पर शायद वो भी मेरी किस्मत को मंजूर नहीं । तब जीवा कहता है की, क्या बात हुई है मैडमजी आप साफ -साफ कहिये न कहता है सागरिका कहती है की मै ट्यूरिस्ट गाइड का काम करती हुँ और मेरा आइडेंटी कार्ड कही खो गया है ।और बिना आइडेंटी कार्ड के मै अपने काम से नहीं जुड़ सकती ।तब जीवा कहता है की ये कैसा कम है ,की इस कार्ड से हि होता है। तब सागरिका ये बताती है की आइडेंटी कार्ड से हि एक ट्यूरिस्ट गाइड की पहचान होती है । क्योंकि जो पर्यटक घूमने के लिए आते है ,वो इस कार्ड से हि स्वंम को सुरक्षित महसूस करते है ।की वो किसी गलत व्यक्ति के सम्पर्क मे तो नहीं ।तब जीवा कहता है ,की मैडमजी तब तो ये जरूर आपके काम की हि चीज़ रही होगी ?इतना कहने के बाद जीवा अपनी जेब मे हांथ डालकर वो। कार्ड सागरिका के हांथो मे रख देता है ।इससे पहले की सागरिका ये पूछती की ये कार्ड तुम्हारे पास कैसे आया उससे पहले ही ।हि जीवा एक हि सांस मे सारी बाते बोल देता है ।वो कहता है ,ये सब छोड़िये न कब ,कैसे और क्यों मिला ।मिल तो गया न ! तब भी सागरिका ये कहती है ,की अच्छा किया जो तुमने इसे बेकर समझ कर फ़ेंका नही वर्णा तुम तो पढ़े लिखे भी नहीं हो ।अगर इसे फेक देते तो? उसकी ये बात सुनकर जीवा के चेहरे पर । एक पल के लिए उदासी उभर आती है ।मानो उसने उसकी दुखाती राग पर हांथ रख दिया हो ।पर पर दूसरे हि पल वो उस उदासी को झीड़क् कर मुस्कुरा कर सागरिका के चेहरे पर आई मुस्कुराहट को तारने लगता है । सागरिका भी खुशी के मारे फुले नहीं समा रही थी वो चहकते हुए बोल रही थी ओ जीवा ,मै तो तुम्हारी एहसानमंद हो गई हुँ ।और अब पता नहीं तुम्हारा ये एहसान कैसे चुका पाऊँगी ?तब जीवा कहता है ,की एक रास्ता है मैडमजी मै इस शहर मे नया हुँ क्यों न मुझे इस शहर से मिलाकर .........आप एहसान मुक्त हो जाए ? उसकी ये बात सुनकर सागरिका हस् पड़ती है ,और कहती है ।बिल्कुल मै ज़रूर तुम्हे इस शहर से मिलवाउंगी ?तो ठीक है ।कल तुम तैयार रहना मेरे साथ इस शहर से परिचित होने के लिए । ये कहते हुए सागरिका सड़क की ओर तेज़ कदमो से चल परी थी । फिर जीवा भी उसी के पीछे चल परा था । ऐसा लग रहा था मानो दोनो के रास्ते एक ही से थे ।फिर बस स्टॉप पर धन्नो भी अपने सफर के लिए सुस्ज़्ज़ीत होकर निकलने हि वाली थी । की सागरिका और जीवा उसमे सवार होकर चैन की सांस लेते है की अगर एक पल की भी और देरी हो जाती तो ,शायद ही नहीं यक़ीनन धन्नो नहीं मिल पाती ?