क्योंकी जब भिसागरिका जीवा की आँखों मे देखती तो जीवा अपनी नज़रो को झेपकर् हटा लेता और,इसलिए वो,बार-बार् जीवा की ओर देखती थी ।जीवा की ओर सागरिका का बार - बार देखने का करण था सागरिका ये ,इमैजिन करके जीवा की ओर देख रही थी ।की जीवा उसके होने वाले पति (राधे ) की जगह है । और जब वो राधे से मिलेगी तो पता नही क्या होगा?इसलिए वो पहले से हि। इन सब चीजों के लिए स्वयं को तैयार कर रही थी ।ताकि ,जब राधे उसके सामने आये तो वो ज्यादा नर्वसनेस न महसूस कर सके ।बस को बस स्टॉप तक पहुंचते -पहुंचते बस मे इतनी जगह हो चुकी थी ,की लोग आराम से अपनी -अपनी जगहों पर बैठे हुए थे ।फिर लोग जब अपनी सीट वाली खिरकी से बाहर् झाँकाते तो वारिश की रिम -झिम बूंदो की खूबसूरती देखते बन रही थी ।कभी -कभी उन बून्दो की
सागरिका ,उस दिन अपने होने वाले पति से पहली बार मिलने ,के,लिए जा रही थी।शायद वो थोड़ी लेट हो चुकी थी। सुबह का समय था। बारिसो का सीजन चल रहा था। कुल मिलाकर उस दिन मौसम सुहाना सा था।सागरिका जब घर से निकली ही थी,की , हलकी हवाएं और बारिसो की बुंदे भी अपने घर से मानो चल ही परे थे।सागरिका उन बूंदो से बचने के लिए तेज कदमो के साथ सरको पर चल परी थी।पर वो कहावत तो सुनी होगी आपने की तुम डाल -डाल तो हम पात-पात् यही उसके साथ भी हो ,रहा था।जैसे -जैसे उसके कदमो की चाल तेज होती जा रही थी ,ठीक वैसे -वैसे ही हवाएं और बूंदो की। च।ल भी बढ़ती ही जा रही थी। इसी होर की आपा -धापी मे वो सरक पर पहुंच कर बस का इंतजार करने लगी थी।वो तो रुक चुकी थी ,पर हवाएं और बारिसे की बुंदे तो और भी तेज हो चुकी थी।हवा कीत तेज झोंको ने उसकी छतरी को दूर जा उराया था। छतरी के उरते ही बूंदो ने उसे भींगा दिया था। अब तो उसकी नजरें मानो आति-जाती गरियों के रुकने का इंतज़ार करने लगी जो ,की पहले से ही भरी रहने के कारण रुकने का नाम भी नही ले रही थी ।फिर एक बस आती दिखी तो सागरिका ने बस को रुकने का इशारा किया ।मगर ये बस भी आगे निकल गई थी ।वो बस खुली आँखो ,बस को जाति देखती रह गई की,तभी उसके कानो मे एक आवाज गुंजी,वोआवाज जीवा की थी।वो बस अभी भी धीमी गति से बढ़ी जा रही थी।जीवा ने आवाज दिया अरे ओ मैडमजी जल्दी आइये वरना आधी तो आप पहले से हि भीगी हुई है।बाकी आधा फिर से भीगने का इरादा है क्या ?,जल्दी आइये सागरिका उसकी बस की ओर लपकी ,मगर वो चढ़ने मे संकोच। कर रही थी।जीवा ने फिर कहा अरे मैडमजी गरी धीमी है ,इसलिए आप चढ़ सकती है।इतना विश्वाश रखिये आपको गिरने नही देंगे हम।इतना कहते हुए वो एक हाथ से उसके हाथ से गुलाब के फूलो का गुच्छा लेते हुए दूसरे हाथ उसे1 उसे बस मे खींच लेता है।बस मे तिल तस्कने भर की भी जगह नही थी। सागरिका हैरंगी भरी नजरों से उसे चिढ़ते हुए देखने लगी ।वो फूल जो उसने ले लिया था ,इसलिए वो उसे गुस्से से देख रही थी।पर दूसरे ही पल वो उसे समझ गई थी की। उसे ये तक पता नही था ।की गुलाब का फूल किसे और क्यों दिया जाता है। उसके भोलेपन सेही ये लग रहा था ,की वो किसी गाँव् से शहर आया था। ।वो सागरिका को फूल वापस कर चुका था ।जीवा मे एक अज़ब ही फूरती थी ।शायद ये उसकी काम की शर्ते थी। बस अपनी रफ्तार से बढ़ती जा रही थी ।