गलतियाँ करके नादान, समझता ही नहीं।
दिल की अपनी पहचान, समझता ही नहीं।।
जिसने किया खड़ा तुझे, झूठ बोलता उसे।
फर्क करती रही जुबान, समझता ही नहीं।।
उसको कहता है , करता हूँ काम नेकी से।
तेरी सीरत में अभिमान, समझता ही नहीं।।
ज्यों-ज्यों सर खपाता है, बदइंतजामी में।
होने लगता नुकसान, समझता ही नहीं।।
ज्यों-ज्यों गिरकर उठाता , अपना सपना।
मरता जाता स्वाभिमान, समझता ही नहीं।।
अंधेरों ने रोशनी से दोस्ती कर ली 'सुओम'।
खोता जाता है तू पहचान, समझता ही नहीं।।