सागरिका ने राधे से प्रेम तो नहीं किया ,पड़ वो उसे अपने भाग्य की लेखनी मान कर उसे अपने जीवन का हिस्सा बना लेती है ।पड़ वो जिस रिश्ते मे राधे के साथ बंधी थी ।वो रिश्ता निभाने तक तो ठीक था ।पड़ उस रिश्ते को सही मायनो मे चरितार्थ करने मे वो स्वयंम को असमर्थ पाने लगी थी ।वो जानती थी ,की जो कुछ भी हुआ ,उसमे राधे का कोई दोष नहीं था। शायद जीवा का प्यार उसके भाग्य मे था हीं नहीं ।इसलिए तो राधे उसके जीवन मे लौट आया था। सागरिका राधे के साथ हर उस रिश्ते को ईमानदारी पूर्वक निभाती ,की जिससे उसके और राधे के रिश्ते को एक पति-पत्नी का सही रिश्ता माना जा सके ।पर राधे को भी ये अहसास हो चुका था ,जब शादी की पहली रात को जब वो उसके करीब आना चाहा तो वो उसे सौंप तो चुकी थी ,पड़ वो खुशी उसके चहरे पर नज़र नही आया जो एक लड़की के दिल मे अपने पति को समर्पण करने मे होती है ।उसकी उदासी ने राधे को करीब आने हीं नही दिया ।राधे को शायद ये अहसास था ,की सागरिका को वो अपने साथ अधूरी सी पाता है ।पड़ वो भी तो अपने दिल के हांथो मज़बूर था ।क्योंकि सागरिका के अलावा किसी लड़की पड़ उसका दिल ठहरा हीं नही ,इसलिए तो वो उसे पाने के लिए उससे शादी कर लेता है । उसने भी ये तय कर लिया था ,की वो एक न एक दिन सागरिका के दिल को जीत कर हीं रहेगा ?और इसकी शुरुआत उसने अपने और सागरिका के रिश्ते को समय देना उचित समझा ।इसलिए वो सागरिका के घर वालो से उसके पसंद -नापसंद के बारे मे पता करके उसे उसके पसंद के अनुसार अपने नानाजी से मिलाने के बहाने गांव लेजाता है । जब राधे और सागरिका गांव जाते है ,तो सागरिका को राधे के नानाजी से मिलकर बहुत खुशी मिलती है। सागरिका को भी गांव खूब भाने लगा था ,उसे गांव् वालो से मिलकर बहुत अच्छा लगता ।गांव की आवो -हवा ने सागरिका को एक बार फिर से जीवा की याद दिला दी ।एक दिन जब वो गांव की सैर कर रहे थे तब सागरिका की नज़र एक नेम प्लेट पर गया जिसमे लिखा था जीवन कला मंदिर उसने उसके बारे मे पूछा तो ,राधे ने बताया ये गांव के गरीब बच्चों के सपनो और अरमानो का मदिर है ,जिसे उसी के नानाजी ने हीं ने सजाया है ।उसने बतया ये दरअसल ।
नानाजी कॉलेज के चित्रकारी शिक्षक रह चुके है ।सो रिटायर्मेंट के बाद अपनी खुशी के लिए उन्होंने गरीब बच्चों की सपनो मे पंख लागने का सपना बच्चों। के लिए बुना है ।ये कहते हुए राधे सागरिका को जीवन कला मदीर के अंदर बच्चों से मिलवाने लिए लेकर चला आता है । बच्चों की चित्र कारी ने तो । सागरिका को मानो जीवा के ही दर्शन करा दिया था ।वो उन बच्चों मे जीवा को ढूंढने लगी थी ।वो आकुल सी हो बैठी थी ।उसे लग रहा था की शायद जीवा उसके बहुत पास है ।यही-कही आस-पास् पड़ वो उदास हो गई की ये उसका बहम है ।जीवा यंहा कैसे हो सकता है? इसमे तो। छोटे - छोटे बच्चे कला सीख रहे थे
राधे जीवन कला मंदिर की बाते बताते हुए