पड़ आपका क्या कहना है ?क्या आप आज भी जो गलत। भी गलत फैमी हुई है ,उसे भुला कर एक बार फिर से मुझे अपनाना चाहेंगी ? सागरिका उसकी बातो का कोई जाबब नहीं देती ।वो उसकी ओर देख कर नज़रे झट से हटा लेती है ।पड़सागरिका के इसी शर्मिलेपन ने तो राधे को पहले दिन से ही दीवाना बना दिया था ।वो उसका हांथ पकड़ कर गाड़ी मे बिठा कर उसके घर जाकर उसके घर वालो को सारी बाते बता कर एक बार फिर से अपने लिए उसका हांथ मांग लेता है। सागरिका तो मानो टूट सी गई थी ।उस रात राधे उसके घर पर ही रुक गया था ।जब सब लोग घर मे सागरिका के रिश्ते के हो जाने से खुश थे तो उस रात घर वालो के लिए मानो चैन की नींद सबकी आँखों मे समा सी गई थी।तो वही सागरिका की आँखे रोते नही थक रही थी ।वो आकुल सी हो उठी थी ।तभी वो छत पड़ चढ़ कर अपनी सखी को निहारने लगी ।वो सखी को निहारती हुई रात के अंधेरे मे चमकती अपनी सखी का हाल मानो अपने आप सा पाया ।वो अपनी व्यथा अपनी सखी को बताना ही चाह रही थी ,की छत पड़ राधे आ जाता है ।उसके आने की आहाट पाते ही सागरिका अपने आँसुओ को पोछ कर उसकी ओर सवालियत भरी नज़रो से उसे देखती है ।की वो छत पड़ क्या कर रहा है ?पड़ उसके सवालों को जानकर भी अंजान बनते हुए राधे उसे देख मुस्कुरता रहा ।सागरिका ये देखते ही वंहाँ से जाने लगती है ,तो राधे उसका हांथ पकड़ कर उसे रुकने के लिए कहता है ।सागरिका उसके हांथ पकड़ते ही मानो स्वयं को असुरक्षित महसूस करने लगी थी ।वो अपना हांथ छुराने के लिए बहुत कोशिश की पड़ वो हांथ छुड़ा ही नही पा रही थी । ऐसा करते हुए उसकी आँखों से आंसु झलक आये उसे लगा अब वो अपना हांथ छुड़ा नही पाएगी ? तब राधे उससे कहता है की ये हांथ उसने छोड़ने के लिए नहीं बल्कि थामने ने के लिए पकड़ा है ।उसकी ये बात सुनकर सागरिका उसकी ओर देख कर मानो स्वंम को बेबस महसूस कर रही थी ।फिर राधे उसका हांथ छोड़ देता है ।वो वंहाँ से जाने ही बाली थी ,की छत पड़ घर वाले कुछ ढूंढते हुए आ गये थे ।उन्हे देख कर दोनो दीवार की ओट मे छुप गये थे ।घर वाले राधे को कमरे मे नही पाकर उसे ही छत पर ढूंढने आये थे । उनके जाते ही दोनो ओट से बाहर आ गये थे ।सागरिका को इस बार राधे से डर नही लग रहा था ।क्योंकि छुपने के दौरान वो दोनो इतने करीब थे की सागरिका की साँसे अटकी हुई थी ।की कही राधे फिर से उसका हांथ या कोई गंदी हरकत न कर दे । पड़ राधे तो स्वंम को उसके करीब होते हुए भी दूरी गहरी बना ली थी ।सागरिका राधे से पूछ बैठी आप छत पड़ क्या करने आये थे ?राधे वही जो आप करने आई थी ।चांद से बाते क्योंकि मेरा बेस्ट फ्रैंड एक चांद ही है ।।और शायद आपका भी ?
सागरिका ,उस दिन अपने होने वाले पति से पहली बार मिलने ,के,लिए जा रही थी।शायद वो थोड़ी लेट हो चुकी थी। सुबह का समय था। बारिसो का सीजन चल रहा था। कुल मिलाकर उस दिन मौसम सुहाना सा था।सागरिका जब घर से निकली ही थी,की , हलकी हवाएं और बारिसो की बुंदे भी अपने घर से मानो चल ही परे थे।सागरिका उन बूंदो से बचने के लिए तेज कदमो के साथ सरको पर चल परी थी।पर वो कहावत तो सुनी होगी आपने की तुम डाल -डाल तो हम पात-पात् यही उसके साथ भी हो ,रहा था।जैसे -जैसे उसके कदमो की चाल तेज होती जा रही थी ,ठीक वैसे -वैसे ही हवाएं और बूंदो की। च।ल भी बढ़ती ही जा रही थी। इसी होर की आपा -धापी मे वो सरक पर पहुंच कर बस का इंतजार करने लगी थी।वो तो रुक चुकी थी ,पर हवाएं और बारिसे की बुंदे तो और भी तेज हो चुकी थी।हवा कीत तेज झोंको ने उसकी छतरी को दूर जा उराया था। छतरी के उरते ही बूंदो ने उसे भींगा दिया था। अब तो उसकी नजरें मानो आति-जाती गरियों के रुकने का इंतज़ार करने लगी जो ,की पहले से ही भरी रहने के कारण रुकने का नाम भी नही ले रही थी ।फिर एक बस आती दिखी तो सागरिका ने बस को रुकने का इशारा किया ।मगर ये बस भी आगे निकल गई थी ।वो बस खुली आँखो ,बस को जाति देखती रह गई की,तभी उसके कानो मे एक आवाज गुंजी,वोआवाज जीवा की थी।वो बस अभी भी धीमी गति से बढ़ी जा रही थी।जीवा ने आवाज दिया अरे ओ मैडमजी जल्दी आइये वरना आधी तो आप पहले से हि भीगी हुई है।बाकी आधा फिर से भीगने का इरादा है क्या ?,जल्दी आइये सागरिका उसकी बस की ओर लपकी ,मगर वो चढ़ने मे संकोच। कर रही थी।जीवा ने फिर कहा अरे मैडमजी गरी धीमी है ,इसलिए आप चढ़ सकती है।इतना विश्वाश रखिये आपको गिरने नही देंगे हम।इतना कहते हुए वो एक हाथ से उसके हाथ से गुलाब के फूलो का गुच्छा लेते हुए दूसरे हाथ उसे1 उसे बस मे खींच लेता है।बस मे तिल तस्कने भर की भी जगह नही थी। सागरिका हैरंगी भरी नजरों से उसे चिढ़ते हुए देखने लगी ।वो फूल जो उसने ले लिया था ,इसलिए वो उसे गुस्से से देख रही थी।पर दूसरे ही पल वो उसे समझ गई थी की। उसे ये तक पता नही था ।की गुलाब का फूल किसे और क्यों दिया जाता है। उसके भोलेपन सेही ये लग रहा था ,की वो किसी गाँव् से शहर आया था। ।वो सागरिका को फूल वापस कर चुका था ।जीवा मे एक अज़ब ही फूरती थी ।शायद ये उसकी काम की शर्ते थी। बस अपनी रफ्तार से बढ़ती जा रही थी ।