याय 2

11 फरवरी 2022
2
1
0

बग़दाद उस समय तुर्क साम्राज्य की राजधानी था। मुसलमानों ने बसरा से यूनान तक विजय प्राप्त कर ली थी और सम्पूर्ण एशिया ही में नहीं, यूरोप में भी उनका-सा वैभवशाली और कोई राज्य नहीं था। राज्य विक्रमादित्य क

3

अध्याय 3

11 फरवरी 2022
0
0
0

भ्रमण मुसलमान यात्रियों में इब्‍नबतुता (प्रख्‍यात यात्री एवं महत्‍वपूर्णग्रं‍थ ‘सफ़रनामा’ का लेखक) सबसे श्रेष्‍ठ जाता है। सादी के विषय में विद्वानों ने स्थिर किया है कि उनकी यात्रायें 'बतूता' से कुछ

4

अध्याय 4

11 फरवरी 2022
0
0
0

शीराज़ में पुनरागमन तीस-चालीस साल तक भ्रमण करने के बाद सादी को जन्‍म–भूमि का स्‍मरण हुआ । जिस समय वह वहाँ से चले थे, वहाँ अशांति फैली हुई थी। कुछ तो इस कुदशा और कुछ विद्या लाभ की इच्छा से प्रेरित होक

5

अध्याय 5

11 फरवरी 2022
0
0
0

चरित्र सादी उन कवियों में हैं ... जिनके चरित्र का प्रतिबिंब उनके काव्‍य रूपी दर्पण में स्‍पष्‍ट दिखाई देता हैं। हृदय से निकलते थे और यही कारण है कि उनमें इतनी प्रबल शक्ति भरी हुई है। सैकड़ों अन्य उप

6

अध्याय 7

11 फरवरी 2022
1
0
0

गुलिस्तां हम गुलिस्‍तां की कुछ कथाऍं देते हैं जिनसे पाठकों को भी सादी के लेखन कौशल का परिचय दे सकें।गुलिस्तां में आठ प्रकरण हैं। प्रत्येक प्रकरण में नीति और सदाचार के भिन्न-भिन्न सिध्दांतों का वर्णन

7

अध्याय 8

11 फरवरी 2022
0
0
0

फ़ारसी साहित्‍य की पाठ्य पुस्‍तकों में गुलिस्‍तां के बाद बोस्‍तां का ही प्रचार है । यह कहने में कुछन होगी कि काव्यग्रंथों में बोस्तां का वही आदर है जो गद्य में गुलिस्तां का है। निज़मी का सिकन्दरनामा,

8

अध्याय 9

11 फरवरी 2022
0
0
0

सादी की लोकोक्तियॉं किसी लेखक की सर्वप्रियता इस बात से भी देखी जाती है कि उसके वाक्‍य और पद कहावतों के रूप में कहाँ तक प्रचलित हैं। मानवचरित्र, पारस्परिक व्यवहार आदि के संबंध में जब लेखक की लेखनी से

9

अध्याय 10

11 फरवरी 2022
0
0
0

गज़लें ग़जल फारसी कविता का प्रधान अंग है । कोई कवि, जब तक व‍ह गज़ल कहने में निपुर्ण न हो। गज़लें समाज में आदर का स्थान नहीं पाता। यों तो गज़ल शृंगार का विषय है, किन्तु कवियों ने इसके द्वारा सभी रसों

10

अध्याय 11

11 फरवरी 2022
0
0
0

क़सीदे कसीदा फ़ारसी कविता के उस अंग को कहते हैं जिसमें कवि किसी महान पुरुष या किसी विशेष वस्तु की प्रशंसा करता है। जिस प्रकार भूषण, मतिराम, केशव आदि कविजन अपने समकालीन महीपतियों या पदाधिकारियों की प्

11

अध्याय 12

11 फरवरी 2022
0
0
0

उनकी कुछ कविताएं ऐसी भी मिलती हैं जिनमें कुछ सुरुचि के पद से इतनी गिर गई हैं कि उन्हें अश्‍लील कहा जा सकता है। हमने इस पुस्तक के पहले संस्करण में पृष्ठ सतासी पर यह लिखा था कि यह कविताएं सादी की कदापि

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए