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गजल : बीवी और प्रेमिका

2 अप्रैल 2022

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प्रेमिका की बातें मीठी , बीवी की "शोर" लगती हैं
एक "दिल की आवाज", दूसरी "मुंहजोर" लगती है 

"उसका" चेहरा चांद लगे पर "वह" कद्दू सी दिखती है 
बीवी अमावस की रात, प्रेयसी गुनगुनी भोर लगती है 

"वो" सपनों में आती है तो दिल को सुकून आ जाता है
कभी बुलबुल, कभी मैना, कभी कभी तो मोर लगती है 

बीवी का क्या है, वो तो पैदा ही डांटने के लिए हुई है 
इसीलिए मुहब्बत के मैदान में वह कमजोर लगती है 

जिसने भी जाना लिया बीवी को, वो उसका दीवाना है
उसके लिये तो बीवी  मोहिनी, रति, चितचोर लगती है 

महज नजरों का फेर है इसके सिवाय कुछ नहीं है दोस्तों 
जिसे मन चाहे वो मनभावन वरना सब चीजें शोर लगती हैं 

हरिशंकर गोयल "हरि"
3.4.22 


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रचनाएँ
हास्य काव्य
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विभिन्न विषयों पर हंसने हंसाने वाली कविताएं इस किताब में मिलेंगी
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रविवार की सुबह

9 जनवरी 2022
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आज सुबह सुबह दो बहनों में लड़ाई हो गई कॉलोनी के बीच चौराहे पर हाथापाई हो गई दोनों ही बहने ऊंचे घराने "हफ्ता खानदान" की थीं एक बड़ी तेज तर्रार तो दूसरी थोड़ी नादान थी तेज तर्रार बहन का न

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कॉलेज के दिन

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कॉलेज के दिनों में एक लड़की से आंखें लड़ गईं लड़की तो खुश थी मगर उसकी मम्मी बिगड़ गई लड़की पर उसकी मम्मी पूरी निगाहें रखती थी हमें निकम्मा, नालायक आवारा ही समझती थी चोरी चोरी चुपके चुपके हम दोन

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आज सुबह सुबह श्रीमती जी ने जैसे ही मुझे जगाया जाना है विदेश यात्रा पर उठते ही ये फरमान सुनाया हमने कहा "भाग्यवान, क्या गयी तुम्हारी मति मारी है देखती नहीं सकल विश्व में कोरोना नामक महामारी है ऐस

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18 जनवरी 2022
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लो फिर आ गया है वो ठिठुरती सर्दी का मौसम कड़कड़ाती, कंपकंपाती कहर ढाती ठंड का मौसम कोहरे की रजाई ओढ़े सूरज देर तलक सोता है ठंड से ठिठका सवेरा ठहर ठहर कर चलता है पानी का नाम सुनते ही सबक

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23 फरवरी 2022
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मेरे आंगन में खड़ा है एक अमरूद का पेड़ नटखट, शरारती बड़ा है अमरूद का पेड़ आजकल बहारें उस पर टूट कर आयीं हैं अमरूदों की छटा ने घर में धूम मचाई है क्या बच्चे क्या बीवी, सब उसके दीवान

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2 मार्च 2022
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3 मार्च 2022
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7 मार्च 2022
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गजल : बीवी और प्रेमिका

2 अप्रैल 2022
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प्रेमिका की बातें मीठी , बीवी की "शोर" लगती हैं एक "दिल की आवाज", दूसरी "मुंहजोर" लगती है "उसका" चेहरा चांद लगे पर "वह" कद्दू सी दिखती है बीवी अमावस की रात, प्रेयसी गुनगुनी भोर लगती है&nbs

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अगर शब्दों के पंख होते

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अगर शब्दों के भी पंख होते जज्बात सारे हवा में ही उड़ते दिल के अरमान शब्द बनकर किसी के दिल पे सीधे लैंड करते ना चिठ्ठी पत्री की जरूरत होती ना एस एम एस होता ना मेल होती ना किसी क

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भूतों से बातें करने की ख्वाहिश तो बहुत है मगर भूतों का रिकॉर्ड देखकर डर भी बहुत है मैं भी किसी भूत से मिलना चाहता हूं "भूत कैसे बना" उससे जानना चाहता हूं । भूत कितने प्रकार के

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