ओओजीवन की जिंदगी से जुड़ी बाते सुनकर सागरिका को गांव वालो के भोले पन को देख कर ऐसा लगता मानो लोग भोले पन का मुखुटा लगा रखे थे । क्योंकि वो जान गई थी ,की जीवन को गांव छोड़ कर बाहर जाने के लिए मज़बूर करने वाले गांव के ही लोग थे।और उसकी पत्नी वो भी गांव वालो के तानो से उब कर ही दुनिया से चली गई थी । सागरिका ये बाते नानाजी से भी कहती है की गांव वालो के चहरे पड़ भोलेपन का मुखौटा लगा है ।तबनानाजी उसे समझाते है के ऐसी कोई बात नही है बेटा सारे लोग थोड़े न कुटिल प्रवृति के हो सकते है?ऐसा तो हर जगह जगह देखने को मिलता है,की कुछ लोग गंदी प्रवृति के होते है ।तब सागरिका समझ जाती। है ,की नानाजी की बात सही है । वो बातो -बातो मे नानाजी से पूछ बैठती है,की नानाजी क्या कल जन्माष्टमी के दिन जीवन मंदिर आएगा ?तब नानाजी कहते है ,की शायद आ भी सकता है ,और नही भी !सागरिका अपने मन को ये कहकर। लेती। है , की, की अब जब वो गांव मे है ,तब वो जीवन से मिलकरही जाएगी ?वो अपने मन मे ये मंथन कर ही रही थी ,की नानाजी उसे कहते है,की बेटी कल समय से तुम और राघे तैयार रहना मंदिर जाने के लिए । और हा एक बात तो मेरे दिमाग़ से उतर ही गया , जीवन का जन्म जन्माष्टमी के दिन मंदिर मे ही हुआ था ।जब उसकी माँ गर्भवती थी तब वो अपने पती के साथ मंदिर मे पूजा करने आई थी। सब लोग कृष्ण जन्म की रंग मे सराबोर हो चुके थे ,की तभी उसकी माँ को प्रसब पीड़ा होने लगी वो मंदिर प्रांगण मे ही दर्द से कराह उठी ।वो प्रांगण को पार कर हॉस्पिटल जा ही रही होती है ,की माखन की मटकी उसकी माँ के सर पड़ गिर जाती है ।लोग घबरा जाते है ,की मटकी की चोट से सिर तो फुट ही गया होगा? पर ये किसी आश्चर्य से कम नही था ,उसकी माँ भी डर से अपनी आँखे बंद कर चुकी थी ।पड़ जब उसने अपनी आँखे खोली तो जीवन का जन्म हो चुका था ।और सारे लोग एक साथ बोल पड़े जीवन आया है।उसी दिन से जीवन का नाम जीवन पड़ गया था ,की उसने अपनी माँ कों नाया जीवन दिया था ।ऐसा लोगो का कहना था की मटकी गिरने के बावजुद भी ,उसकी मां का एक बाल भी बाका नही हुआ था । पड़ जब से उसकी मां उसे छोड़ कर चली गई तब से उसने अपना नाम जीवन से इससे पहले वो उसका बदला नाम बता पाते उससे पहले गांव के पुरोहीतजी आवाज़ देते हुए वंहा आते है,और राधे के नानाजी से कहते है,की वैसे तोआपको न्योता तो पहले ही दे। ही चुके है,पड़ यही से गुज़र रहा था इसलिए सोंचा एक बार फिर से आपको याद दिलाता चलू ।ताकि आपलोग मंदिर सही बक्त पड़ पहुँच सके ,और हाँ और हाँ बहुरानी को भी लेते आइयेगा ? अच्छा मै चलता हुँ।फिर पुरोहितजी के जाते हीं नानाजी सागरिका को जल्दी से तैयार होकर चलने के लिए कहते है ।फिर सारे लोग मंदिर पहुँच जाते है ।सागरिका मंदिर की सजावट देख कर दंग थी ।मंदिर को इतनी खूबसूरती से सजाया गया था ,की उसकी खूबसूरती देखते ही बन रही थी उस रात । लोग बड़ी बेसब्री से मटका फूटने का इंतज़ार कर रहे थे ।ताकी लोग भगवान् कृष्ण को भोग लगा कर जन्माष्टमी की मश्ती आँखों मे लिए अपने घर जा सके ।वंहाँ की खूबसूरती को तारते सागरिका की आँखे रज़ हीं नही रही थी ।बस वो उन खूबसूरत लम्हो को निहारते हीं जा रही थी ।की उसी दौरान उसकी नज़र एक इंसान पड़ पड़ी जो मंदिर की सीढ़ियों पड़ एक थाली मे लाल गुलाल लेकर सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था । सागरिका उसे देख कर आश्चर्य से खड़ी थी ।की तभी उसी बक्त मटकी के फूटने से जोड़ का शोर उसकी कानो मे गुंज पड़ती है । की तभी वंहाँ नानाजी आकर कहते हैं, की अरे बेटी राधे कहा है? मुझे उसे जीवन से मिलवाना है ।लगता है वो भीड़ मे घीरा पड़ा होगा ?पड़ तुम भी तो जीवन से मिलना चाहती थी न!वो रहा जीवन जो मंदिर की सीढ़ियों से नीचे उतर रहा है ।सागरिका गुमसुम सी जीवन को देखती रही ।नानाजी उसका हांथ पकड़ कर जीवन के सामने ले जाकर खड़ा कर जीवन से कहते है ,की अरे बेटा रुको -रुको तुम तो इतने खोये हो की मै तुम्हारे सामने खड़ा हुँ ।और तुम मुझे देख तक नही रहे हो ।खैर ये सब छोड़ो जब से तुम शहर से अपनी पत्नी के अंतिम संस्कार करने आये हो तब से तुम गांव मे ही हो पड़ एक बार भी घर नही आये ।और मेरी नतीनबहु कब से तुमसे मिलना चाह रही थी ।सो मिलो ये राधे की पत्नी सागरिका है ।और बहु ये ही जीवन है ।दोनो की नज़रे एक दूसरे को देख कर पहचान तो गई थी पड़ दोनो की ज़ुबान् खामोश हो चुकी थी । सागरिका जीवन को ऐसे देखरही थी की बक्त की आंख्मीचौली ने उसके दामन से जीवा का प्यार छीन लिया था ।