प्रेमिका की बातें मीठी , बीवी की "शोर" लगती हैं
एक "दिल की आवाज", दूसरी "मुंहजोर" लगती है
"उसका" चेहरा चांद लगे पर "वह" कद्दू सी दिखती है
बीवी अमावस की रात, प्रेयसी गुनगुनी भोर लगती है
"वो" सपनों में आती है तो दिल को सुकून आ जाता है
कभी बुलबुल, कभी मैना, कभी कभी तो मोर लगती है
बीवी का क्या है, वो तो पैदा ही डांटने के लिए हुई है
इसीलिए मुहब्बत के मैदान में वह कमजोर लगती है
जिसने भी जाना लिया बीवी को, वो उसका दीवाना है
उसके लिये तो बीवी मोहिनी, रति, चितचोर लगती है
महज नजरों का फेर है इसके सिवाय कुछ नहीं है दोस्तों
जिसे मन चाहे वो मनभावन वरना सब चीजें शोर लगती हैं
हरिशंकर गोयल "हरि"
3.4.22