सागरिका खामोश रही ।मानो वो स्वीकार कर चुकी थी ,की चांद उसकी सबसे अच्छी दोस्त थी ।फिर राधे वैसे मै तो आज बहुत खुश हुं, सो अपनी खुशियाँ बांटने आया था ।और आप क्या करने आई थी?सागरिका का दिल तो रो रहा था ।उसने कहा मै ,तो सखी का अकेलापन बांटने आई थी। कितना अजीब है न राधेजी की उसकी चमक के आगे उसका अकेलापन किसी को दिखाई नही देता । तब राधे कहता है , आप नहीं जानती की ये सारी रात किसके लिए चमकता है ?चकोर चांद की दिबनी होती है ।इसलिए तो ,ये दोनो सारी रात एक दूसरे के लिए जाग कर दीदार करते है ।पड़ इनका प्रेम चरम सीमा पड़ होते हुए भी दोनो एक दूसरे के करीब नहीं एक दूरी की खाई मे बंधे हुए है ।राधे की बाते सुनकर सागरिका को सखी की हालत अपने से ठीक लगी की कम से-कम् सखी अपने चकोर को दूर से हीं सही उसका दीदार तो कर पाती है न!राधे सागरिका को यु अकेले अपने पास देखकर वो उसके मन के रास्ते दिल मे जगह बनाना चाहता था ।इसलिए वो एक बार फिर से उसका हांथ पकड़ कर उसके मन की बात जानना चाहता है , तब सागरिका बोल पड़ती है ,की अगर। चकोर को पता है ,की उसकी उड़ान चांद तक नही पहुँच सकती तो वो फिर भी उससे दिल क्यों लगा बैठी है ?तब राधे कहता है ,की चकोर आसमान से टूटते जुगनू को अपने चांद का अंश मान कर उसे अपने कंठ मे निगलती रहती है ,की कभी तो वो भी ऐसे हीं नीचे आएगा?वो अपनी मिलन की तृष्णा को जुगनू की मिल जाने से हीं चांद की तरफ रात भर इंतज़ार की टक टकी लगाए रहता है ।उनकी बाते चल हीं रही थी ,की रात की दूधिया चांदनी सवेरा की ओर चलने लगा था ।कुछ हीं समय मे सुबह् होने बाली थी।सागरिका बातों की सिलसिले को बिराम देते हुए निचे कमरे मे आ गई । उसने बिस्तर पड़ सोना चाहा पड़ नींद की जगह आँखों मे फिर जीवा की यादों से पानी आ गये ।मानो उसकी आँखों से पानी बनकर जीवा के लिए देखे गये सपने हीं बहने लगे थे ।वो जीवा को दुनिया का सबसे अच्छा पेंटिंग वनाने बाला इंसान बनाने का सपना तो बुन चुकी थी पड़ ये सपने बारे दगाबाज़ से होते है ।बहुत जल्दी हीं ये आँखों से निकल जाते है ।