फिर। घर पहुँच कर सागरिका खाना खाने के बाद अपने कमरे। मे जल्दी सोने के लिए चली जाती है । बिस्तर पर पहुंचते ही वो जल्द ही नींद की असगोश मे समा जाती है । फिर सुबह जब वो बस स्टॉप पहुंचती है ।तो जीवा को देखकर ही ये पता चल रहा था,की वो उसी का इंतज़ार कर रहा ।फिर दिनों साथ मे बस मे बैठते है, और। शहर से मिलने लिए। निकल परते है। फिर तो रास्ते के सफर खत्म होते ही ।शहर से मिलने का सफर शुरु हो जाता है। जीवा और सागरिका दोनो ऐसे खोये थे इस सफर के दौरान की वो रज़्ज़् ही नही रहे थे ।पुरा शहर घूमते -घूमते बातो -बातो मे सागरिका जीवा से पूछती है ।की तुम तो आज इधर हो ,तो आज धन्नो किसके साथ .....जीवा कहता है ,की वो एक दिन की छुट्टी लेकर इधर आया हुं। और अगर कुछ बच जाए घूमने के लिए तो रविवार की छुट्टी मे घूम लेंगे ? अगर आप ठीक समझे तो मैडमजी। क्योंकि हर रवि वार का रविवार मुझे
छुट्टी मिलती है । तब सागरिका कहती है,अच्छा बाबा घूम लेंगे ? अब ठीक है । तब जीवा कहता है ,की मैडमजी घूमने के चक्कर मे तो हम लोग खाना खाना तो बिल्कुल भूल गये ,और मुझे बड़ी जोड़ो की भूख लगी है ।तो चलिए न मैडमजी कुछ खा ले ।तब सागरीका कहती है ,की ,अरे-अरे मै तो ये बात बिल्कुल भूल गई ,की तुम्हे भूख लग आई होगी ? पर मै ये भूल गई ,वो ऐकचूली आज शिवरात्री हैँ न !तो मै भूल गई की मैने उपवास किया है तुमने नही ।तो चलो तुम कुछ खालो ।फिर खाना खाने के बाद सागरिका आज के लिए इतना ही रहने दो ,जीवा ,क्योंकी मै सुबह ये सोंच कर घर से बिना पूजा किये हि निकल गई थी ,की मै शाम हने से पहले घर पहुँच जाऊंगी ?मै तुम्हे क्या दोष दूँ मुझे ही समय का ख़याल ही नही रहा ?अब जल्दी चलो ! मुझे मंदिर भी तो जाना है। ये बोलते -बोलते ही सामने से आती ऑटो पर् वो बैठ कर जीवा को भी बैठने का इशारा करती है ।बैठने के बाद सागरिका बस ये सोंच रही थी ,की बस किसी तरह वो ससमय घर पहुँच जाए ।पर शहर मे शिव रात्री होने की वजह से शिवपार्वती विवाह की झांकी निकल रही थी ।इसलिए सड़क जाम चल रहा था ।और घमसान ज़ाम की वज़ह से सागरिका के पास समय ही नहीं बच पाया की वो घर पहुँच सकती थी ।इसलिए वो व्रत को पूर्ण करने के लिए शहर वाली मंदिर मे चली जाती है। मंदिर एकदम सुना -सुना लग रहा था । पुजारी जी भी मंदिर के सारे चढ़ावे को वैसे ही छोड़ कर जा चुके थे ।सागरिका के पास नहाने के बाद बदलने के लिए कपड़े तो थे ।ही नही । तो वो जल्दी -जल्दी नहाकर गिले कपड़ो मे ही जल चढ़ाने के लिए आस -पास कोई( बर्तन) या पात्र ढूंढने लगी ।पर आस-पास् कोई भी पात्र नही था। एक पल के लिए वो निराश सी हो गई की अब तो सूर्य देवता भी अस्त होने हि वाले थे।