पड़ आज उसी बक्त की आँख -मीचौली की वजह से जीवा एक बार फिर। से सागरिका की आँखों के सामने जीवन के रूप मे आ खड़ा हुआ था ।और जीवा की आँखों मे भी वो प्यार जिसे उसने कभीभी सागरिका से ब्या नही किया था ।वो प्यार बे ज़ुबान होते हुए भी उसकी आँखों मे बाया हो रहा था । जीवा तो ससग्रीका को प्यार उस दिन से करने लगा था जिस दीन उसने सागरिका को पहली बार देखा था ।पड़ अपने प्यार को वो कभी ज़ाहीर नही होने दिया क्योंकि शायद वो स्वयं को सागरिका के लायक़ नही समझता था ।क्योंकि वो स्वंम को सागरिका तो क्या दुनिया के किसी लड़की के लायक़ नही समझता था ।क्योंकि अगर वो लायक होता तो उसकी पत्नी उसे छोड़ कर मौत को गले क्यों लगाती ?इसलिए वो अपने प्यार को हमेश-हमेशा के लिए बेज़ुबा बने रहे देना चाहता था । पड़ जब सागरिका को अपने सामने पाया तब उसे ये अहसास। हुआ की उसकी आँखों मे भी वो प्यार था ,जिसकी कल्पना उसके दिल मे था ।पड़ ऐसा नही होसका इसके लिए उसकिआँखों मे एक खाली -पन देखने को मिल रहा था ।क्योंकि सागरिका की आँखों से बहत आँशु ये बाया कर रहे थे ,की उसे जीवा से प्यार था ।और वो उस प्यार को पाने से पहले ही खो चुकी थी ।जीवा अपनी पत्नी का अंतिम संस्कार करने के बाद शहर नही गया ,क्योंकी वो। स्वंम को सागरिका प्यार के लायक़ नही समझता था ,।और सागरिका जीवा कोअपने जीवन मे एक याद मानकर आगे बढ़ चुकी थी की जीवा शादी -सुदा था ।पड़ सच्चाई तो ये थी की सागरिका और जीवन की आँखों मे चांद और चकोर वाला इंतज़ार आ गया था , जो दोनो एक दूसरे को तार तो सकते थे । पड़ कभी एकनही हो सकते थे ।
सागरिका ,उस दिन अपने होने वाले पति से पहली बार मिलने ,के,लिए जा रही थी।शायद वो थोड़ी लेट हो चुकी थी। सुबह का समय था। बारिसो का सीजन चल रहा था। कुल मिलाकर उस दिन मौसम सुहाना सा था।सागरिका जब घर से निकली ही थी,की , हलकी हवाएं और बारिसो की बुंदे भी अपने घर से मानो चल ही परे थे।सागरिका उन बूंदो से बचने के लिए तेज कदमो के साथ सरको पर चल परी थी।पर वो कहावत तो सुनी होगी आपने की तुम डाल -डाल तो हम पात-पात् यही उसके साथ भी हो ,रहा था।जैसे -जैसे उसके कदमो की चाल तेज होती जा रही थी ,ठीक वैसे -वैसे ही हवाएं और बूंदो की। च।ल भी बढ़ती ही जा रही थी। इसी होर की आपा -धापी मे वो सरक पर पहुंच कर बस का इंतजार करने लगी थी।वो तो रुक चुकी थी ,पर हवाएं और बारिसे की बुंदे तो और भी तेज हो चुकी थी।हवा कीत तेज झोंको ने उसकी छतरी को दूर जा उराया था। छतरी के उरते ही बूंदो ने उसे भींगा दिया था। अब तो उसकी नजरें मानो आति-जाती गरियों के रुकने का इंतज़ार करने लगी जो ,की पहले से ही भरी रहने के कारण रुकने का नाम भी नही ले रही थी ।फिर एक बस आती दिखी तो सागरिका ने बस को रुकने का इशारा किया ।मगर ये बस भी आगे निकल गई थी ।वो बस खुली आँखो ,बस को जाति देखती रह गई की,तभी उसके कानो मे एक आवाज गुंजी,वोआवाज जीवा की थी।वो बस अभी भी धीमी गति से बढ़ी जा रही थी।जीवा ने आवाज दिया अरे ओ मैडमजी जल्दी आइये वरना आधी तो आप पहले से हि भीगी हुई है।बाकी आधा फिर से भीगने का इरादा है क्या ?,जल्दी आइये सागरिका उसकी बस की ओर लपकी ,मगर वो चढ़ने मे संकोच। कर रही थी।जीवा ने फिर कहा अरे मैडमजी गरी धीमी है ,इसलिए आप चढ़ सकती है।इतना विश्वाश रखिये आपको गिरने नही देंगे हम।इतना कहते हुए वो एक हाथ से उसके हाथ से गुलाब के फूलो का गुच्छा लेते हुए दूसरे हाथ उसे1 उसे बस मे खींच लेता है।बस मे तिल तस्कने भर की भी जगह नही थी। सागरिका हैरंगी भरी नजरों से उसे चिढ़ते हुए देखने लगी ।वो फूल जो उसने ले लिया था ,इसलिए वो उसे गुस्से से देख रही थी।पर दूसरे ही पल वो उसे समझ गई थी की। उसे ये तक पता नही था ।की गुलाब का फूल किसे और क्यों दिया जाता है। उसके भोलेपन सेही ये लग रहा था ,की वो किसी गाँव् से शहर आया था। ।वो सागरिका को फूल वापस कर चुका था ।जीवा मे एक अज़ब ही फूरती थी ।शायद ये उसकी काम की शर्ते थी। बस अपनी रफ्तार से बढ़ती जा रही थी ।