ये कहता है की इसके बारे मे उसे ज्यादा तो नहीं पता बस इसके बारे मे वो इतना हि बता सकता है, की जीवन नाम का कोई लड़का था ,जिसे चित्र कारी का बड़ा शौक था ।वो जब छोटा था ,तभी वो नानाजी से चित्र कारी सीखा करता था । तब मै गर्मियों की छुट्टीयो मे गांव आया करता था । तब से वो जीवन के बारे मे थोड़ा जान पाया था ।अब मै बड़ा हो गया हुँ ।वो भी बड़ा हो गया होगा ? बचपन की यांदे आज फिर से ताज़ा हो गया इस जीवन कला मंदिर मे आकर ।मै अपने मौडलिंग के बिज़नस के इतना वयस्त हो गया था ,की जब गांव और बचपन की याद आती तो अपने मन को ये समझा देता की गाँव कहा भगा जा रहा है ।किसी रोज़ फुर्सत मे जाऊंगा बचपन को जीने ?इतना कहते हुए वो बाहर निकल कर पास। मे लगी आम के पेड़ पड़ लगी झूले को टटोल कर मानो अपने बचपन की यांदो मे खो जाना चाहता था ।और यही हुआ भी जब वो झूले पड़ बैठ कर अपने बच्चेपन को जी पाने का थोड़ा ही आनंद उठा पाया था ,की झूले की रस्सी टूट गई और राधे ज़मीन पड़ गिर पड़ा । ये देख कर सागरिका अपनी हँसी को रोक नही पाई और वो जोर -जोर से हंसने लगी ।उसकी हंसी तो रुक ही नही रही थी ,की राधे कहता है की अब आज के लिए इतना ही मेरी तो , लुटिया ही डूबा दिया इस कमज़ोर झूले ने ।वो मज़ाकिया लहज़े मे ये बाते करते हुए सागरिका का हांथ पकड़ कर वंहाँ से जाने लगा था ,की सागरिका गुमशुम सा मुंह बनाकर् उसका मुंह ताकने लगी ,तब राधे भी चुप हो गया मानो उसका मज़ाकिया पन सागरिका को पसंद नही आया था ।राधे की चुप्पी देखकर सागरिका की हँसी फिर छुट गई ।और सागरिका को बेपरबाह् हंसते देख कर राधे भी ,हंस पड़ा ।दोनो एक दूसरे को देखते और उस टूटी रस्सी की बात याद कर रह -रह कर हंस पड़ते ,सागरिका अपनी हंसी को विराम लगाते हुए राधे को घर चलने का इशारा देती है ।फिर घर आकर राधे सागरिका को नानाजी के सामने लाकर खड़ा कर देता है,और कहता है, की जीवन कला मंदिर से जुड़ी और कुछ जानकारी अगर जाननी हो ,तो नानाजी इसके बारे मे तुम्हे सब कुछ बता देंगे ? सागरिका नानाजी से जीवन कला मंदिर से जुड़ी बाते पूछ पाती !उससे पहले ही ,नानाजी बेटी ,कल सुबह जन्माष्टमी का त्योहार है,सारे गांव वाले इस त्योहार को धूम -धाम से मनाते है ,सो तुम भी मंदिर जाने को समय पड़ तैयार हो जाना ।सागरिका कहती है,जी नानाजी ।सागरिका ने मन -ही मन नानाजी को धन्यवाद दिया ,की अगर नानाजी उसे बताते नही की कल जन्माष्टमी है ,तो उसका तो व्रत ही टूट जाता । ये सब सोंचते ही ,वो कल सुबह का इंतज़ार लिए सो गई ,बिस्तर पड़ जाते ही ,वो गांव। के भोले -भाले लोगों के बारे मे अनायास ही सोंचाने लगी ,की गांव के लोग कितने भोले और संच्चे से होते है । पड़ शायद ये गांव का एक पहलू था ।सागरिका गांव के दूसरे पहलू से उस बक्त मिल पाती है ,जब नानाजी जीवन की कहानी सागरिका को सुनाते है ।